बोधगया: बोधगया के कालचक्र मैदान में प्रवचन करते हुए मोरारी बापू ने कहा कि रामकथा में आश्रय व आंसू के सिवा कुछ नहीं है. यह पुरातन होते हुए भी नित्य नूतन है. श्रीराम व हनुमान पुरातन नहीं सनातन हैं. चित्त को चित्रकूट बना कर कथा सुनें, तो कथा मंदाकिनी लगेगी. कथा कई दिव्य चेतनाएं श्रवण करती हैं. यह कथा अस्तित्व की प्रेरणा है, जीवन का आहार है. उन्होंने कहा, मानस में नौ बुद्ध हैं. कौशल्या, सबरी, त्रिजटा, स्वयंप्रभा, शंकर, हनुमान, याज्ञवल्क्य व महाकाल के मंदिर के गुरु. राम परम बुद्ध हैं.
उन्होंने गौतमी के पुत्र की मृत्यु कथा के संदर्भ में चार सूत्र आज्ञां, आशा, आंसू व आयु की विस्तृत व्याख्या करते हुए कहा ‘आज्ञा तमना सुसाहिब सेवा’ गुरु आज्ञा ही एकमात्र सर्व सिद्धि देनेवाली है. पूर्ण आश्रित का गुरु कभी नहीं मरता. रामकृष्ण के जाने के बाद भी मां शारदा सदा सुहागन रहीं. उन्होंने आशा की व्याख्या करते हुए कहा कि सकारात्मक आशा साधकों के लिए अनिवार्य है. वह साधना का आधार है. दुराशा व निराशा दोनों जीवन के लिए घातक है. आंसू भीतरी स्नान है.
आंसू की संपदा गयी, तो व्यक्ति भिखारी हो गया. तभी तो, गोपियां कहती हैं ‘निसिदिन बरसत नैन हमारे.’ बापू ने कहा आशा हर एक साधक के लिए जरूरी है. वह साधना का आधार है. भरत को दृढ़ विश्वास है कि यहां पादुका है, तो राम के चरण अवश्य आयेंगे. उन्होंने कहा मानस में जीवन का विश्वास है. व्यवसाय या व्यवहार नहीं. विश्व का कोई ऐसा प्रश्न नहीं, जिसका उत्तर मानस में नहीं.
बापू ने शनिवार को अयोध्या कांड की बड़ी ही संवेदनात्मक प्रस्तुति दी. इसमें बापू सहित पूरे पंडाल में बैठे श्रोता भावुक हो गये. उन्होंने अयोध्या कांड के मंगलाचरण को अत्यंत प्रेरणाप्रद बताया. कहा कि जवानी में गुरु वंदना करने से जीवन संयमित व नियमित हो जाता है. श्री बापू ने कहा कि कैकेयी संत भरत की मां थीं. ऐसी मां की बुद्धि भी कुसंग में बदल गयी. अत: युवकों को अत्यंत सावधान रहने की जरूरत है. उन्होंने भरत चरित और दशरथ मान का बड़ा ही भावुक वर्णन किया और कहा रघुवंश के राम को कौशल्या ने जन्म दिया, लेकिन रामराज्य के राम को कैकेयी ने जन्म दिया.