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शासन-प्रशासन का नहीं है कोई नियंत्रण

निजी विद्यालयों में री एडमिशन का नाम सुनते ही अभिभावकों में अफरा-तफरी, जबरन थोपे जा रहे नियम-कानून कटिहार : नये शैक्षणिक सत्र के प्रारंभ होने के साथ ही निजी विद्यालयों द्वारा री-एडमिशन व स्टेशनरी सहित विभिन्न मदों में लिये जाने वाले फीस को लेकर अभिभावकों में खौफ साफ देखा जा रहा है. शासन – प्रशासन […]

निजी विद्यालयों में री एडमिशन का नाम सुनते ही अभिभावकों में अफरा-तफरी, जबरन थोपे जा रहे नियम-कानून

कटिहार : नये शैक्षणिक सत्र के प्रारंभ होने के साथ ही निजी विद्यालयों द्वारा री-एडमिशन व स्टेशनरी सहित विभिन्न मदों में लिये जाने वाले फीस को लेकर अभिभावकों में खौफ साफ देखा जा रहा है. शासन – प्रशासन का निजी विद्यालय पर किसी तरह का नियंत्रण नही होने से विभिन्न मदों में अभिभावकों से राशि वसूली का काम शुरू हो गया है. जिले के शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में करीब 300 से अधिक निजी विद्यालय नियमों को ताक पर रखकर संचालित की जा रही है.
इनमें से मात्र 106 को ही शिक्षा विभाग द्वारा प्रस्वीकृति प्रदान की गयी है. हालांकि करीब दो दर्जन से अधिक निजी विद्यालय प्रस्वीकृति के लिए विभाग को आवेदन दिया गया है. वहीं जिला शिक्षा सूचना प्रणाली (डायस) के तहत करीब 150 निजी विद्यालय ही निर्धारित प्रपत्र में शिक्षा विभाग को जानकारी उपलब्ध कराया है.
ऐसे में साफ जाहिर होता है कि अधिकांश निजी विद्यालय के प्रबंधन को किसी भी तरह का प्रशासन का खौफ नही है. वहीं दूसरी तरफ नये सत्र प्रारंभ होने के साथ ही निजी विद्यालय प्रबंधन के द्वारा पाठय पुस्तक खरीदने का दबाब बनाया जा रहा है. हालांकि जिले में संचालित अधिकांश विद्यालय प्रबंधन ने अपने यहां ही पाठयपुस्तक, कॉपी, ड्रेस सहित स्टेशनरी सामग्री रखे हुए है. मनमानी कीमत पर विद्यालय प्रबंधन अभिभावकों को उनके बच्चे के लिए स्टेशनरी व अन्य पठन- पाठन से जुड़े सामग्री खरीदने को विवश कर रहे है.
मनमानी फीस व पठन-पाठन सहित अन्य सामग्री की मनमानी कीमत लेने को लेकर प्रशासनिक व शिक्षा विभाग के स्तर पर कोई कार्रवाई नहीं होती है. इस मामले में प्रशासन व शिक्षा विभाग पूरी तरह बेबस दिख रहा है. हालांकि बच्चे का भविष्य का हवाला देख कर अभिभावक भी इस मामले में विरोध प्रकट नहीं कर पाते है
. नाम नहीं छापने की शर्त पर कई अभिभावक ने कहा कि शिक्षा के नाम पर निजी विद्यालय पूरी तरह व्यवसाय कर रहा है. सरकारी विद्यालय में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं होने की वजह से मजबूरी में बच्चे को निजी विद्यालय में पढ़ाना पढ़ रहा है. व्याज पर कर्ज लेकर निजी विद्यालयों को री एडमिशन,वार्षिक शुल्क सहित अन्य फीस व पठन पाठन सामग्री ड्रेस आदि की राशि भुगतान कर रहे हैं.
मनमानी फीस से अभिभावक परेशान
अप्रैल का महीना आते ही निजी विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावक के चेहरे पर खौफ साफ देखा जाता है. दरअसल इसी महीने नये शैक्षणिक सत्र प्रारंभ होता है. नये सत्र के प्रारंभ होने पर छात्र छात्राओं को वार्षिक परीक्षा के आधार पर अगली कक्षा में प्रोन्नति दी जाती है. निजी विद्यालय में री एडमिशन के नाम पर अभिभावकों से मनमानी फीस वसूली जाती है.
साथ ही वार्षिक शुल्क, विकास शुल्क, विविध शुल्क आदि विभिन्न तरह के शुल्क के नाम पर विद्यालय प्रबंधन मोटी रकम वसूल करते है. री एडमिशन व अन्य शुल्क लेने की वजह से अभिभावक परेशान है. विद्यालय प्रबंधन द्वारा अभिभावकों का हो रहे आर्थिक दोहन से स्थानीय शिक्षा विभाग व जिला प्रशासन पूरी तरह उदासीन है.
सज चुकी हैं निजी विद्यालयों की दुकानें
नर्सरी से लेकर 12वीं कक्षा तक के छात्र छात्राओं को निजी विद्यालयों द्वारा पठन पाठन व ड्रेस कोड से जुड़े सामग्री मनमानी कीमत पर उपलब्ध कराया जाता है. शहर के कई रेडीमेड कपड़ों की दुकान व किताबों की दुकान भी कई निजी विद्यालयों द्वारा चयन किया गया है. ऐसे निजी विद्यालय अपने यहां के छात्र छात्राओं व अभिभावकों को चिह्नित दुकानों से ही किताब व ड्रेस आदि लेने के लिए बाध्य किया जाता है.
वहीं दूसरी तरफ जिले के अधिकांश निजी विद्यालय अपने परिसर में ही पठन पाठन से जुड़े सामग्री व ड्रेस के समान अभिभावक को उपलब्ध करा रहे है. अभिभावक विद्यालय प्रबंधन की शर्त पर बच्चे का भविष्य को ध्यान में रखकर मनमानी कीमत पर सामग्री खरीदने को विवश हैं.
अमल हो, तो विकास को लगेंगे पंख
क्षेत्रवासियों में मायूसी. चार दशकों से खटाई में पड़ी है कुरसेला-बिहारीगंज रेल परियोजना
बिहारीगंज-कुरसेला रेल परियोजना बीते सात सालों से फाइलों में गुम होकर रह गयी है. अगर इस परियोजना पर काम शुरू हो जाये और रेल परिचालन शुरू हो जाये तो मधेपुरा-पूिर्णया-कटिहार तीन िजलों के लोग व्यवसाय में आगे बढ़ेंगे.
कुरसेला. बिहारीगंज-कुरसेला महत्वाकांक्षी रेल परियोजना बीते चार दशकों से अधर में अटका हुआ है. मधेपुरा, पूर्णिया, कटिहार के सुदूर गांव के लोगों को एक रेलगाड़ी पर सवारी के सपनों पर पानी फिरता आ रहा है. सपनों की उम्मीद की किरण बोझिल हो रही है. उम्मीद की किरण सपनों को साकार करने के लिए तारणहार राजनेताओं की बाट जोह रही है. इलाकों को रेल सुविधाओं से जोड़ने के लिए तात्कालिक रेल मंत्री ललित नारायण मिश्र ने योजना संयोजा था. उनका मकसद था कि तीन जिले के सुदूर गांव के इलाके रेल सुविधाओं से जुड़ सके.
इस योजना को मूर्त रूप देने के दिशा में उनके द्वारा कार्य भी किया गया. उनके एक हादसे में निधन के पश्चात यहां महत्वाकांक्षी रेल पर योजना का कार्य फाइलों में गुम होकर रह गया है. हालांकि रेल मंत्री श्री मिश्र ने इस रेल परियोजना को नक्शे पर स्वरूप दे छोड़ गये थे. इसके बाद रामविलास पासवान जब रेल मंत्री बने तब उन्होंने फाइलों में दबे पड़े इस रेल परियोजनाओं की सूची लेकर कार्य योजना पर अमल की दिशा में कदम बढ़ाये. तात्कालिक रेल मंत्री श्री पासवान द्वारा इस महत्वाकांक्षी रेल परियोजना का कुरसेला में सर्वे कार्य का शिलान्यास किया गया.
सर्वे कार्य प्रारंभ होकर परियोजना कार्य पर मैप तैयार हुआ. केंद्र सरकार में परिवर्तन बाद एक बार यह रेल परियोजना खटाई में पड़ गयी. परियोजना के ठप पड़ने से कुरसेला-बिहारीगंज रेल पथ बनाओ संघर्ष समिति की ओर से प्रस्तावित रेल योजना पर कार्य करने के लिए संयोजक विनोद राज झा, मनोज जायसवाल के नेतृत्व में जगह-जगह धरना प्रदर्शन किये गये.
यूपीए गंठबंधन सरकार में जब लालू प्रसाद यादव रेल मंत्री बने तो रेल परियोजना को बजट में लेकर गति दी गयी. परियोजना के बीच पड़ने वाले रेल स्टेशन, समपार फाटकों के स्थान रेल के बोर्ड लगाये गये. तात्कालिक रेल मंत्री श्री यादव द्वारा 7 फरवरी 2009 को रुपौली में बिहारीगंज-कुरसेला नयी रेल लाइन का शिलान्यास किया गया. तीन जिलों के सुदूर क्षेत्रों के लाखों की आबादी को उम्मीद जगी कि वह भी रेल के ट्रेनों पर सवारी कर सकेंगे. मगर उनके मंसूबे पर एक बार फिर धरे के धरे रह गये.
तात्कालिक रेल मंत्री ललित नारायण मिश्र का सपना साकार रूप लेने से वंचित रह गया. वर्ष 2009 में इस महत्वाकांक्षी रेल परियोजना पर कार्य रुका पड़ा है. क्षेत्र के लोग केंद्र के नरेंद्र मोदी सरकार के आने वाले रेल बजट से कार्य के प्रारंभ होने की उम्मीद लगाये बैठे हैं.
पिछले मनमोहन सिंह सरकार में भी राजनीति का स्तर पर रुके पड़े इस रेल परियोजना का कार्य कराने की दिशा में प्रयास किया गया था. रेलपथ बनाओ संघर्ष समिति की ओर से रेल मंत्री को मांग को लेकर ज्ञापन सौंपा गया था. नतीजा ढाक के तीन पात वाली कहावत की तरह चरितार्थ होता रहा.
उम्मीदों की बंधी है आस : मधेपुरा, पूर्णिया, कटिहार के सुदूर क्षेत्रों की आबादी को परियोजना पर कार्य होने की उम्मीद बंधी है.
इन क्षेत्रों में सड़क सुविधाएं आवागमन का साधन है. इस रेल परियोजना के पूरे होने से तीन जिले के सुदूर क्षेत्र रेल सुविधाओं से जुड़ जायेंगे. दूरियां कम पर सहज हो जायेंगी. इलाके के लोगों का कहना है कि कभी ना कभी रेल डिपो में सवारी का सपना पूरा होगा. गांव के आसपास रेल पटरियों पर गाड़ियां दौड़ेंगी और सीटी बजेगी. उस सुखद दिनों का बेसब्री से इंतजार है. क्षेत्र के लोग राजनेताओं से उनकी इस महत्वाकांक्षा को पूरा करने का आग्रह कर रहे हैं.
व्यापारिक विकास को आयाम : इस रेल परियोजना के पूरा होने से व्यापारिक विकास को पंख लगेंगे. तीन जिलों के व्यवसाय कारोबार की साझेदारी हो सकेगी. सुरक्षा और सुगमता के साथ सड़क यातायात व्यवस्था का दोहन शोषण रुक सकेगा. अब देखना यह है कि वर्ष 2017 में क्या इस महत्वाकांक्षी रेल परियोजना का कार्य प्रारंभ होता है या फिर स्थिति जस की तस बनी रहती है.
परियोजना की रूपरेखा
प्रस्तावित बिहारीगंज-कुरसेला के निर्माण की 2009 में अनुमानित लागत 19 2.56 करोड़ थी. 57.35 किलोमीटर लंबाई के बीच बिहारीगंज, धमदाहा, माधवनगर, सिरसा, कसमराह, दुर्गापुर, रुपाैली, टीकापट्टी व कुरसेला रेलवे स्टेशन शामिल था. परियोजना के बीच कुल 74 पुलों का निर्माण होना था. रेल समपार फाटकों की संख्या 48 दर्शायी गयी थी. बताया जाता है कि रेल परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण में कतिपय अड़चने बनाने से रेल लाइन निर्माण में अवरोध बनाया. विगत सात वर्षों से यह रेल परियोजना एक बार पुनः फाइलों में खो कर रह गयी है.

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