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नये आयुक्त से आयुर्वेद मेडिकल कॉलेज को हैं कई उम्मीदें, 2009 से ही नामांकन पर रोक

गया: 1972 में स्थापित गया के आयुर्वेद मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल से डॉक्टरी (बीएएमएस) कर अब तक एक हजार से अधिक लोग डॉक्टर बन चुके हैं. लेकिन, 2009 से इस कॉलेज में बीएएमएस में नामांकन पर रोक लगी है. यह रोक सेंट्रल कौंसिल ऑफ इंडियन मेडिसिन (भारतीय चिकित्सा केंद्रीय परिषद) ने प्राचार्य समेत सभी 30 […]

गया: 1972 में स्थापित गया के आयुर्वेद मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल से डॉक्टरी (बीएएमएस) कर अब तक एक हजार से अधिक लोग डॉक्टर बन चुके हैं. लेकिन, 2009 से इस कॉलेज में बीएएमएस में नामांकन पर रोक लगी है. यह रोक सेंट्रल कौंसिल ऑफ इंडियन मेडिसिन (भारतीय चिकित्सा केंद्रीय परिषद) ने प्राचार्य समेत सभी 30 शिक्षकों को अयोग्य बता कर लगायी है. तब से कॉलेज में पढ़ाई-लिखाई ठप है. कॉलेज के अस्तित्व पर स्थायी रूप से ग्रहण लग चुका है. आखिर, इसके लिए कौन जिम्मेवार है- सीसीआइएम, राज्य सरकार या शासी निकाय. उल्लेखनीय है कि प्रमंडलीय आयुक्त शासी निकाय के पदेन अध्यक्ष होते हैं. लेकिन, दिसंबर 2009 के बाद से शासी निकाय की बैठक ही नहीं हुई है.

इस कारण न तो योग्य शिक्षकों की नियुक्ति हो पायी और न ही कार्यरत शिक्षक व शिक्षकेतर कर्मचारियों का वेतन भुगतान हो सका. कॉलेज के सामान्य कोष में 1.9 करोड़ रुपये, विकास कोष में 13 लाख रुपये व छात्र कोष में 2.5 लाख रुपये उपलब्ध रहने के बाद भी कर्मचारियों का 130 महीने का वेतन लंबित है. इस दिशा में पूर्व आयुक्त आरके खंडेलवाल कोई पहल करने की बजाय शासी निकाय की जिम्मेवारी से मुक्ति के लिए प्रयासरत रहे. उन्होंने कॉलेज के शासी निकाय के अध्यक्ष पद की जिम्मेवारी से मुक्त करने के लिए राज्य सरकार से अनुरोध भी किया था, जो विचार-विमर्श के बाद अस्वीकृत हो गया. लेकिन, तब तक उनका तबादला हो गया. अब सभी की निगाह नयी आयुक्त वंदना किनी पर है. कॉलेज का भविष्य वह कितना संवार पाती हैं, कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी.

1980 तक प्रबंधन कमेटी की देखरेख में होता रहा संचालन: जानकारों के मुताबिक, 1970 में डॉ विजय कुमार सिंह द्वारा मगध मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल की स्थापना की गयी. दो साल बाद मुरारी द्विवेदी 1972 में आयुर्वेद मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल की स्थापना की गयी. दोनों की स्थापना 70 के दशक में हुई है. लेकिन, दोनों के बीच कोई तुलना नहीं है. 1980 तक प्रबंधन कमेटी की देखरेख में आयुर्वेद कॉलेज का संचालन होता रहा.

1981 में बिहार प्रदेश चिकित्सा विनियमन एवं अधिनियम आने के बाद प्रबंधन की पूरी शक्ति स्वत: बिहार सरकार के हाथों में चली गयी. 11 सदस्यीय शासी निकाय का गठन किया गया, जिसमें प्रमंडलीय आयुक्त को पदेन अध्यक्ष बनाया गया. सचिव मनोनयन की शक्ति भी अध्यक्ष में निहित है. नामांकन से होनेवाली आय के मुख्य स्नेत पर नियंत्रण का अधिकार संयुक्त रूप से सचिव व प्राचार्य को मिला. हालांकि, इससे पहले 1974 में ही सीसीआइएम (सेंट्रल कौंसिल ऑफ इंडियन मेडिसिन) से 40 सीटों पर बीएएमएस में नामांकन की मान्यता मिल चुकी थी. इस प्रकार इस कॉलेज से अब तक एक हजार से ज्यादा लोग बीएएमएस की डिग्री प्राप्त कर डॉक्टर बने चुके हैं. 2008-09 में अंतिम बैच का दाखिला हुआ. उसके बाद से अब तक नामांकन पर रोक है.

खाली नहीं है एक भी पद
कॉलेज में प्राचार्य समेत प्रोफेसर/रीडर व लेरर के 30 पद व प्रधान सहायक, मिश्रक, लेखापाल व टेक्नीशियन समेत शिक्षकेतर कर्मचारियों के 30 पद स्वीकृत हैं. वर्तमान में कोई पद रिक्त नहीं है. लेकिन, सीसीआइएम ने सभी शिक्षकों को अयोग्य करार देकर नामांकन पर रोक लगा दी है. इधर, शिक्षक व शिक्षकेतर कर्मचारियों का 130 माह का वेतन भुगतान नहीं हो सका है. अब शासी निकाय ही कॉलेज को इन तमाम समस्याओं से निजात दिला सकता है. कॉलेज के प्राचार्य डॉ आरडी मिश्र लगातार कॉलेज की स्थिति में सुधार के लिए प्रयासरत हैं. शासी निकाय की बैठक बुलाने के लिए अध्यक्ष सह आयुक्त से लगातार अनुरोध करते रहे, पर असफल रहे.

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