गया : एसएसपी मनु महाराज के समक्ष सरेंडर करनेवाले भाकपा-माओवादी संगठन के सबजोनल कमांडर बाबूचंद ने मीडिया को बताया कि उनका परिवार महादलित परिवार से है. वह मोहनपुर थाने के धनहरि गांव के रहनेवाले हैं. वर्षों पहले गांव के दबंगों व सामंत प्रवृति के लोगों की हरकतों से तंग आकर उसने वर्ष 2003 में एमसीसी (अब भाकपा-माओवादी) का दामन थाम लिया.लेकिन, तब उसकी उम्र 10-12 वर्ष रही होगी. उसी समय उसकी शादी बोधगया थाने के रतिबिगहा गांव के रहनेवाले अंबिका मांझी की बेटी मंजू से हो गयी.
उन्हें दो बेटे व दो बेटियां हैं. वर्ष 2004 में वह जहानाबाद जेल ब्रेककांड में भी शामिल हुआ. इसके बाद वह कई नक्सली घटनाओं में शामिल हुआ. बेहतर कामकाज करने के दौरान संगठन ने उसे एरिया कमांडर बना दिया. इसके बाद सबजोनल कमांडर भी बना दिया. उन्होंने बताया कि संगठन में कामकाज करने के दौरान उसके पीछे पुलिस, सीआरपीएफ व कोबरा की टीम लग गयी. वह जब भी परिवार से मिलने अपने घर आता, तो उसके घर पर पुलिस की छापेमारी हो जाती थी. लेकिन, हर बार वह पुलिस को धोखा देकर वहां से निकल जाता था. इन्हीं कारणों से वह विगत 12 वर्षों से पुलिस की पकड़ में नहीं आ रहा था.
बच्चों की पढ़ाई व परवरिश की चिंता में लौटने को हुआ विवश
सबजोनल कमांडर ने बताया कि बच्चों की उम्र बढ़ती जा रही थी. उनकी परवरिश व पढ़ाई को लेकर उनकी चिंता बनी रहती थी. इसी दौरान उसकी पत्नी, मां व सास बार-बार दबाव डालती थीं कि कब तक भाग-दौड़ करते रहेंगे. सरेंडर कर दो. उन्होंने बताया कि पिछले दिनों ललन भूईंया भी पुलिस के पास चला गया, तो उसके परिवारवालों को सरकार ने काफी मदद की है. परिजनों के दबाव में उसने सोच-विचार किया और एक युवक के माध्यम से एसएसपी मनु महाराज, सिटी एसपी रविरंजन कुमार व एएसपी (नक्सल) मनोज कुमार यादव से संपर्क किया.
मारपीट करने की सता रही थी चिंता : सबजोनल कमांडर ने बताया कि उसने जब सरेंडर करने का मन बनाया, तो परिचितों ने काफी डराया और कहा कि पुलिस के पास जाओगे तो वे पीट-पीट कर देह-हाथ बराबर कर देंगे. इसके बावजूद वह अपने साथी रामबली भूईंया के साथ हथियार लेकर पुलिस के पास आ गया. लेकिन, यहां पुलिस ने उनके साथ कुछ ऐसा व्यवहार नहीं किया. पुलिस के वरीय अधिकारियों ने उनके साथ दोस्ताना व्यवहार किया.
…फिर भी समाज की मुख्यधारा से जुड़ कर रहेंगे : सबजोनल कमांडर ने बताया कि उसने समाज की मुख्यधारा से भटक कर गलत राह पकड़ ली थी. लेकिन, उसे गलती का अहसास हुआ और पुन: समाज की मुख्यधारा में लौट आया. संगठन में रहने के दौरान वह कई नक्सली कांडों में शामिल रहा.
इन मामलों में सरकार उसे फांसी पर चढ़ा दे, फिर भी कानून का साथ नहीं छोड़ेगा. कानून पर विश्वास किया है, अब कानून ही न्याय करेगा. कम से कम इतना तो अवश्य होगा कि अब उसके बच्चों का भविष्य बेहतर होगा. चारों बच्चे पढ़ जायेंगे. दोनों बेटियों की शादियों की जिम्मेवारी है. घर बस जाये, बस यही इच्छा है.