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ग्रामीण हाट का क्रेज आज भी है बरकरार

खगड़िया : बदलते परिवेश में बाजार के बदले स्वरूप के बीच गांवों में हाट का क्रेज बरकरार है. आवश्यकता अनुसार बड़े-बड़े मॉल के साथ-साथ मार्केट कॉम्पलेक्स बनते चले गये. लोगों को एक ही जगह जरूरत की सारी सामाने मिलने की सुविधा मिली बावजूद ग्रामीण हाटों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा और आज भी ग्रामीण […]

खगड़िया : बदलते परिवेश में बाजार के बदले स्वरूप के बीच गांवों में हाट का क्रेज बरकरार है. आवश्यकता अनुसार बड़े-बड़े मॉल के साथ-साथ मार्केट कॉम्पलेक्स बनते चले गये. लोगों को एक ही जगह जरूरत की सारी सामाने मिलने की सुविधा मिली बावजूद ग्रामीण हाटों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा और आज भी ग्रामीण हाट का क्रेज बरकरार है.
लोग हाट लगने का इंतजार भी करते हैं. मानव जाति के विकास के साथ-साथ उनकी आवश्यकताओं व अभिलाषाओं में भी वृद्धि हुई. अपनी जरूरतों को पूरी करने के लिए लोग पूर्व में सामानों का आदान-प्रदान किया करते थे. वहीं अब सभ्यता के विकास के साथ-साथ आदान-प्रदान का प्रचलन थमा और रुपये के रूप में क्रय शक्ति लोगों के हाथ आई. लोगों की जरूरते पूरी करने के लिए हाट का इजाद हुआ.
लोग जरूरतों की पूर्ति हाट के माध्यम से करने लगे. जहां उनकी जरूरत की अधिक चीजें सुलभ उपलब्ध हो जाया करती थी. सब्जी, फल, मिठाई, मांस, मछली, कपड़े आदि के लिए लोग हाट पर ही निर्भर करते थे. सुविधा की चाह में परिवर्तन दर परिवर्तन होते गए. जहां सुविधा युक्त कई मार्केटिंग कॉम्पलेक्स खुले वहीं मॉल संस्कृति भी लोगों के सर चढ़कर बोलने लगी. लोग जरूरतों के लिए मॉल की ओर रूख करने लगे. मॉल का कारोबार भी चल निकला बावजूद हाट संस्कृति पर इसका कोई असर नहीं पड़ा.
वर्तमान समय में भी ग्रामीण इलाके से लेकर महानगर तक में हाट में दुकानें सजती है और लोग दैनिक जरूरत के साथ-साथ घरेलू जरूरत के सामानों की खरीदारी करते है. ग्रामीण क्षेत्रों में तो लोग हाट का इंतजार तक करते नजर आते हैं. यानि विकास के तमाम आयामों के बीच हाट का क्रेज आज भी बना हुआ है और लोग हाट लगने का इंतजार करते है.

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