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स्वामीजी ने अध्यात्म को व्यावहारिक रूप दिया

स्वामीजी ने अध्यात्म काे व्यावहारिक रूप दिया स्वामी राघवाचार्यजी भारतीय सभ्यता, संस्कृति व अध्यात्म के विद्वान ही नहीं, वरन शीर्षस्थ संरक्षक भी थे. वह जाे भी कहते थे, उसका प्रमाण शास्त्राें द्वारा अविकल रूप में प्रस्तुत करने में सिद्धहस्त थे. मुझे उनके समीप्य का साैभाग्य मिला है. जब-जब उनके समक्ष उपस्थित हाेता, अध्यात्म के संबंध […]

स्वामीजी ने अध्यात्म काे व्यावहारिक रूप दिया स्वामी राघवाचार्यजी भारतीय सभ्यता, संस्कृति व अध्यात्म के विद्वान ही नहीं, वरन शीर्षस्थ संरक्षक भी थे. वह जाे भी कहते थे, उसका प्रमाण शास्त्राें द्वारा अविकल रूप में प्रस्तुत करने में सिद्धहस्त थे. मुझे उनके समीप्य का साैभाग्य मिला है. जब-जब उनके समक्ष उपस्थित हाेता, अध्यात्म के संबंध में कुछ नवीन जानकारी मिलती थी. पिछले 18-19 वर्षाें से गया जिला प्रशासन की आेर से पितृपक्ष के अवसर पर जाे स्मारिका निकल रही है, उसके प्रकाशन में उनका यथेष्ट सहयाेग मिलता था. इस प्रकाशन के लिए उनसे जब भी निवेदन किया, उन्हाेंने उपयुक्त आलेख देने की कृपा की. साथ ही, पितृपक्ष के अवसर पर प्रतिदिन संध्या समय तीर्थयात्रियाें काे पितर पूजा के संबंध में अपना प्रवचन दिया करते थे. सच पूछा जाये, ताे अध्यात्म काे भाैतिक धरातल पर व्यावहारिक रूप में उतारने का काम जिस ढंग से किया, वह बराबर स्मरण किया जाता रहेगा. उनकी दिनचर्या भी ऐसी ही थी. सदा सर्वदा पूजा-पाठ में लगे रहते, किंतु जाे भी जिस समय आते, उन्हें व्यावहारिक रूप से धर्मपालन का उपदेश देते थे. दूसराें का कष्ट देख कर उसके निवारण के लिए जहां तक हाेता चुपचाप उपाय स्वयं कर देते थे. वीतरागी हाेते हुए भी गृहस्थ काे अच्छी तरह गृहस्थी चलाने का तथा संन्यासी काे कठाेरतापूर्वक वानप्रस्थ जीवन व्यतीत करने का उपदेश देते. मन में किसी प्रकार का काेई भेद नहीं. सभी काे हृदय से प्यार करते थे. कुछ वर्ष पहले की बात है, एक दिन मैं आैर गयाजी के एक वरीय अधिवक्ता शिवचन सिंह उनके मठ में गये. स्वामीजी ने हमलाेगाें काे कुछ प्रसाद खिलाया. शिववचन बाबू ने कहा कि स्वामीजी, हमलाेगाें ने प्रसाद ताे खा लिया. लेकिन, आज पकाैड़ी खाने की इच्छा है. यह कहना था कि 10 मिनट में ही पकाैड़ी भरी थाली आ गयी. हमलाेगाें ने स्वामीजी की उपस्थिति में ही पकाैड़ी का आनंद लिया. गया प्रशासन द्वारा पितृपक्ष मेले का या काेई भी आयाेजन का जब उद्घाटन हाेता, ताे स्वस्तीवाचन के लिए उन्हें आमंत्रित किया जाता. इन अवसराें पर स्वामी रामकुमारजी भी साथ रहते आैर शंखध्वनि से आयाेजन का प्रारंभ हाेता. आज ऐसा काेई नहीं दिखता, जाे अध्यात्म काे आम जनता के समक्ष व्यावहारिक परिवेश प्रदान कर सके. उनका बैकुंठवास, वैयक्तिक के अतिरिक्त पूरे गयाधाम के आध्यात्मिक जीवन के लिए एक अपूरणीय क्षति है. स्वामी जी सदा-सर्वदा गयाजी के विकास तथा आध्यात्मिक उन्नति के लिए प्रयासरत रहते थे. मुझे पूरा विश्वास है, आज भी वह जहां हैं, वहां से गयाधाम के सर्वताेमुखी विकास के लिए निश्चय ही आशीर्वाद देते रहेंगे. -गाेवर्द्धन प्रसाद सदय

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