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दम तोड़ रहा है बचपन

ट्रेन की बोगी में झाड़ूकश बोगियों की सफाई कर पेट पाल रहे हैं बेसहारे बच्चे प्रशासन व सरकार की ओर से नहीं हो रहा ठोस कार्य कटिहार : बेसहारा व यतीम बच्चों का कैसा हो बचपन? इस पर कोई विचार नहीं करता. कटिहार रेलवे स्टेशन व ट्रेन की बोगियां इनके लिए शरणगाह बनी हुई है. […]

ट्रेन की बोगी में झाड़ूकश
बोगियों की सफाई कर पेट पाल रहे हैं बेसहारे बच्चे
प्रशासन व सरकार की ओर से नहीं हो रहा ठोस कार्य
कटिहार : बेसहारा व यतीम बच्चों का कैसा हो बचपन? इस पर कोई विचार नहीं करता. कटिहार रेलवे स्टेशन व ट्रेन की बोगियां इनके लिए शरणगाह बनी हुई है. जब सरकार और रेल प्रशासन बच्चों को निरोग रखने व बनाने के लिए मोटी रकम खर्च कर कई योजनाएं चला रही है, लेकिन ये बच्चे रेल परिसर या ट्रेन की बोगियों में झाड़ू लगा कर पेट पालने को विवश हैं.
स्वयंसेवी संस्थाएं भी बच्चों को शिक्षित करने, कुपोषण से निजात दिलाने का राग अलापती हैं, लेकिन रेल क्षेत्र में रह रहे ऐसे बच्चों की सुधि उनको भी नहीं है. इतना ही नहीं ऐसे बच्चे नशीली पदार्थो का सेवन करने के आदि भी बन जाते हैं. आखिर ऐसे बच्चों के बचपन को कौन संवारेगा?
कहते हैं एसआरपी
इस बाबत रेल एसपी जितेंद्र मिश्र से बात करने पर उन्होंने कहा कि यदि इस प्रकार की स्थिति है, तो इसे रोकने की कोशिश करेंगे. इसके लिए थानों को निर्देशित किया जायेगा. ऐसे बच्चों को स्कूल भेजा जाना चाहिए. इसके लिए सेवी संस्थाओं की भी मदद ली जायेगी.
कहते हैं सहायक निदेशक
बाल संरक्षण इकाई के सहायक निदेशक रविशंकर तिवारी से बात करने पर कहा कि इस प्रकार के बच्चों के लिए कोई योजना सरकार की नहीं है, बल्कि बाल परवरिश योजना चलायी जा रही है. इस योजना के तहत वैसे बच्चों को बाल संरक्षण के तहत बच्चों को उनके माता-पिता के पास पहुंचाया जाता है.
यदि उनके माता-पिता नहीं होते हैं, तो उनके सगे संबंधियों को सौंपते हुए आठ वर्ष के बच्चों के लिए आठ सौ रुपये व उससे ज्यादा उम्र के बच्चों को एक हजार रुपये प्रतिमाह सरकार देती है. लेकिन ये बच्चे उस दायरे में नहीं हैं. इसके लिए रेल पुलिस का दायित्व बनता है कि इसे रोके.
कहती हैं सहायक श्रमायुक्त
इस मामले में सहायक श्रमायुक्त कविता कुमारी से जानकारी ली गयी, तो उन्होंने बताया कि यह मामला बाल संरक्षण का. इसलिए इसके लिए जिला में स्थापित बाल संरक्षण इकाई जिम्मेदार है.

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