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क्या करें, दिल है कि मानता नहीं

क्या करें, दिल है कि मानता नहीं रौदी से चौपट हुआ धानकटनी को मजदूर तैयार नहींमनीगाछी. प्रखंड क्षेत्र में अधिकांश किसानों का धान मरहन्न (अच्छा नहीं) से किसान खेती से हताश हो गये हैं. धान काटने के लिए खेत में पहुंचे किसान धान की स्थिति देख माथे पर हाथ रख अपने भाग्य को कोसने लगते […]

क्या करें, दिल है कि मानता नहीं रौदी से चौपट हुआ धानकटनी को मजदूर तैयार नहींमनीगाछी. प्रखंड क्षेत्र में अधिकांश किसानों का धान मरहन्न (अच्छा नहीं) से किसान खेती से हताश हो गये हैं. धान काटने के लिए खेत में पहुंचे किसान धान की स्थिति देख माथे पर हाथ रख अपने भाग्य को कोसने लगते हैं कि अगर धान नहीं रोपते तो इस पर आये खर्च की तो बचत हो जाती. किसान रामकिशुन चौपाल, बैजनाथ यादव, योगेंद्र यादव, रामचंद्र राय, गणेश मंडल सहित कई किसानों ने बताया कि खेती करना अब लाभप्रद नहीं रह गया है. हम लोग तो मजबूरी में खेत बेचकर खेती कर रहे हैं. उनलोगों ने कहा कि ‘उत्तम खेती, मध्यम वाण, निकृष्ट चाकरी भीख निदान’ यह तो सिर्फ कहावत रह गयी है. क्या करें दिल है कि मानता नहीं. खेती तो कर लेते हैं लेकिन प्रकृति एवं सरकार की दोहरी मार भी किसानों को ही झेलनी पड़ती है. सरकार द्वारा घोषणाएं तो बहुत की जाती है, लेकिन सारी घोषणाएं लाल फीताशाही की भेंट चढ़ जाती है. अभी तक प्रखंड क्षेत्र के एक भी किसान को खरीफ की खेती का डीजल अनुदान नहीं दिया गया. अगर वितरण भी किया गया तो सिर्फ कागज पर जो जांच का विषय है. धान की खेती में किसानों द्वारा धान को बचाने के लिए 4-4 बार पटवन किया गया. बावजूद धान को बचाया नहीं जा सका. सारा का सारा धान मरहन्ना हो गया. बड़े बड़े जोतदार किसानों का भी परिवार साल भर कैसे चलेगा इस पर प्रश्नचिह्न लगा हुआ है. किसान बताते हैं कि धान की खेती को प्रति कट्ठा लगभग 1000 रुपये का खर्च आया है. अगर लागत मूल्य भी निकल जाता तो किसान अपने को भाग्यशाली समझते. रबी फसल करने के लिए किसान सोच में पड़े हुए हैं. करें तो क्या करें?

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