।। राजेश पांडेय ।।
काला मटिहनिया (कुचायकोट) : हाय रे किस्मत! यहां अपने ही हाथों से अपनी बसी-बसायी दुनिया को उजाड़ी जा रही है. गंडक नदी की तबाही से पूरा इलाका भयभीत है. नदी का मिजाज बिगड़ा हुआ है. रातों-रात काला मटिहनिया का बढ़ई टोला नदी के गर्भ में समा चुका है. इससे यहां के लोगों का दिन का चैन व रात की नींद गायब हो गयी है. नदी की बेरुखी से यहां चारों तरफ तबाही ही तबाही है.
बढ़ई टोला गांव नक्शा से मिट गया है, जबकि यादव टोले में शनिवार की सुबह से ही नदी के निशाने पर है. तेजी से कटाव हो रहा है. गांव के जटा शंकर यादव, राम चंद्र यादव, जंग बहादुर यादव, रवींद्र यादव, हीरा यादव, सुरेंद्र यादव, दशरथ यादव, दुर्गा राय, दुर्लभ यादव समेत पूरे गांव के लोग अपने-अपने घरों को तोड़ कर सुरक्षित स्थान की तलाश में है.
आंखों में आंसू और दिल में आक्रोश लिये अपने घर लोग उजाड़ रहे हैं. इनको इस बात का खौफ है कि अगले 24 घंटे में नदी इस पूरे गांव के अस्तित्व को मिटा देगी, जो बच जायेगा उससे कहीं और घर बनाने में मदद मिलेगी. तबाही के बाद लोग सुरक्षित स्थान पर पॉलीथिन डाल कर लोग वक्त काट रहे हैं. वे बंजारों की तरह फटेहाल हो गये हैं. नदी ने पूरे गांव को तबाह कर दिया है.
ऐसी स्थिति होगी लोगों ने कभी सोचा भी नहीं था. तबाही की खबर सुन काला मटिहनिया पंचायत में भाजपा नेता उमेश प्रधान, दुर्ग मटिहनिया के मुखिया लव नारायण सिंह, मुखिया राजकिशोर साह, बीडीसी सदस्य चंद्रभान सिंह, भाजपा किसान मोरचा के नरेंद्र ओझा, डीके गुप्ता, अमीर पटेल समेत बड़ी संख्या में लोग पहुंच कर प्रशासन की उदासीनता और लापरवाही पर गंभीर सवाल उठाये हैं. डीएम से शिकायत कर त्वरित कार्रवाई की मांग की है.
* काला मटिहनिया का सड़क संपर्क भंग
गंडक नदी के कटाव के कारण दाहा नदी में जानेवाली सहायक नदी भी उफना गयी है. इस कारण काला मटिहनिया का सड़क संपर्क भंग हो गया है. लोगों के यहां से निकलने के लिए मात्र एक नाव ही सहारा है.
सरकारी स्तर पर नाव की व्यवस्था अभी तक नहीं की गयी है. लोग जान की बाजी लगा कर अपने-अपने सामान को सुरक्षित स्थानों पर ले जाने में लगे हैं. घरों को तोड़ कर ईंट से लेकर झोंपड़ी तक को सुरक्षित किया जा रहा है. गंडक नदी जिस तरह कटाव कर रही है, उससे पूरा इलाका नदी के गर्भ में समाने की स्थिति में है.
* ..अब कौन देगा सहारा
गंडक नदी ने पहले लहलहाती फसल को बरबाद किया, जिसे आंखों में आंसू लिये यहां के लोगों ने बरदाश्त कर लिया. अब जब घर ही नहीं रहा तो इन्हें कौन सहारा देगा. कहीं सिर छुपाने के लिए जगह नहीं है. घर की महिलाएं-बच्चे सब परेशान हैं. पूरा माहौल हृदयविदारक बना हुआ है.
ऐसे में बढ़ई टोले के रहनेवाले अशोक मिश्र की दशा देख कर सबों की आंखों से आंसू निकल आये. अशोक मिश्र को अपनी बहन की शादी करनी थी. कार्तिक में शादी की बात चल रही थी. लेकिन प्रकृति के कहर ने ऐसा कर दिया कि अब शादी भी मुश्किल हो गयी है.
खेत नदी में समा गया. घर के आगे लगे पेड़, बगीचा और घर, नदी में समा गया. 24 घंटे में 18 जगह प्लास्टिक तान कर नदी की तबाही देखनी पड़ी है. 19 जगह अब पॉलीथिन लगा कर बच्चे और परिवार के साथ अशोक आंसूओं में डूबे हैं. अब एक हाथ जमीन नहीं है, जहां जीवन गुजार सके. यह सिर्फ अशोक की ही नहीं, बल्कि पूरे गांव की यही स्थिति है.
* कलावती की उजड़ गयी दुनिया
बड़ी मुश्किल से कलावती ने बढ़ई टोले में अपना घर बनाया था. इस घर में उम्मीदों के सपने संजाये थे. गंडक नदी की तबाही ने कलावती की दुनिया उजाड़ दी है. एक अदद बोरा भी अपने घर से नहीं निकाल सकी. पूरा घर नदी के गर्भ में समा गया. कलावती नदी के किनारे बैठ कर फूट-फूट कर रो रही थी. अब बेसहारा हुई कलावती जाये तो जाये कहां. किसके सहारे रहे, यह यक्ष प्रश्न बना हुआ है.
कोई सहारा देने वाला भी नहीं है. सब लोग अपनी-अपनी जान बचाने में लगे हैं. सभी अपने बाल-बच्चों के साथ सुरक्षित स्थान की तलाश में हैं. कलावती अकेले क्या करेगी. प्रशासन की तरफ से अब तक इनको पॉलीथिन भी नहीं मिला है. उसे पेड के नीचे नदी की गरजती धारा के खौफ के बीच रात गुजारनी पड़ रही है.