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छठ का प्रकृति व पर्यावरण से है गहरा संबंध

दरभंगा/कमतौल : चार दिनों तक चलने वाले सूर्य उपासना का पर्व छठ सिर्फ पर्व ही नहीं महापर्व है़ इसे पूर्णत: आध्यात्मिक महत्व का पर्व भी कहा जाता है़ इसमें पवित्रता के साथ-साथ श्रद्धा में खोट होने पर दंड का भी भय बना रहता है़ वस्तुओं की अनिवार्यता से स्पष्ट होता है की यह पर्व आम […]

दरभंगा/कमतौल : चार दिनों तक चलने वाले सूर्य उपासना का पर्व छठ सिर्फ पर्व ही नहीं महापर्व है़ इसे पूर्णत: आध्यात्मिक महत्व का पर्व भी कहा जाता है़ इसमें पवित्रता के साथ-साथ श्रद्धा में खोट होने पर दंड का भी भय बना रहता है़ वस्तुओं की अनिवार्यता से स्पष्ट होता है की यह पर्व आम जनजीवन को पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी देता है़

वहीं कुछ लोग इस पर्व को अध्यात्म के प्रति और आरोग्य के समन्वय का पर्व भी मानते हैं. इसमें पूर्णत: कृषि पर आधारित वस्तुओं के उपयोग करने की परंपरा रही है़ चाहे वह मिट्टी के बर्तन का उपयोग, मिट्टी के चूल्हे पर पकवान बनाने की बाध्यता या अदरक, गन्ना, नींबू आदि मौसमी फलों को प्रसाद के रूप में चढ़ाने की परंपरा रही हो़ अर्घ देने नदी या तालाबों के किनारे जाने की परंपरा के चलते उसकी भी साफ सफाई हो जाती है़

इससे जल प्रदूषण को भी समाप्त करने का अवसर मिलता है़ आचार्य संजय कुमार चौधरी की मानें तो छठ पूजा को महापर्व के नाम से अलंकृत किया जाता है़ इसकी उपासना से आत्मिक उत्कर्ष के साथ परिवार के सुख सौभाग्य में वृद्ध होती है़ कार्तिक मास में मनाया जानेवाला यह पर्व चार दिनों तक उल्लास पूर्वक मनाया जाता है़ जिस तरह माता पार्वती कठोर तप करके शिव को प्राप्त किया,

उसी तरह चार दिनों तक व्रती कठिन तपस्या के द्वारा अपने परिवार की सुख समृद्धि की कामना करते है़ं प्राचार्य भगलू झा के अनुसार शक्ति व ऊर्जा के साक्षात प्रतीक सूर्य की आराधना का यह पर्व शारदीय छठ कहलाता है़ इस पर्व को सभी आयु के लोग मनाते हैं. यह लोक आस्था का पर्व है़

इस पर्व की विशेषता यह है की उगते सूरज ही नहीं डूबते हुए सूरज को भी उतनी ही श्रद्धा के साथ पूजा जाता है, क्योंकि सूरज तो सूरज है चाहे कुछ अंतराल के लिए डूब ही क्यों न जाये़ डूबने के बाद उगने की शाश्वत सत्यता को देखकर यह ज्ञान देने का प्रयत्न करता है की डूबना अंत नहीं है़ डूबना और उगना निरंतर चलने वाली अंतहीन प्रक्रिया है़

इससे सामाजिक संदेश मिलता है की डूबते हुए का निरादर नहीं करना चाहिए, उसे भी उतना ही सम्मान मिलना चाहिए जितना उगते हुए को़शिक्षिका एवं व्रती अनीता कुमारी के अनुसार यह महापर्व अमीरी-गरीबी का भेदभाव मिटाकर हमें समानता का पाठ पढ़ाता है़ इस त्यौहार की विशेषता है

की जनता स्वयं सामूहिक रूप से व्रतियों के गुजरने वाले रास्तों का प्रबंधन, तालाब या नदी के तट पर अर्घदान की उचित व्यवस्था की जाती है़ हिंदुस्तान में कोई ऐसा राज्य नहीं है जहां इस पर्व को नहीं मनाया जाता है़ छठ ही एक ऐसा पर्व है जो सामाजिक संदेश देता है तथा भावनाओं से ओत-प्रोत हो मनाया जाता है़

छठ पूजा के सम्बन्ध में कई विविध कथाएं प्रचलित है़ एक लोक कथा इस प्रकार है़ एक संयुक्त परिवार में एक दिन सास अपनी बहू को गन्ने के खेत पर रखवाली के लिए भेजते हुए आज्ञा देती है की आज छठ पूजा है और इस अवसर पर लोग गन्ना(ईख) मांगने आयेंगे, लेकिन तुम किसी को मत देना़ पर बहू कुछ अलग थी और जो भी उससे ईख मांगने आये सभी को उसने ईख दी़ उसकी उदारता को देख कर छठ मैया ने उसे आभूषण से लाद कर पुरस्कृत किया़

जब सास ने यह सब देखा तो बहू पर लांछन लगाने लगी़ बहू ने सत्यता बयान करते हुए कहा की यह सब छठ मैया की कृपा से उसे प्राप्त हुआ है़ सास भी खेत पर गई और सोचा की छठ मैया उसे भी गहने देगी़ वहां जो भी ईख मांगने आता उसे वह डंडे से मारकर भगा देती़ जिससे छठ मैया क्रोधित हो उसे चर्मरोग से ग्रसित कर दिया़ भोली बहू की आराधना करने पर छठ मैया ने उसकी सास को रोग मुक्त कर दिया़ तात्पर्य यह की निश्छल मन से उदारतापूर्वक किये जाने वाला इस पर्व की शुभ प्रतिक्रियाओं से सारा समाज धन्य हो जाता है़

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