किस्तों में राज्य के विभिन्न जिलों में किताब भेजा जा रहा है, लेकिन मांग से काफी कम. अब तक गया जिले में मात्र दो से ढाई लाख बच्चों के लिए ही पुस्तक उपलब्ध हो सकी है, जबकि बच्चों की संख्या सवा आठ लाख से ज्यादा है.
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.. तो बगैर किताब पढ़ेंगे बच्चे!
गया: सरकारी स्कूलों में बच्चों को नि:शुल्क किताबें उपलब्ध कराने की जिम्मेवारी राज्य सरकार ने ले रखी है. राज्य सरकार ने इसकी जिम्मेवारी बिहार स्टेट टेक्स्ट बुक पब्लिशिंग कॉरपोरेशन लिमिटेड, पटना, को दे रखी है. लेकिन, शिक्षा अधिकारियों की मानें तो गत वर्षो की भांति इस बार भी सरकार समय पर पहली से आठवीं कक्षा […]
गया: सरकारी स्कूलों में बच्चों को नि:शुल्क किताबें उपलब्ध कराने की जिम्मेवारी राज्य सरकार ने ले रखी है. राज्य सरकार ने इसकी जिम्मेवारी बिहार स्टेट टेक्स्ट बुक पब्लिशिंग कॉरपोरेशन लिमिटेड, पटना, को दे रखी है. लेकिन, शिक्षा अधिकारियों की मानें तो गत वर्षो की भांति इस बार भी सरकार समय पर पहली से आठवीं कक्षा तक किताबें उपलब्ध कराने में सक्षम नहीं हो पा रही है.
बिहार शिक्षा परियोजना के सर्वशिक्षा अभियान संभाग के प्रभारी हरी नारायण ओझा ने बताया कि जिले के सरकारी स्कूलों में फिलहाल पहली से आठवीं कक्षा में नामांकित छात्र-छात्रओं की संख्या 8,25,460 है. चूंकि किताबों का डिमांड अगले सत्र से नौ माह पहले (जून-जुलाई में) ही स्कूलों से मांग लिया जाता है और चालू सत्र के अनुपात में करीब 10 प्रतिशत अधिक किताबों की डिमांड सरकार को भेजी जाती है. गत वर्ष 7,43,270 बच्चों के लिए किताबों की मांग की गयी थी, लेकिन, 7,03,763 बच्चों के लिए किताबें उपलब्ध करायी गयी. इस बार 8,06, 513 बच्चों के लिए किताब की मांग की गयी है. अब तक मात्र दो से ढाई लाख सेट किताबें ही उपलब्ध करायी गयी हैं. चूंकि किताबें सीधे प्रखंड संसाधन केंद्रों (बीआरसी) को भेजी जाती हैं. ऐसे में सभी बीआरसी से चालान (प्राप्ति) रसीद आने के बाद ही पता चल पता है कि कितने बच्चों के लिए किताबें उपलब्ध हो पायी हैं. उन्होंने बताया कि विभिन्न प्रखंडों से चालान आने का सिलसिला जारी है. हर रोज किसी न किसी प्रखंड से चालान मिल रहा है. अब तक आमस, अतरी, फतेहपुर, गुरुआ, गुरारू, कोंच व मोहनपुर से ही चालान आ पाया है. चालान के अनुसार अब तक 99,832 बच्चों के लिए किताबें उपलब्ध हो गयी हैं.
मांग से कम ही मिलती हैं किताबें : उन्होंने बताया कि नामांकन के अनुपात में उपस्थिति कम होने के कारण कभी-कभी किताबें बच भी जाती हैं. इस स्थिति में अगले सत्र के डिमांड में उतने किताबें कम भेजी जाती हैं. बिहार स्टेट टेक्स्ट बुक पब्लिसिंग कॉरपोरेशन लिमिटेड से भी मांग के एवज में पांच से 10 फीसदी किताबें कम भेजी जाती हैं.
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