गोपालगंज : आखिर बिना शिक्षक कैसे उपस्थित हुए उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में 75 फीसदी छात्र. जिले के कुछ उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों को छोड़ दें, तो अधिसंख्य विद्यालयों में इंटर पढ़ाने के लिए शिक्षक नहीं है. ऐसे में बच्चों की पढ़ाई आखिर किसने पूरी करायी. कैसे 75 फीसदी उनकी उपस्थिति बनी.
वर्ष 2011 से करोड़ों रुपये की पोशाक की राशि उठाने के लिए कागज में ही उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों ने अपना पूरा खेल किया. कागज पर उपस्थिति दिखा कर राशि उठा ली गयी. डीइओ सुरेश प्रसाद ने इस प्रकरण को लेकर घंटों मंथन किये. सवाल यह है कि अब विद्यालय खुलने के बाद ही वास्तविकता की जांच हो पायेगी.
बच्चों के नाम पर उठाये गये पोशाक की राशि सचमुच उन तक पहुंचे की नहीं, यह भी जांच का विषय बना हुआ है. अगर बच्चों तक पहुंची, तो क्या यह धांधली नहीं. जब प्लस-टू के शिक्षक ही नहीं थे, तो इतनी बड़ी धांधली कैसे की गयी. उधर, डीएम कृष्ण मोहन ने भी इस प्रकरण को गंभीरता से लेते हुए जांच कराने का फैसला किया है.
* धरमपरसा में जांच से खुली थी पोल
तत्कालीन डीएम पंकज कुमार ने अपने वरीय उपसमाहर्ता धीरेंद्र कुमार मिश्र, शिक्षा विभाग के कार्यक्रम पदाधिकारी पारसनाथ, उमा पासवान व सहायक कार्यक्रम पदाधिकारी की टीम गठित कर मांझा प्रखंड के धरमपरसा उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की जांच का आदेश दिया है.
यह टीम 23 जनवरी, 2013 को विद्यालय में जांच करने पहुंची, जहां पाया गया कि विद्यालय मे कुल छात्रों की संख्या 756 है, जिसमें कुल कमरों की संख्या 13 है. चार खपरैल, दो करकट व सात पक्का कमरे हैं. वर्ग 11 वीं व 12 वीं में एक भी छात्र-छात्रा उपस्थित नहीं थे और न ही उनकी उपस्थिति पंजी थी. नामांकन वर्ष 2011 में 11 वीं में 120 व वर्ष 2012 में 155 बच्चों का नामांकन था. जांच टीम में पाया कि बिना पढ़ायी के 275 बच्चों का सादे कागज पर 75 फीसदी उपस्थिति दिखा कर पोशाक योजना की राशि उठा ली गयी.
* शिक्षा विभाग के आदेश ताक पर
धरमपरसा मामले में जिला प्रशासन की तरफ से डीडीसी रहे मसलाहुदीन खां ने जिला शिक्षा पदाधिकारी व कार्यक्रम पदाधिकारी को तत्काल प्रभाव से कार्रवाई करने की अनुशंसा करते हुए कहा कि दोषी पर कार्रवाई करते हुए तत्काल सूचित करें.
छात्राओं को शौचालय की समस्या से लेकर पोशाक मे गड़बड़ी में कार्रवाई करनी थी. विभाग ने इस आदेश को तक पर रख कोई कार्रवाई नहीं हुई, तो पुन : डीडीसी ने रिमाइंडर भेज कर की गयी कार्रवाई की जानकारी मांगी.
इस पर भी विभाग ने चुप्पी साध ली, तो पुन: पत्रांक सात मु 16 मई, 2013 को शिक्षा विभाग को स्मार पत्र भेज कर की गयी कार्रवाई से अवगत कराने का आदेश दिया गया. यह आदेश शिक्षा विभाग के फाइलों में दफन होकर रह गया. आज तक इस मामले में न तो कोई कार्रवाई हुई और न ही इसके अलावे किसी अन्य विद्यालयों की जांच करायी गयी.