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प्यास लगी, तो ढूंढ़ते रह जायेंगे पानी

अनदेखी. समाहरणालय से लेकर शहर के बाजारों तक नहीं है पेयजल की व्यवस्था भभुआ सदर : गरमी के इस मौसम में आप अगर बाजार जा रहे हैं या फिर किसी अन्य जरूरी काम से शहर में निकले हैं तो अपने साथ पीने का पानी जरूर लेते जाये. क्योंकि, आपको यदि बाजार में प्यास लगती है […]

अनदेखी. समाहरणालय से लेकर शहर के बाजारों तक नहीं है पेयजल की व्यवस्था
भभुआ सदर : गरमी के इस मौसम में आप अगर बाजार जा रहे हैं या फिर किसी अन्य जरूरी काम से शहर में निकले हैं तो अपने साथ पीने का पानी जरूर लेते जाये. क्योंकि, आपको यदि बाजार में प्यास लगती है तो कहीं पीने के लिए पानी नसीब नहीं होगा. जी हां, ये सच्चाई है नगर पर्षद भभुआ की. एक लाख की आबादी वाले भभुआ शहर के बाजारों में एक भी जलापूर्ति का साधन उपलब्ध नहीं है. लगाये गये चापाकल सुख चुके हैं या मेंटेनेंस के अभाव में पड़े हैं.
भभुआ शहर भले ही अन्य सुविधाओं में बड़े शहरों की तुलना में कहीं नहीं हो, लेकिन पानी की किल्लत अब यहां भी बड़े शहरों जैसी हो गयी है. यहां की आबादी के 80 प्रतिशत लोग अभी भी चापाकल के पानी पर निर्भर हैं. कहने को तो शहर में 800 से ज्यादा चापाकल पीएचइडी व नगर पर्षद ने लगवाये हैं. लेकिन, अभी भी शहर में जलापूर्ति की कोई ठोस योजना नहीं बनायी जा सकी है. गौरतलब है कि शहर के सार्वजनिक स्कूलों पर पीने के पानी की सुदृढ़ व्यवस्था नहीं है. हजारों लोग प्रतिदिन काम से यहां पहुंचते हैं.
इन्हें शुद्ध पानी मिलने की बात तो दूर चापाकल का पानी तक नसीब नहीं हो रहा. ऐसे में शहर में आये लोग बोतल बंद पानी पीने को विवश हैं.
चाय नाश्ते की दुकानों में करते हैं गला तर: गरमी का कहर इस बार अप्रैल से ही शुरू हो चुका है. इसका असर हर तरफ देखने को मिल रहा है. लोगों के हलक भी सूख रहे हैं, लेकिन समाहरणालय हो या मुख्य बाजार कहीं भी पेयजल की व्यवस्था नहीं की जा सकी है.
समाहरणालय में विभिन्न कार्यों से सैकड़ों लोग आते हैं, लेकिन प्यास बुझाने की कोई व्यवस्था नहीं रहने के चलते या तो परिसर में लगे चापाकल से अपनी प्यास बुझाते हैं या फिर यहां चाय नाश्ते की दुकानों में जाकर अपने गले को तर करते हैं. कुछ ऐसी ही हालत शहर के एकता चौक, सदर अस्पताल, पटेल चौक, प्रखंड कार्यालय, जेपी चौक, यहां तक की गरमी के इस मौसम में अखलासपुर व पूरब पोखरा बस स्टैंड से यात्रा करनेवाले यात्रियों को भी पानी के लिए भटकना पड़ता है. एकता चौक पर बाजार करने आयी बेतरी की सुनैना देवी व राखी कुमारी आदि का कहना था कि कब से चापाकल ढूंढ़ रही हैं, जहां भी देखो वहां बंद चापाकल मिल रहे हैं. प्यास बुझाने के लिए धर्मशाला जाना पड़ा.
सदर अस्पताल, कचहरी व नगर थाने में भी पीने के पानी की किल्लत : शहर के प्रमुख जगहों में से जिले का प्रमुख सदर अस्पताल व भभुआ थाना भी पेयजल की किल्लत से अछूता नहीं है. सदर अस्पताल के बाहरी परिसर में मात्र एक चापाकल चालू हालत में है, जो मरीजों व उनके परिजनों के प्यास बुझाने के काम में आ रहे हैं. नगर थाना में भी प्यास बुझाने की कोई व्यवस्था नहीं है. थाना परिसर में भी पुलिस के जवान व अधिकारी या तो वहां लगे टंकी के पानी से प्यास बुझाते हैं या फिर बाजार में बिक रहे बोतल का पानी लेकर अपना काम चला रहे हैं.
थाना प्रभारी राकेश कुमार सिंह भी यह स्वीकार करते हैं कि थाने में पीने के पानी का कोई बेहतर व्यवस्था नहीं है. फरियाद लेकर आनेवाले लोगों के लिए बाहरी परिसर में मात्र एक चापाकल है, जिससे लोग अपनी प्यास बुझाते हैं. भभुआ कोर्ट में आज भी वकील हो या फिर मुव्वकिल चापाकल से ही प्यास बुझाते हैं. कचहरी परिसर में तो लोगों की प्यास बुझ जाती है. लेकिन, कचहरी के बाहरी परिसर व उसके आसपास के क्षेत्रों में पेयजल के लिए लोगों को दौड़ लगानी पड़ती है या फिर होटलों से या बोतलबंद पानी से काम चलाना पड़ता है.
प्याऊ की स्थिति खराब : शहर में आनेवाले लोगों के प्यास बुझाने के लिए जगह-जगह प्याऊ का निर्माण कराते हुए पेयजल की व्यवस्था की गयी थी. लेकिन, अनियमितता व नगर पर्षद अधिकारियों की उदासीनता ने इसे बेकार साबित कर दिया है. शहर में स्थापित किसी प्याऊ का नल ही क्षतिग्रस्त हो चुका है, तो कहीं प्याऊ को किसी ने अपनी जागीर बना लिया है, तो कहीं प्याऊ घर का पानी स्नान व ठेले पर खाद्य पदार्थ बेचने वाले दुकानदारों के बरतन धोने के काम में आता है.
शहरवासी कहते हैं कि भारी कमीशनखोरी के चलते प्याऊ घर केवल नाम के रह गये हैं. शहर के विभिन्न विभागों व नप द्वारा लगभग 800 चापाकल लगवाये गये हैं. इन चापाकलों में अभी करीब 250 चापाकल मरम्मत या फिर अनियमितता के चलते बेकार पड़े हुए हैं. इन चापाकलों की मरम्मत का दंभ भले ही नगर पर्षद भरता हो, लेकिन हकीकत इससे बिल्कुल परे है.

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