पूर्णिया : बायसी प्रखंड की अधिकांश पीडीएस दुकानों में लूट-खसोट मची हुई है. लूट का यह धंधा यहां के लिए कोेई नया नहीं है, बल्कि यह पीडीएस की परंपरा बन चुकी है. लूट के इस धंधे में स्थानीय जनप्रतिनिधि से लेकर अधिकारी तक लिप्त हैं. गरीबों के राशन-केरोसिन के सेंधमारी की राशि से साहबों के […]
पूर्णिया : बायसी प्रखंड की अधिकांश पीडीएस दुकानों में लूट-खसोट मची हुई है. लूट का यह धंधा यहां के लिए कोेई नया नहीं है,
बल्कि यह पीडीएस की परंपरा बन चुकी है. लूट के इस धंधे में स्थानीय जनप्रतिनिधि से लेकर अधिकारी तक लिप्त हैं. गरीबों के राशन-केरोसिन के सेंधमारी की राशि से साहबों के चेहरे की चमक बरकरार है. वहीं गरीब और भी दुबले होते जा रहे हैं.
ऐसे में गरीबों की आह-पुकार सुने, तो सुने कौन?
हाकिमों की चुप्पी लूट-खसोट का गवाह : पीडीएस दुकानदारों की ओर से प्रत्येक माह अनाज वितरण नहीं करना अब बड़ी बात नहीं रह गयी है. वहीं अनाज हो या केरोसिन कम मात्रा में देना भी आम बात है.
पीड़ित अधिकारियों को आवेदन लिख कर मामले की शिकायत भी करते है. लेकिन कार्रवाई के नाम पर खानापूर्ति की जरूरत भी नहीं समझी जाती. आम लोग मानते हैं कि आवेदन रद्दी की टोकरी में चला जाता है.
इसकी वजह यह है कि सुविधा शुल्क के बोझ तले सही और गलत की पहचान मुश्किल हो जाती है. स्पष्ट है कि गरीबों की आह और कराह रद्दी की टोकरी में ही दम तोड़ देती है.
ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या इसमें अधिकारियों की भी संलिप्तता है. अगर नहीं तो फिर गरीबों के निवाले को निगलने वालों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं होती है. गुहार लगाकर थक चुके गरीब अब किसी से गुहार लगाना भी नहीं चाहते हैं.
डीलरों से वसूली के लिए एजेंट नियुक्त : बायसी अनुमंडल में डीलरों को मनमानी के एवज में एक निश्चित रकम सुविधा शुल्क के रूप में जमा करना होता है. चर्चा है कि इसके लिए तीन दर्जन से अधिक एजेंट कार्यरत हैं.
ऐसे एजेंट अधिकारी और जनप्रतिनिधियों के लिए अलग-अलग काम करते हैं. ऐसे एजेंट पंचायतों के डीलर से अपने-अपने आका के लिए निर्धारित राशि की वसूली करते हैं. यह काम संगठित नेटवर्क के तहत पूरा किया जाता है. जानकारों की मानें, तो सुविधा शुल्क की यह राशि प्रखंड से लेकर जिला स्तर तक बांटी जाती है.
अधिकारी कोई भी हो बंटवारा का यह धंधा परंपरा के रूप में संचालित हो रहा है.
वहीं एजेंटों को भी एक निश्चित रकम उपलब्ध करायी जाती है.