एमडीएम में पोषक तत्वों की कमी-192 विद्यालय में एमडीएम बंद -अधिकांश विद्यालयों में मेनू का पालन भी नहीं होताफोटो नं. 6 कैप्सन-इसी तरह एमडीएम का हो रहा संचालन.प्रतिनिधि, कटिहारप्राथमिक मध्य विद्यालय में अध्ययनरत छात्र-छात्राओं को मध्यान भोजन योजना के तहत दोपहर में पका हुआ भोजन देने की व्यवस्था की गयी है. विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों के लिए यह व्यवस्था सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर केंद्र व राज्य सरकार ने की है. कटिहार जिले में करीब दो हजार प्राथमिक, मध्य विद्यालय व मदरसा में मध्यान भोजन योजना शुरू की गयी है. लेकिन मध्यान भोजन योजना मानक के विपरीत चल रही है. यूं तो जिले के अधिकांश विद्यालयों में मध्यान भोजन संचालित हो रही है, लेकिन अभी भी करीब 200 विद्यालयों में मध्यान भोजन योजना विभिन्न कारणों से बंद है. यद्यपि, जिन विद्यालयों में मध्यान भोजन योजना संचालित है, वहां भी कई तरह की गड़बड़ियां व्याप्त है. मसलन, मेनू के अनुसार भोजन नहीं बनना व भोजन में पोषक तत्वों की कमी की बात जग जाहिर है. हालांकि राज्य सरकार ने एमडीएम के बेहतर संचालन के लिए राज्य सरकार से लेकर प्रखंड स्तर तक स्वतंत्र मोनेटरिंग सिस्टम विकसित की है. इसके बावजूद मध्यान भोजन का गुणवत्तापूर्ण संचालन नहीं होना मौजूदा व्यवस्था को मुंह चिढ़ाता है. जबकि सरकार ने एमडीएम के प्रतिदिन अनुश्रवण के लिए ऑनलाइन रिपोर्टिंग की भी व्यवस्था की है. इस व्यवस्था का भी प्रभाव नहीं दिख रहा है. आम लोगों में मौजूदा व्यवस्था को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं भी हो रही है. प्रभात खबर ने जिले मी चल रही एमडीएम की स्थिति को लेकर विभिन्न स्तरों पर पड़ताल की है.-एमडीएम में गुणवत्ता का अभाव जिले में विभिन्न विद्यालयों में चल रहे एमडीएम की स्थिति बेहद खराब है. न तो मेनू के अनुसार विद्यालय के बच्चों को दोपहर का भोजन मिलता है और न ही भोजन में पोषक तत्व पाये जाते हैं. जबकि एमडीएम के मार्गदर्शिका में साफ तौर पर कहा गया है कि प्राथमिक विद्यालय के बच्चों के भोजन में कितना पोषक तत्व होना चाहिए और मध्य विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों को दिये जाने वाले बच्चों को कितनी पोषक तत्व होनी चाहिए. कई विद्यालयों के मध्यान भोजन की स्थिति देखने के बाद यह बात उभर कर सामने आयी है कि किसी तरह बच्चों के सामने भोजन परोस दिया जाय. अधिकांश विद्यालयों में तो मेनू का अनुपालन भी नहीं होता है. -बगैर कीचन के ही तैयार होता है एमडीएमजिले में कई ऐसे विद्यालय में एमडीएम योजना संचालित है. जहां एक ही कमरा में एमडीएम भी तैयार होता है व बच्चों के पठन-पाठन की भी व्यवस्था है. जबकि करीब दो सौ ऐसे विद्यालय हैं जहां बगैर कीचन शेड के ही भोजन तैयार होता है. भोजन की साफ-सफाई व गुणवत्ता का इससे साफ अंदाजा लगाया जा सकता है. दरअसल, जिले में करीब 250 से अधिक प्राथमिक विद्यालय ऐसे हैं, जिसके पास न भवन है और न ही कमरा है. ऐसे विद्यालय या तो झोपड़ी में चल रहे हैं या फिर हवा महल या सामुदायिक भवन में चल रहा है. -192 विद्यालयों में एमडीएम बंदराज्य सरकार ने एमडीएम के बेहतर संचालन को लेकर विभागीय वेबसाइट के माध्यम से हर दिन ऑनलाइन रिपोर्टिंग की व्यवस्था की है. गत 10 दिसंबर 15 को एमडीएम के वेबसाइट दोपहर के एमआइएस में दर्ज आइवीआरएस रिपोर्ट के अनुसार जिले में कुल 192 विद्यालयों में मध्यान भोजन बंद पाया गया. इनमें से खाद्यान्न के अभाव में 169 विद्यालय में भोजन बंद पाया गया. जबकि राशि के अभाव में 14 व अन्य कारणों से 09 विद्यालयों ने भोजन बंद रखा. इसके पूर्व 09 दिसंबर को प्रभारी जिला पदाधिकारी मुकेश पांडेय की अध्यक्षता में हुई बैठक में समीक्षा के दौरान भी यह बात सामने आया था कि खाद्यान्न के अभाव में 107, राशि के अभाव में 10 व अन्य कारणों से 08 विद्यालयों में एमडीएम बंद है. -कई विद्यालयों में आज तक एमडीएम नहीं हुई शुरूजिले में कई ऐसे विद्यालय हैं जहां आज तक एमडीएम शुरू भी नहीं हुई है. जबकि ऐसे विद्यालयों के स्थापना हुए पांच-छह साल हो गया है. दूसरे विद्यालयों के बच्चे को एमडीएम खाते देख ऐसे विद्यालय के बच्चों पर क्या गुजरती होगी, इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है. भले ही केंद्र व राज्य सरकार दलित, महादलित व आदिवासी सहित वंचित समाज के समग्र विकास के लिए सब कुछ करने का दावा करती रही हो. लेकिन ऐसे समुदाय के पोषक क्षेत्र वाले विद्यालय में आज तक मध्यान भोजन शुरू नहीं होना, सरकार के दावे का पोल खोलने के लिए काफी है. -प्रभावी अनुश्रवण का अभाव दरअसल, संसाधन की उपलब्धता व प्रदत्त अधिकार के बावजूद शिक्षा विभाग व प्रशासनिक महकमा के प्रभावी अनुश्रवण नहीं होने की वजह से जिले में एमडीएम का समुचित लाभ बच्चों को नहीं मिल रहा है. जबकि कई स्तर पर अनुश्रवण की व्यवस्था की गयी है. सरकार ने शिक्षा विभाग से इतर एमडीएम के बेहतर संचालन को लेकर स्वतंत्र आधारभूत संरचना भी दी है. मसलन, एमडीएम की जिला कार्यक्रम पदाधिकारी, डीपीएम, लिपिक, लेखापाल, डाटा ऑपरेटर, संवेदक, बीआरपी आदि कई तरह की व्यवस्था दी गयी है. इसके बावजूद भी मानक के अनुरूप एमडीएम का संचालन नहीं होना कहीं न कहीं अनुश्रवण की कमी की ओर इशारा करता है. -केस स्टडी – एकशहर के डॉ राजेंद्र प्रसाद पथ स्थित हरिजन पाठशाला का संचालन एक कमरे में होता है. इसी एक कमरे में छात्र-छात्राओं का पठन-पाठन व मध्यान भोजन की तैयारी भी होती है. छात्र-छात्राएं एमडीएम का सेवन भी इसी कमरे में करते हैं. जबकि यह विद्यालय शहर में व जिला मुख्यालय में है. जहां हमेशा अधिकारियों की आवाजाही होती है. केस स्टडी – दोजिले के नीमा पंचायत अंतर्गत वृंदावन में नया प्राथमिक विद्यालय संचालित है. इस विद्यालय में आदिवासी बच्चे पढ़ते हैं. पांच-छह साल स्थापना होने के बाद भी इस विद्यालय में आज तक मध्यान भोजन शुरू नहीं हो सका है. जबकि स्थानीय आदिवासी समुदाय के लोगों ने विद्यालय के नाम से 52 डिसमिल जमीन भी दान दी है. फिर भी उसके बच्चे एमडीएम सहित अन्य सुविधा से वंचित हैं. -एमडीएम के अनुसार मेनूसोमवार – दाल, चावल, हरी सब्जीमंगलवार – सोयाबीन, चावलबुधवार – हरी सब्जी के साथ खिचड़ी व चोखागुरुवार – दाल, चावल, हरी सब्जीशुक्रवार – छोला, चावलशनिवार – हरी सब्जी के साथ खिचड़ी व चोखा
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एमडीएम में पोषक तत्वों की कमी
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