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संकल्प, सीख, जज्बा और प्रेरणा से अपने आत्मबल को करें मजबूत

नये साल के मौके पर हर कोई कुछ न कुछ अपने जीवन में बेहतर करने का संकल्प लेता है. ऐसे में प्रभात खबर ने कुछ ऐसी शख्सियतों के बारे में बताने की कोशिश की है, जिनसे आप प्रेरणा लेकर नये साल में हमेशा ऊर्जावान महसूस कर सकें. ये शख्सियतें हैं हमारे पर्वत पुरुष दशरथ मांझी, […]

नये साल के मौके पर हर कोई कुछ न कुछ अपने जीवन में बेहतर करने का संकल्प लेता है. ऐसे में प्रभात खबर ने कुछ ऐसी शख्सियतों के बारे में बताने की कोशिश की है, जिनसे आप प्रेरणा लेकर नये साल में हमेशा ऊर्जावान महसूस कर सकें. ये शख्सियतें हैं हमारे पर्वत पुरुष दशरथ मांझी, लोकनायक जयप्रकाश नारायण, समाजसेवी द्वारिको भाई सुंदरानी व साहित्यकार डॉ राम निरंजन परिमलेंदु. जानिए इनके बारे में…

दशरथ मांझी का संकल्प
गया जिले की गेहलौर घाटी में 14 जनवरी 1929 को जन्मे दशरथ मांझी को आज भारत ही नहीं, पूरी दुनिया पर्वत पुरुष (माउंटेनमैन) के नाम से जानती है. इन्होंने अपने मजबूत इरादे से न केवल इतिहास रचा, बल्कि लोगों के लिए मिसाल भी बने. पत्नी वियोग की पीड़ा से मर्माहत होने के बजाय इन्होंने एक मुकम्मल इतिहास रच दिया.
अपने 22 वर्षों की कड़ी साधना व श्रम से 360 फुट लंबा, 25 फुट गहरा व 30 फुट चौड़ा गेहलौर के पहाड़ को छेनी व हथौड़ी से चकनाचूर कर 30 फुट चौड़ा रास्ता बना दिया. इनकी पत्नी फागुनी देवी की मौत इसी पहाड़ से गिरने से हुई थी. पत्नी की इस पीड़ा ने दशरथ मांझी को पहाड़ पुरुष बना दिया. दशरथ मांझी ने पहाड़ का सीना चीर 55 किलाेमीटर की दूरी कम कर 15 किमी में बदल दिया.
जयप्रकाश नारायण से सीखें
लोकनायक जयप्रकाश नारायण के साथ आठ साल साथ गुजारने वाले बाराचट्टी के गोसाइं पेसरा के गुलाब यादव ने ‘प्रभात खबर’ से मुलाकात में बताया कि वह उनके जीवन का स्वर्णिम काल था. वे जयप्रकाश नारायण को दादाजी और उनकी पत्नी को दीदी कहते थे. वे दादाजी व दीदी के इतने करीब थे कि वे उन्हें बेटा से भी बढ़ कर प्यार करते थे. उन्होंने बताया कि दादाजी जब गया आते थे, मानपुर स्थित भूपेंद्र नारायण सिंह उर्फ भूप बाबू के निवास या फिर समन्वय आश्रम में ठहरते थे.
इतनी बड़ी शख्सियत होने के बावजूद वे बड़े सरल स्वभाव के थे. उनकी दिनचर्या प्रात: उठकर क्रियाकर्म से निवृत हाेकर छत पर टहलने के साथ शुरू होती थी. उसके बाद वे लेमन टी, फिर सेविंग स्वयं प्रतिदिन करते थे. यहां तक कि जूता में पॉलिस भी स्वयं करते थे.देखें पेज-03
द्वारिको भाई सुंदरानी का जज्बा
जीवन के 90 बसंत देख चुके जमनालाल बजाज पुरस्कार से सम्मानित द्वारिको भाई सुंदरानी उर्फ भाईजी अब शारीरिक अस्वस्थता के कारण स्थिर हो चले हैं, लेकिन अाज भी उनके दिल में गरीब-गुरबों के साथ ही समाज के अंतिम पंक्ति में खड़े लोगों के प्रति अगाध प्रेम व दया का भाव दिखता है. मूल रूप से सिंध में जन्मे द्वारिको सुंदरानी गुजरात के वरधा आश्रम में कुछ दिनों तक बिताने के बाद भारत के ही होकर रह गये.
बोधगया में महेश भाई भंसाली से नेत्र शिविर लगाने की अपील की. शिविर में हजारों लोगों का नि:शुल्क में मोतियाबिंद का ऑपरेशन किया गया. इसके बाद द्वारिको सुंदरानी की अपील पर गुजरात के भंसाली ट्रस्ट के माध्यम से हर वर्ष यहां अक्तूबर में नेत्र शिविर का आयोजन होने लगा.
डॉ राम निरंजन परिमलेंदु से प्रेरणा
वर्ष 1953 से अब तक रचनाशील साहित्यकार डॉ राम निरंजन परिमलेंदु की रचनाएं अब तक डेढ़ साै से अधिक पत्र-पत्रिकाआें में प्रकाशित हाे चुकी हैं. अब तक उनकी 30 से अधिक रचनाएं किताब के रूप में मार्केट में हैं आैर 20 से अधिक किताबें प्रकाशनाधीन हैं. डॉ परिमलेंदु ने हमेशा उन विषयाें काे छुआ, जिस पर अब तक किसी ने नहीं लिखा या फिर जाे पूर्व में लिखा भी गया, ताे भ्रांतिपूर्ण लेखन था.
शाेधपूर्ण लेखन डॉ परिमलेंदु की विशेषता है. गया जिले के टिकारी थाने के सिमुआरा गांव में जगन्नाथ प्रसाद के घर 24 अगस्त 1935 काे जन्मे डॉ राम निरंजन परिमलेंदु ने पहले अंग्रेजी आैर फिर हिंदी में स्नातकाेत्तर (एमए) की डिग्री प्राप्त की. इसके बाद भागलपुर विश्वविद्यालय से उन्हाेंने पीएचडी की डिग्री हासिल की.

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