सुरौंधा गांव में निवास करते हैं महादलित समुदाय के लोग
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विकास की रोशनी से कोसों दूर है सुरौंधा गांव
सुरौंधा गांव में निवास करते हैं महादलित समुदाय के लोग गांव आने जाने के लिए जर्जर सड़क होने के कारण लोगों को होती है काफी परेशानी 600 लोगों के पानी पीने के लिए चालू है मात्र दो चापाकल जमुई : आजादी के सात दशक बीत जाने के बाद भी जिला मुख्यालय से लगभग आठ किलोमीटर […]
गांव आने जाने के लिए जर्जर सड़क होने के कारण लोगों को होती है काफी परेशानी
600 लोगों के पानी पीने के लिए चालू है मात्र दो चापाकल
जमुई : आजादी के सात दशक बीत जाने के बाद भी जिला मुख्यालय से लगभग आठ किलोमीटर दूर खैरा प्रखंड क्षेत्र के खैरा पंचायत स्थित सुरौंधा गांव में निवास करने वाली लगभग 600 महादलित आबादी आज भी सड़क,पानी और अन्य सरकारी सुविधाओं से महरुम है.कहने को तो इस गांव में एक दर्जन से अधिक पक्के मकान भी हैं और इस गांव के एक दर्जन से अधिक लोग बंगाल,ओडिशा समेत विभिन्न जगहों में कोयला खदान में कार्य करते थे.लेकिन विकास की मूलभूत रौशनी आज तक गांव में सही से नहीं पहुंच पायी है.ग्रामीणों की माने तो गांव तक जाने के लिए एक मात्र कच्ची सड़क है
जो बिल्कुल जर्जर है और इस सड़क पर किसी भी मौसम में पैदल या वाहन से चलना दूभर है.70 घर में से मात्र अभी तक 25 से 26 घर के लोगों को ही इंदिरा आवास का लाभ मिल पाया है.बांकी के लगभग एक दर्जन लोग अपना पक्का मकान बना कर रहते हैं.किंतु इसके बाबजूद भी लगभग 33 घर के लोग अपने फूस के मकान में किसी तरह जिन्दगी गुजर बसर करने को विवश हैं. गांव के अधिकांश लोग आसपास स्थित चिमनी भट्टे और लोगों के घरों में मेहनत मजदूरी करके किसी तरह अपना जीवन यापन करते हैं.किसी भी मौसम में हमलोगों को अपना पेट पालने और घर चलाने के लिए काफी परिश्रम करना पड़ता है.हालांकि गांव में एक मध्य विद्यालय और आंगनबाड़ी केंद्र भी है.जहां गांव में रहने वाले लोगों के बच्चे अपनी पढाई लिखाई करते हैं.लेकिन सरकार के द्वारा चलायी जा रही कई योजनाएं आज तक हमलोगों तक नहीं पहुंच पायी है जिसके कारण इस ग्रामीणों के जीवन स्तर में कोई सुधार नहीं हो पाया है.
विकास योजना से महरूम हैं ग्रामीण
ग्रामीण पूजन मांझी,भीमल मांझी,शांति देवी,रामस्वरुप मांझी,रामविलास मांझी,अनिता देवी,सुनिता देवी व दरोगी मांझी समेत दर्जनों ग्रामीण बताते हैं कि गांव में पक्की सड़क नहीं होने के कारण हमलोगों को बीमार पड़ने वाले लोगों को खटिया पर टांग कर अस्पताल ले जाना पड़ता है. कई बार तो प्रसव के लिए जाने वाली महिलाओं को भी काफी फजीहत होती है.कई बार तो गंभीर रुप से बीमार लोगों की इलाज के लिए ले जाने के दौरान मौत भी हो गयी है.हमारे गांव तक आने के लिए कोई भी चारपहिया वाहन चालक तैयार ही नहीं होता है.हमारे गांव में पानी पीने के लिए मात्र दो चापाकल है.जिसके कारण हमलोगों को पेयजल के लिए काफी किल्लत होती है.हमारे गांव के लगभग आधा दर्जन से अधिक बच्चे बाहर रह कर पढाई कर रहे हैं.पंचायत चुनाव,विधानसभा चुनाव या लोकसभा चुनाव आने पर विभिन्न पार्टी के नेता सिर्फ सड़क और पानी की व्यवस्था करने का आश्वासन देकर चले जाते हैं.लेकिन इसके बाद हमारी कोई नहीं सुनता है.सरकार के द्वारा महादलितों के लिए संचालित कई योजनाओं के बारे में ना तो हमलोगों को जानकारी है और ना ही हम तक ये सारी योजनाएं हम तक पहुंच पायी है.
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