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सत्र शुरू हुए तीन महीने बीत गये

कैसे पढ़ें बच्चे . 5.25 लाख छात्र-छात्राओं को अब तक नहीं मिलीं पुस्तकें जिले में प्रारंभिक शिक्षा पूरी तरह से बेपटरी हो चुकी है. हालत यह है कि शैक्षणिक सत्र 2017- 18 के तीन महीने बीत चुके हैं, लेकिन सरकारी स्कूलों में अब तक छात्र- छात्राओं को पाठ्यपुस्तक नहीं मिली है. इससे बच्चे बिना पुस्तक […]

कैसे पढ़ें बच्चे . 5.25 लाख छात्र-छात्राओं को अब तक नहीं मिलीं पुस्तकें

जिले में प्रारंभिक शिक्षा पूरी तरह से बेपटरी हो चुकी है. हालत यह है कि शैक्षणिक सत्र 2017- 18 के तीन महीने बीत चुके हैं, लेकिन सरकारी स्कूलों में अब तक छात्र- छात्राओं को पाठ्यपुस्तक नहीं मिली है. इससे बच्चे बिना पुस्तक के ही पढ़ाई कर रहे हैं.
कटिहार : भले ही केंद्र एवं राज्य सरकार शिक्षा में गुणात्मक सुधार को लेकर बड़े-बड़े दावे कर रही हो, लेकिन स्थिति साफ इसके उलट है. जिले में प्रारंभिक शिक्षा तो पूरी तरह बेपटरी हो चुकी है. राज्य सरकार मैट्रिक एवं इंटर की परीक्षा में कदाचार रोकने को लेकर जिस तरह से सक्रिय रही, वह स्वागत योग्य है, लेकिन उसी इच्छाशक्ति के आधार पर सरकार को प्रारंभिक शिक्षा में गुणात्मक सुधार लाने की दिशा में पहल करनी चाहिए. पर ऐसा हो नहीं रहा है. कहते हैं नींव मजबूत होगी,
तो इमारत का भविष्य भी बेहतर होता है, लेकिन शिक्षा व्यवस्था की नींव ही लड़खड़ा चुकी है. हालत यह है कि शैक्षणिक सत्र 2017- 18 के तीन महीने बीत चुके हैं, लेकिन जिले के सरकारी विद्यालयों में प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करने वाले 5.25 लाख से अधिक छात्र- छात्राओं को अबतक पाठ्यपुस्तक सरकार की ओर से उपलब्ध नहीं कराया जा सका है. बगैर पाठ्यपुस्तक के ही सरकारी विद्यालयों के बच्चे किसी तरह पढ़ाई कर रहे हैं. अब सरकार अर्द्धवार्षिक मूल्यांकन परीक्षा लेने की तैयारी में जुटी है. सरकारी विद्यालय के बच्चे बगैर पढ़ाई के ही अर्धवार्षिक मूल्यांकन परीक्षा में सम्मिलित होंगे.
उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष यानी शैक्षणिक सत्र 2016- 17 में भी इसी तरह की स्थिति थी. छात्र-छात्राओं को छह महीने बाद यानी अगस्त-सितंबर के महीने में पाठ्यपुस्तकें मिली थीं. उसमें भी अधिसंख्य बच्चों को पाठ्यपुस्तक मिली ही नहीं थी. दिसंबर, 2016 में जब वार्षिक मूल्यांकन परीक्षा की घोषणा हुई, तो एक सप्ताह पूर्व सरकार ने यह आदेश दिया कि मूल्यांकन परीक्षा के दौरान पिछले वर्ष बच्चों को उपलब्ध करायी गयी पुस्तक को वापस लेना है. वापस ली गयी पुस्तक ही शैक्षणिक 2017- 18 में बच्चों को उपलब्ध करायी जायेगी. विभागीय सूत्रों की मानें, तो वार्षिक मूल्यांकन परीक्षा के दौरान करीब 25 से 30 प्रतिशत बच्चों ने ही पाठ्यपुस्तक लौटायी है. जिन बच्चों ने पाठ्यपुस्तक लौटायी है, वह भी उपयोग के लायक नहीं है.
जिले में करीब 97 हजार बच्चों को वापस ली गयी पुरानी पुस्तक उपलब्ध करायी गयी.
शिक्षा अधिकार कानून का उल्लंघन : बच्चों को समय पर पाठ्यपुस्तक उपलब्ध नहीं कराया जाना निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009 का घोर उल्लंघन है. इस अधिनियम में साफ तौर पर कहा गया है कि आठवीं कक्षा तक के छात्र- छात्राओं को सरकार मुफ्त शिक्षा उपलब्ध करायेगी. इसी क्रम में अधिनियम के तहत प्रारंभिक विद्यालय के बच्चों को मुफ्त में पाठ्यपुस्तक भी उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी राज्य सरकार को दी गयी है.
इसी कानून के तहत राज्य सरकार बच्चों को पाठ्य पुस्तक उपलब्ध कराती है. अब तक पाठ्यपुस्तक उपलब्ध नहीं कराना न केवल शिक्षा अधिकार कानून में दिये गये प्रावधान का उल्लंघन है, बल्कि राज्य सरकार की नीतियों पर भी बड़ा सवाल है. संविधान में भी शिक्षा की जिम्मेदारी राज्य को दी गयी है, लेकिन इस मामले में राज्य सरकार पूरी तरह असंवेदनशील बनी हुई है.
अर्द्धवार्षिक मूल्यांकन की हो रही तैयारी
बच्चे स्कूल जाते हैं और खेलकूद कर घर चले आते हैं
अद्धवार्षिक मूल्यांकन के नाम पर होती है खानापूर्ति
कहीं शिक्षक की कमी, तो कहीं झोपड़ी में चलती हैं कक्षाएं
पिछले वर्ष भी समय पर नहीं मिली थीं पुस्तकें
ऐसा नहीं है कि चालू शैक्षणिक सत्र के दौरान ही बच्चों को पुस्तक नहीं मिली है. पिछले शैक्षणिक सत्र में भी प्रारंभिक विद्यालय के छात्र- छात्राओं को सरकार समय पर पुस्तक उपलब्ध नहीं करा सकी थी. उसमें भी 30 से 40 प्रतिशत बच्चों को भी पाठ्यपुस्तक नसीब नहीं हुई. पिछले कुछ वर्षों से पाठ्य पुस्तक उपलब्ध कराने को लेकर यही हालत रही है. ये स्थिति देख कर तो यही लगता है कि सरकार की प्राथमिकता में प्रारंभिक शिक्षा है ही नहीं. यह सर्वविदित है कि शैक्षणिक सत्र का प्रारंभ अप्रैल से होता है. फिर सरकार अप्रैल से पूर्व पाठ्यपुस्तकों की छपायी क्यों नहीं करवा पाती है, जबकि हर जिले के द्वारा छात्र-छात्राओं के आधार पर पाठ्यपुस्तक की अधिसूचना बिहार शिक्षा परियोजना परिषद पटना को भेज दी जाती है.
उसके बावजूद यह स्थिति सरकार की शिक्षा के प्रति उदासीनता को ही परिलक्षित करती है.
विधानसभा में भी उठा था मामला : प्रारंभिक विद्यालय के छात्र- छात्राओं को समय पर पाठ्य पुस्तक उपलब्ध कराने को लेकर पिछले वर्ष विधानसभा के माॅनसून सत्र में सदर विधायक तारकिशोर प्रसाद ने सवाल भी उठाया था. विधायक श्री प्रसाद के सवाल के जवाब में सरकार की ओर से शिक्षा मंत्री डॉ अशोक चौधरी ने सदन को यह भरोसा दिलाया था कि शैक्षणिक सत्र 2017- 18 से प्रारंभिक विद्यालय के बच्चों को समय पर को पुस्तक उपलब्ध करा दी जायेगी. सरकार का यह दावा भी खोखला साबित हुआ है. शैक्षणिक सत्र के तीन माह बीतने के बाद भी बच्चों को पाठ्यपुस्तकों उपलब्ध नहीं हो सकी हैं. इस बात का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि बगैर पाठ्यपुस्तक के सरकारी विद्यालय में बच्चे किस तरह पढ़ते होंगे.
कहते हैं डीइओ
डीइओ श्रीराम सिंह ने कहा कि राज्य मुख्यालय से अधियाचना के आलोक में पाठ्यपुस्तक उपलब्ध नहीं करायी गयी है. पाठ्य पुस्तक उपलब्ध होते ही वितरण कराया जायेगा. वार्षिक मूल्यांकन के दौरान करीब 97000 बच्चों से पुस्तक वापस ली गयी थी. उन पुस्तकों को शैक्षणिक सत्र 2017- 18 में शामिल बच्चों के बीच वितरित कर दिया गया है. अभी 525584 छात्र-छात्राओं को पुस्तक उपलब्ध कराना है.
कहते हैं बाल अधिकार कार्यकर्ता
प्रारंभिक विद्यालय के बच्चों को पाठ्य पुस्तक उपलब्ध कराने को लेकर अभियान चलाने वाले संगठन बिहार बाल आवाज मंच के जिला समन्वयक मंसूर आलम ने कहा कि पाठ्य पुस्तक उपलब्ध कराने को लेकर सरकार की नीति अब तक स्पष्ट नहीं है. जबतक नीति स्पष्ट नहीं होगी, तो बच्चों को समय पर पुस्तक कैसे उपलब्ध हो सकेगी. शैक्षणिक सत्र के प्रारंभ होने के साथ ही पाठ्यपुस्तक बच्चों को पुस्तकें उपलब्ध हों, इसके लिये राज्य सरकार को एक ठोस नीति बनानी चाहिए.

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