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गरमी से सेहत को खतरा, मरीज बढ़े

गया: मानव शरीर का सामान्य तापमान 33.5 डिग्री सेल्सियस होता है. इतना तापमान बाहर भी रहे, तो कोई दिक्कत नहीं. पर, बाहरी वातावरण में तापमान अगर इससे अधिक होता है, तो वह शरीर और मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं होता. इससे शारीरिक कष्ट का अनुभव तो होता ही है, सेहत भी बुरी तरह […]

गया: मानव शरीर का सामान्य तापमान 33.5 डिग्री सेल्सियस होता है. इतना तापमान बाहर भी रहे, तो कोई दिक्कत नहीं. पर, बाहरी वातावरण में तापमान अगर इससे अधिक होता है, तो वह शरीर और मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं होता. इससे शारीरिक कष्ट का अनुभव तो होता ही है, सेहत भी बुरी तरह प्रभावित होती है.

बाहरी वातावरण में तापमान बढ़ने पर शरीर का तापमान भी स्वाभाविक रूप से बढ़ता है. शरीर भी बाहरी तापमान को सोख कर संतुलन की स्थिति पैदा करता है. पर, इसमें शारीरिक दशा के बिगड़ने का खतरा बढ़ जाता है. खास कर बूढ़े व बच्चों में ज्यादा. ऐसी स्थिति में बच्चों व बूढ़ों का खास ख्याल रखना जरूरी है, ताकि वे ज्यादा प्रभावित न हों. अपनी शारीरिक दशा के चलते शिशु व वृद्ध, दोनों ही तापमान को सहने के लिहाज से सामान्य प्रौढ़ व्यक्ति की तुलना में ज्यादा नाजुक होते हैं.

इस बीच, गरमी बढ़ने के चलते अस्पतालों में मरीजों की संख्या भी बढ़ी है. जयप्रकाश नारायण अस्पताल के उपाधीक्षक डॉ एसजेड अहसन ने बताया कि तापमान व गरमी में हाल की वृद्धि के चलते मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ी है. सन स्ट्रोक की चपेट में आये लोग ज्यादा संख्या में अस्पताल पहुंचने लगे हैं. उनके मुताबिक, करीब 10 प्रतिशत मरीज पिछले कुछ दिनों में ही बढ़ गये हैं.
फिजिशियन डॉ आरबी सिंह के मुताबिक, गरमी के मौसम में तापमान ज्यादा होने की स्थिति में अगर कोई अचानक बाहर धूप में चला जाता है, तो शरीर का तापमान भी तेजी से बढ़ने लगता है. इस दौरान तेजी से शरीर में पानी की कमी बढ़ती है.

यह स्थिति डिहाइड्रेशन की दशा को बुलावा देती है. डायरिया और डिसेंट्री का भी खतरा बढ़ जाता है. डायरिया व डिसेंट्री की स्थिति में डिहाइड्रेशन और तेजी से बढ़ता है. यही वह स्थिति होती है, जब व्यक्ति दुर्बल होने के साथ-साथ बहुत आसानी से लू का शिकार भी हो जा सकता है. डॉ सिंह के अनुसार, बेहतर तो यह कि ऐसी स्थिति आये नहीं, इसका ही उपाय किया जाये. अगर धूप व ताप की चपेट में कोई आ भी जाये, तो सबसे पहले उसे ठंडे स्थान में रख कर भींगे कपड़े से उसके शरीर को बार-बार पोंछ कर उसके तापमान को कम करने की कोशिश करनी चाहिए. संभव हो, तो भीगे कपड़े ओढ़ा कर पंखा भी चला देना चाहिए.

बाहरी वातावरण में तापमान की वृद्धि का असर चमड़े पर भी गहरा होता है. चर्म रोग विशेषज्ञ डॉ संकेत नारायण सिंह ने बताया कि तेज धूप व तापमान के चलते न्यूरो डर्माटाइटिस, सनटेक डर्माटाइटिस, इनपेटाइगो और टीनिया जैसी बीमारियों का खतरा तेजी से बढ़ जाता है.
गरमी बढ़ने पर तेजी से ऐसी बीमारियों के मरीज भी बढ़ने लगते हैं. इन बीमारियों से बचने के लिए पसीना से बचना ज्यादा प्रभावी कदम हो सकता है. डॉ सिंह ने बताया कि बाहर से आने पर पसीने हुए रहने की स्थिति में गीले कपड़े से पसीने को पोंछ कर साफ कर देना चाहिए. कपड़े भी रोज बदल ही लेने चाहिए. उन्होंने बताया कि बूढ़े और बच्चों के मामले में ये सावधानियां ज्यादा जरूरी होती हैं, क्योंकि ये खुद से अपना ध्यान नहीं रख सकते.

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