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चार वर्ष बाद हुई कार्रवाई

दरभंगाः दरभंगा नगर निगम में वर्ष 2008 में डस्टबीन व हैंड बैरो की खरीदारी में कतिपय अनियमितता को लेकर वर्षो यह मीडिया में चर्चा में रहा. प्रमंडलीय आयुक्त के निर्देश पर डीएम ने दो बार तीन सदस्यीय जांच टीम गठित की. समिति ने अपनी रिपोर्ट भी दे दी. इसके बावजूद तीन वर्ष से अधिक अवधि […]

दरभंगाः दरभंगा नगर निगम में वर्ष 2008 में डस्टबीन व हैंड बैरो की खरीदारी में कतिपय अनियमितता को लेकर वर्षो यह मीडिया में चर्चा में रहा. प्रमंडलीय आयुक्त के निर्देश पर डीएम ने दो बार तीन सदस्यीय जांच टीम गठित की. समिति ने अपनी रिपोर्ट भी दे दी. इसके बावजूद तीन वर्ष से अधिक अवधि से कार्रवाई के बदले वह संचिका डीएम कार्यालय में दबा पड़ा है. जानकारों का मानना है कि सत्तारूढ़ दल के बड़े राजनेता का वरदहस्त होने के कारण अबतक इस पर कार्रवाई नहीं हुई थी. इस बीच वार्ड नं. 4 के पंडित वेदा व्यास ने इस संबंध में जनहित याचिका सीडब्ल्यूजेसी 10454/2013 दायर किया और पटना उच्च न्यायालय में जब नगर विकास एवं आवास विभाग के सचिव को इस बाबत तलब किया तो आनन फानन में कार्रवाई का आदेश हुआ.

डस्टबीन खरीद के लिये निकला था विज्ञापन

जानकारी के अनुसार 02 सितंबर 2008 को डस्टबीन की खरीद के लिये समाचार पत्रों में भी विज्ञापन निकाला गया तथा 22 सितंबर को इसकी निविदा हुई, जिसमें 29 निविदाएं प्राप्त हुई. 24 सितम्बर को उसकी निविदा खुली. 13 नवम्बर एवं 15 जनवरी 2009 को स्थायी समिति के प्रस्ताव के आलोक में 125 हैंड ट्रॉली खरीदने का निर्णय लिया गया. 24 फरवरी 2009 को तत्कालीन लेखापाल सह अंकेक्षक रतन कुमार ने संचिका पर लिखा कि विभिन्न पार्षदों ने मुजफ्फरपुर के आपूर्तिकत्र्ता का ट्रॉली नकार दिया है. उसी दिन नगर आयुक्त विनोद कुमार झा ने उसकी निविदा रद्द कर अन्य आपूर्तिकत्र्ता से कोटेशन की मांग की तथा उसी तिथि को मेयर ने उसकी अनुशंसा भी कर दी.

आपूर्ति के लिये आजाद सेल्स हुआ तैयार

14 मई को आपूर्तिकत्र्ता आजाद सेल्स के संबंध में लेखापाल ने लिखा कि यह आपूर्ति के लिये तैयार है. ज्ञात हो कि 22 सितंबर 2008 को जिन 29 लोगों ने निविदा दी थी, उसमें आजाद सेल्स नहीं था. 15 मई 2009 को नगर आयुक्त ने 165 हैंड बैरो, 70 डस्टबीन खरीदने की अनुशंसा की और 19 मई को मेयर ने उसका अनुमोदन कर दिया. 20 मई को अंकेक्षक ने आपूर्तिकत्र्ता को आदेश देने का प्रस्ताव बढ़ाया और 22 मई को आजाद सेल्स को आपूर्ति का आदेश मिल गया. 07 जुलाई को लिखा अंकेक्षक ने 13 नवंबर 2008 के क्रय समिति की प्रस्ताव क्रमांक 2 से 5 का हवाला देते हुए आपूर्तिकत्र्ता को हैंड बैरो मद में 5.95 लाख रुपये भुगतान करने की अनुशंसा की. 11 जुलाई 2009 को नगर आयुक्त ने मेयर को भुगतान के लिये फाइल बढ़ाया और 22 जुलाई को मेयर का आदेश मिल गया. मेयर ने स्थायी समिति के आगामी होने वाली बैठक की प्रत्याशा में अनुमोदन लेने की बात कहकर यह आदेश दिया. 27 मई को हैंड बैरो मद में पुन: 5.95 लाख रूपया भुगतान के लिये लेखा पाल ने नगर आयुक्त को लिखा और 28 जुलाई को नगर आयुक्त और मेयर की स्वीकृति के बाद 31 जुलाई को उसे 5.95 लाख का चेक से भुगतान हो गया.

वार्ड पार्षद ने की थी शिकायत

इसी बीच वार्ड 21 की पार्षद मधुबाला सिन्हा ने 4 अगस्त को तत्कालीन डीएम प्राण मोहन ठाकुर से डस्टबीन की खरीदारी में व्यापक अनियमितता की शिकायत की. उन्होंने 03 सितम्बर को सिंटेक्स कंपनी का कोटेशन लाकर 30500 में नगर निगम ने जो डस्टबीन खरीदी थी, उसका वास्तविक मूल्य 15275 और 8500 में जिस हैंड बैरो की खरीदारी हुई थी उसकी कीमत 5845 रूपये का कोटेशन जमा की. ज्ञात हो कि मधुबाला सिन्हा ने एक हैंड बैरो कंपनी से अपनी वार्ड के लिये भी मंगाया था.

पार्षद श्रीमती सिन्हा की शिकायत के बाद 07 अगस्त को क्रय समिति के राम मनोहर प्रसाद, संतोष देवी जालान, शंकर प्रसाद जायसवाल एवं सुरेश मल्ल ने इस्तीफा दे दिया. अगले दिन देवकी देवी ने भी उस समिति से इस्तीफा दे दिया. पुन: 14 सितम्बर को पार्षद मधुबाला सिन्हा ने प्रमंडलीय आयुक्त को डस्टबीन एवं हैंड बैरो के विपत्र के साथ एक ज्ञापन सौंपा और उसकी प्रतिलिपि मुख्यमंत्री को भी भेजा. इसी बीच नगर आयुक्त ने पार्षद डिप्टी मेयर बदरूज्जमा खां बॉबी, शंकर जायसवाल एवं रीता सिंह के नेतृत्व में तीन सदस्यीय जांच समिति गठित की. जिससे रीता सिंह ने इस्तीफा दे दिया. यह समिति कुछ जांच करती. इससे पहले ही डीएम ने अपर समाहत्र्ता केसी झा, लेखा पदाधिकारी शंभू प्रसाद को भेजकर नगर निगम कार्यालय में छापामारी कराकर इससे संबंधित सभी कागजात जब्त कर ली और नमूना के तौर पर एक डस्टबीन भी ले गये. निगम के इतिहास में पहली बार जिला प्रशासन ने कोई संचिका जब्त की थी. डीएम ने तीन सदस्यीय कमेटी अपर समाहर्ता केसी झा, शंभू प्रसाद एवं कार्यपालक दंडाधिकारी खुर्शीद आलम के नेतृत्व में गठित की. जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में प्रथम दृष्टया निविदा में अनियमितता और घोटाले का संकेत दिया था.

इसी बीच डीएम का तबादला हो गया. मेयर अजय पासवान और नगर आयुक्त विनोद कुमार झा ने प्रमंडलीय आयुक्त से मिलकर अपना पक्ष रखने की बात कही. इस पर प्रमंडलीय आयुक्त ने पत्रंक 650 के आलोक में जांच का आदेश दिया. तत्कालीन डीएम संतोष कुमार मल्ल ने अपर समाहत्र्ता नूर आलम, कार्यपालक दंडाधिकारी विनोद कुमार जो अभी नगर सचिव भी हैं तथा लेखा अधिकारी शंभू प्रसाद की टीम बनाकर जांच करने का आदेश दिया. जांच टीम ने पत्रंक 2481 दिनांक 06 दिसंबर 2010 को रिपोर्ट दिया. रिपोर्ट में उन्होंने एक हैंड ट्रॉली में 3152 रूपये अधिक खर्च करने की बात कही. इस तरह 130 हैंड ट्रॉली में 3152 रुपये अधिक भुगतान करने पर कुल 4 लाख 9 हजार 760 रूपये आपूर्तिकत्र्ता को अधिक भुगतान करने की बात जांच रिपोर्ट में कही गयी. जांच रिपोर्ट में बताया गया कि आपूर्तिकत्र्ता ने 70 डस्टबीन 150 पीवीसी टोकरी की आपूर्ति भी नगर निगम ने किया था. इसके भुगतान की तैयारी की जा रही थी. यदि पार्षद मधुबाला सिन्हा ने इस मामले का उद्भेदन नहीं किया होता तो 10 लाख और भुगतान करने की तैयारी थी. जांच समिति ने क्रय से संबंधी विभागीय नियमों की अनदेखी सामान्य खरीदने समय सिंटेक्स कंपनी से पत्रचार नहीं करने और न ही डीजीएस एंड डी दजरे पत्रंक 862 दिनांक 21.02.2008 के आदेश में वर्णित है उसका भी उल्लंघन किया. अब देखना है कि चार वर्ष बाद प्राथमिकी दर्ज कराने पर जिला प्रशासन इस पर कितनी त्वरित कार्रवाई करती है.

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