गौरतलब है कि गांधी मैदान में क्षेत्र के सैकड़ों लोग रोज सुबह-शाम टहलने आते हैं. सांस्कृतिक कार्यक्रम, प्रदर्शनी जैसे कई तरह के आयोजन भी यहां होते हैं, लेकिन मैदान के रखरखाव पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है. मैदान की चहारदीवारी जगह-जगह टूट गयी है. ग्राउंड की हालत भी दयनीय है. पूरा मैदान ही जानवरों का चारागाह बन कर रह गया है. यहां सुरक्षा का भी कोई इंतजाम नजर नहीं आता है. कोर्ट के आदेश के बावजूद गांधी मैदान के क्षेत्रफल के भीतर अवैध तरीके से बने म्यूजियम, पथ निर्माण विभाग के कार्यालय, स्टेडियम, बीएसएनएल कार्यालय को हटाने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया. और तो और गांधी मैदान के उत्तर व पूरब की तरफ दुकानें सजी हुई हैं और गांधी मैदान में अवैध तरीके से ऑटो स्टैंड बना दिया गया है. स्थानीय लोगों का कहना है कि कोर्ट के आदेश की अनदेखी कर मैदान में अवैध निर्माण किया जा रहा है.
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तीन साल बाद भी हाइकोर्ट के आदेश पर अमल नहीं
गया : गांधी मैदान को अतिक्रमणमुक्त कराने के लिए हाइकोर्ट ने तीन वर्ष पहले ही राज्य के मुख्य सचिव को आदेश दिया था, लेकिन मैदान में बनाये गये अवैध ढांचों को अब तक नहीं तोड़ा गया है. अतिक्रमण हटाने के नाम पर पिछले वर्ष सब्जी मार्केट और बाल विकास परियोजना कार्यालय को जरूरत तोड़ा गया, […]
गया : गांधी मैदान को अतिक्रमणमुक्त कराने के लिए हाइकोर्ट ने तीन वर्ष पहले ही राज्य के मुख्य सचिव को आदेश दिया था, लेकिन मैदान में बनाये गये अवैध ढांचों को अब तक नहीं तोड़ा गया है. अतिक्रमण हटाने के नाम पर पिछले वर्ष सब्जी मार्केट और बाल विकास परियोजना कार्यालय को जरूरत तोड़ा गया, लेकिन उनका मलबा अब भी वहीं पड़ा हुआ है.
वर्ष 2013 में दायर हुई थी जनहित याचिका: गौरतलब है कि गांधी मैदान को अतिक्रमणमुक्त कराने के लिए प्रतिज्ञा संस्था की ओर से वर्ष 2013 में हाइकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गयी थी. मामला दायर करने से पहले संस्था की ओर से सूचना का अधिकार (आरटीआइ) अधिनियम के तहत मैदान में बने ढांचों को लेकर कई तरह की सूचनाएं मांगी गयी थीं. जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए हाइकोर्ट ने मुख्य सचिव को आवश्यक कदम उठाने का आदेश दिया था. आदेश के बाद आनन-फानन में राजस्व विभाग के प्रधान सचिव ने गांधी मैदान का निरीक्षण किया, मगर कोई कार्रवाई नहीं की गयी. इसके बाद 2015 में संस्था की ओर से हाइकोर्ट में अवमानना का मामला दायर किया गया.
आरटीआइ में जो जवाब मिले थे: प्रतिज्ञा के अध्यक्ष ब्रजनंदन पाठक ने कहा कि आरटीआइ में अधिकारियों से गांधी मैदान के क्षेत्रफल, जिस विभाग का भवन है, उसे जमीन हस्तांतरित करने से संबंधित सूचनाएं, भवनों के नक्शे की स्वीकृति से जुड़े कागजात व अन्य दस्तावेज मांगे गये थे. उन्होंने कहा कि आरटीआइ के जवाब में कहा गया था कि भवन बनाने के लिए किसी विभाग को जमीन हस्तांतरित नहीं की गयी है. इसके साथ ही नगर निगम से जानकारी दी गयी कि किसी भी भवन निर्माण के लिए नक्शा स्वीकृत नहीं कराया गया है. श्री पाठक ने बताया कि अवैध निर्माण से जुड़े तथ्य मिलने के बाद अधिकारियों से अतिक्रमण हटाने की मांग की गयी, लेकिन किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया. मजबूर होकर उन्हें अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा. उन्होंने अफसोस जताते हुए कहा कि गांधी मैदान में बने बाल विकास परियोजना कार्यालय को तो तोड़ा गया, लेकिन उसी के बगल में मत्स्य विभाग का कार्यालय बनाया जा रहा है. उन्होंने कहा कि जिलाधिकारी को कई बार इसकी सूचना दी गयी, लेकिन निर्माण कार्य नहीं रुका.
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