दरभंगाः हाड़ कंपकंपाने वाली इस शीतलहर में वैसी बस में यात्र करना, जिसकी अधिकांश खिड़कियों में शीशे भी न लगे हो, सुनकर ही सिहरन होने लगती है. ऐसी स्थिति में वैसी बसों में यात्र करने वाले यात्रियों पर क्या बीतती होगी, यह स्वत: अनुभव किया जा सकता है. लेकिन रुपये की अधिकाधिक चाहत ने बसों के चालक -कंडक्टर से लेकर परिवहन विभाग के अधिकारियों के मन से मानवीयता जैसे शब्द को मानों मिटा दिया है.
कादिराबाद निजी बस स्टैंड से दोपहर 1.35 बजे मधवापुर-साहरघाट जाने के लिए बस (बीआर 32 एच-2042) खुली. बस के सामने के शीशा पर मोटे अक्षरों में डीलक्स लिखा था, लेकिन उस कथित डीलक्स बस की स्थिति यह थी कि 14 खिड़कियों में 10 में शीशे नहीं थे. स्टैंड परिसर से निकलने के बाद बिहार राज्य पथ परिवहन निगम के डिपो के निकट इस बस को करीब 10 मिनट तक खड़ाकर यात्रियों को उसमें ठूंसते रहे. सीट नहीं होने के बाद जब भीतर में खड़ा होने की भी जगह नहीं बची तो कई यात्रियों को सामान के साथ ऊपर(छत पर) भेज दिया. बीच सड़क पर 10 मिनट इस बस के खड़ी रहने से दोनों ओर दर्जनों वाहनें खड़ी थी. कादिराबाद बस स्टैंड परिसर में करीब डेढ़ दर्जन ऐसी बसें खड़ी थी, जिनकी खिड़कियों के शीशे टूटे हुए थे.
सूत्रों के अनुसार इन बसों को परमिट मिलने से पूर्व मोटरयान निरीक्षक (एमवीआइ) फिटनेस सर्टिफिकेट देते हैं. जानकारों का कहना है कि बस मालिक व उनके नुमाईंदे बिना बसों का निरीक्षण कराये ही एमवीआइ के कार्यालय से फिटनेस सर्टिफिकेट जारी करवा लेते हैं.