गया: शाम ढलते ही शहर के लोगों को एक ही बात का अफसोस सताता है. वह यह कि काश उनकी गली में भी पार्षद का घर होता. कम से कम मुहल्ले की सड़कें रोशन तो होतीं. दरअसल, यह उदासी शहर भर में शाम के बाद फैलनेवाले अंधेरे के कारण है. शहर भर में लगीं स्ट्रीट लाइटें खराब हो चुकी हैं. शाम होते ही शहर की सड़कों से लेकर गलियों तक में अंधेरा छा जाता है. लेकिन, पार्षदों व अधिकारियों के घरों के आगे लगीं स्ट्रीट लाइटें जलती रहती हैं. अब, सोचने की बात यह है कि निगम के अधिकारी व पार्षद सभी इस बात को स्वीकार करते हैं कि लाइटों की मरम्मत नहीं हो सकी है, तो फिर पार्षदों व अधिकारियों के धर के आगे लगीं स्ट्रीट लाइटें कैसे जल रही हैं? उनमें भी खराबी क्यों नहीं आयी? अगर खराबी आयी, तो उनकी मरम्मत किसने की? ऐसे कई सवाल हैं, जो शहरवासियों के मनों में कौंध रहे हैं. क्या जनता के करोड़ों रुपये अधिकारियों व पार्षदों के घरों के बाहर ही रोशनी करने के लिए लगाये गये हैं?
लाइटों पर खर्च हुए करोड़ों
अपनी स्मृति को थोड़ा पीछे ले जाएं, तो याद आयेगा कि पिछले साल निगम चुनाव के दौरान शहर भर में ताबड़तोड़ 3600 लाइटें लगायी गयी थीं. इससे पूरा शहर जगमगाने लगा था. लेकिन, चुनाव के बाद एक-एक कर इनका बंद होना शुरू हो गया. इसे लेकर निगम बोर्ड में काफी दिनों तक हंगामा हुआ. कोई ठेकेदार पर कार्रवाई करने की मांग कर रहा था, तो कोई पैसे वापस लेने की बात कह रहा था. लेकिन, नतीजा सामने है. अब तक कुछ भी नहीं हो सका. पार्षद भी शांत हो गये. इसका कारण क्या है, यह तो पार्षद ही जानें. चुनाव के दौरान इन लाइटों के लगाने पर एक करोड़ रुपये के आसपास का खर्च आया था. इसके बाद पिछले ही साल पितृपक्ष से पहले अंधेरे को लेकर फिर से हंगामा शुरू हुआ.
लाइटों की अब तक मरम्मत नहीं हुई कि निगम की ओर से आनन-फानन में फिर से एक हजार लाइटें लगा दी गयीं. ये भी पितृपक्ष के खत्म होते-होते बंद हो गयीं. फिर वही पुरानी कहानी. लाइट के नाम पर हंगामा व बैठक का स्थगित होना जारी रहा. लेकिन, अब तक कोई नतीजा सामने नहीं आया. अब एक बार फिर पितृपक्ष नजदीक आ रहा है. लाइटों की मरम्मत के लिए निगम ने जरूरी सामग्रियों की खरीदारी का टेंडर निकला है. समझा जाता है कि मिस्त्री रख कर लाइटों की रिपेयरिंग होगी और पितृपक्ष से पहले लाइटें जलने लगेंगी. पर, इसके जाते ही फिर से शहर में अंधेरे का राज कायम हो जायेगा, यह आशंका भी प्रबल है.