खगड़िया: शादी की खुशी बीच बचपन सिसक रहा है. शादी के जश्न में जहां लोग मशगुल रहते हैं. वहीं नाबालिग बच्चों से गैर कानूनी कार्य कराकर आर्थिक व शारीरिक शोषण किया जाता है. शादी में रोड लाइट को बच्चे अपने माथे पर रखकर घूमते हैं, जिसका वजन 10 से 15 किलो होता है. ऐसे गैर कानूनी कार्य पर श्रम कानून, बचपन बचाओ अभियान व सर्व शिक्षा अभियान नकारा साबित होता है. प्रशासन के नाक के नीचे होने वाले इस गैर कानूनी कार्य में लाइट डेकोरेशन वाले खुला उल्लंघन करते हैं.
आजादी के छह दशक बीतने के बाद भी देश के भविष्य के साथ हो रहे क्रूर मजाक के विरुद्ध बने कानून कागजी बनकर रह गयी है. शादी के मौके पर बच्चों के माथे से बिखेरने वाली रोशनी के बीच बाराती बैंड बाजा की धुन पर थिरकते नजर आते हैं. वहीं माथे पर रखे गये रोड लाइट के भारी वजन के कारण बच्चे परेशान दिखते हैं. मजदूरी के एवज में उन्हें भोजन के साथ 50 से 100 रुपये मिलते हैं. लग्न शुरू होने पर दर्जनों दृश्य देखने को मिलते हैं. अधिकारियों के द्वारा बालश्रम कानून उल्लंघन पर कार्रवाई नहीं की जाती है.
मुक्त बच्चों को मिलने वाला लाभ
बालश्रम से मुक्त कराए गए बच्चों को पुनर्वास के लिए नकद 15 सौ रुपए व 3 सौ रुपये की दवा व कपड़ा के मद्दे में मिलता है. साथ ही इनके परिवार वालों को इंदिरा आवास, वृद्धा पेंशन, निशक्तता पेंशन, मनरेगा आदि योजनाओं का लाभ दिया जाता है.
कहते हैं अधिकारी
माथे पर छोटे-छोटे बच्चों द्वारा रोड लाइट लेकर बरात में घूमते नहीं देखा है. अगर इस तरह की बात है, तो निरीक्षण के क्रम में पकड़े जाने पर संबंधित लाइट डेकोरेशन संचालक पर कार्रवाई की जाएगी.
संजय कुमार, श्रम प्रवर्तन पदाधिकारी गोगरी
क्या कहता है संविधान
संविधान के अनुच्छेद 39 एक में बच्चों को स्वतंत्र रूप से जीवन जीने का अवसर प्रदान करने का नियम है, परंतु अधिकारियों की उदासीनता के कारण यह नियम किताबों की शोभा बढ़ा रहे हैं.
क्या है दंड का प्रावधान
चाइल्ड प्रोहिबिशन एक्ट 1986 के तहत बच्चों से मजदूरी लेने वाले पर कार्रवाई की जाती है. बच्चों से काम कराने वाले पर 20 हजार का जुर्माना किया जाता है.