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शहर की समस्याएं नहीं बन रही चुनावी मुद्दा

शहर की समस्याएं नहीं बन रही चुनावी मुद्दा आरोप-प्रत्यारोप में ही लगे हैं प्रत्याशीगण दरभंगा. प्रमंडलीय मुख्यालय दरभंगा में जलजमाव, यातायात व्यवस्था एवं सफाई मुख्य समस्या है. इनमें सर्वाधिक पीड़ादायक स्थिति जलजमाव से हो जाती है. बेतरतीब तरीके से बन रहे मकानों के साथ-साथ सड़कों एवं नालियों से ये समस्याएं दिनानुदिन बढ़ती ही जा रही […]

शहर की समस्याएं नहीं बन रही चुनावी मुद्दा आरोप-प्रत्यारोप में ही लगे हैं प्रत्याशीगण दरभंगा. प्रमंडलीय मुख्यालय दरभंगा में जलजमाव, यातायात व्यवस्था एवं सफाई मुख्य समस्या है. इनमें सर्वाधिक पीड़ादायक स्थिति जलजमाव से हो जाती है. बेतरतीब तरीके से बन रहे मकानों के साथ-साथ सड़कों एवं नालियों से ये समस्याएं दिनानुदिन बढ़ती ही जा रही है और यही वजह है कि हल्की वर्षा के बाद भी दरभंगा मेडिकल कॉलेज परिसर सहित शहर के करीब डेढ़ दर्जन वार्ड टापू में तब्दील हो जाते हैं. वर्तमान में प्रमुख दल राजग से भाजपा के निवर्तमान विधायक संजय सरावगी पुन: प्रत्याशी हैं, जो पूर्व में निगम पार्षद भी रह चुके हैं. तो दूसरी ओर दरभंगा नगर निगम में 15 वर्षों तक मेयर पद पर काबिज रहनेवाले महागंठबंधन के राजद प्रत्याशी ओम प्रकाश खेड़िया भी चुनावी मैदान में हैं. निगम से सरोकार रखनेवाले इन दोनों प्रत्याशियों के अलावा 13 और प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं. इसके बावजूद शहर की प्रमुख समस्या जलजमाव अबतक चुनावी मुद्दा नहीं बन सका है. बंद है तीनों आउटलेटशहर की बनावट ऐसी है कि दरभंगा टावर के निकट से बागमती नदी गुजरती है लेकिन टावर का पानी चार किलोमीटर दूर कमला नदी में जाती है. यह सिलसिला वर्षों से जारी है. शहर से जलनिकासी के लिए वर्षों पूर्व तीन आउटलेट कगवा गुमटी से कमला नदी, अललपट्टी स्थित रेलवे पुल संख्या- 22-23 से कमला नदी तथा लहेरियासराय चट्टी मोड़ से कमला नदी तक थे. उस समय चौर में जमीन खाली रहने के कारण आसानी से जल निकासी हो जाता था. हाल के वर्षों में जल निकासी के उन सभी रास्तों पर बड़े-बड़े मकान बन गये हैं जिसके कारण जल निकासी के ये तीनों मार्ग लगभग अवरूद्ध हो गये हैं. ऐसी स्थिति में हल्की वर्षा के बाद ही शहर के कई मुहल्ले उपलाने लगते हैं. करीब तीन वर्ष पूर्व व्यापक जल जमाव होने के बाद तत्कालीन प्रमंडलीय आयुक्त, स्थानीय सांसद सहित जिला प्रशासन ने संयुक्त बैठक कर जल निकासी के लिए कार्य योजना तैयार कर सरकार को भेजा था. सरकार की ओर से जमीन अधिग्रहण कर जल निकासी के लिए नाला तैयार करने की स्वीकृति दी गयी थी. इस योजना का संवेदक जलनि:सरण विभाग को बनाया गया था. सरकार से स्वीकृत दो करोड़ की राशि से कमला नदी से कुछ जमीन अधिग्रहण कर नाला निर्माण कराया गया. इसके बाद निगम प्रशासन एवं जिला प्रशासन लगातार सरकार से पत्राचार कर रही है लेकिन इस मद में कुछ भी राशि आवंटित नहीं की गयी है. शहर के कई मुहल्लों में बेतरतीब तरीके से बन रहे मकानों के कारण भी यह समस्या दिन-ब-दिन लाइलाज होता जा रहा है. यातायात समस्या भी परेशानी का सबबकरीब तीन लाख की आबादी वाले इस शहर में तीन प्रमुख सड़कें – वीआइपी रोड, पंडासराय-बेला-मब्बी रोड एवं एलएन मिश्रा पथ ही ऐसे हैं जिसपर पूरे शहर की यातायात व्यवस्था केंद्रित है. वर्षों पूर्व जब शहर की जनसंख्या एक लाख से भी कम थी तो दरभंगा नगरपालिका ने सड़कों की चौड़ीकरण के लिए जमीन अधिग्रहण की थी. उस समय सड़कों की चौड़ाई 60 से 65 फीट की गयी थी. कालांतर में सड़क के आसपास के लोगों ने उसपर कब्जा जमाना शुरू किया. वर्तमान में स्थिति यह है कि सड़कों की चौड़ाई घटते-घटते आधी हो गयी है. ऐसी स्थिति में लगातार वाहनों के बढ़ते बोझ से इस शहर के लिए जाम आम समस्या बन गयी है. जानकारों का मानना है कि अधिकांश बड़े शहरों में शहर के किनारे से बाइपास रोड की व्यवस्था की गयी है. जिसके कारण भारी वाहनें शहर में न आकर बाइपास से गुजर जाती हैं. दरभंगा शहर की जैसी बनावट है, उसमें समस्तीपुर से मधुबनी या मधुबनी-सीतामढ़ी से समस्तीपुर की ओर जानेवाले सभी वाहनों को दरभंगा शहर के बीच से ही गुजरना पड़ता है, जिससे जाम की समस्या और बढ़ जाती है. जानकारी के अनुसार करीब दो वर्ष पूर्व मब्बी से रत्नोपट्टी होते हुए लहेरियासराय-समस्तीपुर मार्ग में केरवागाछी के निकट तक बाइपास रोड बनाने पर चर्चा हुई थी. आनन-फानन में इसका प्राक्कलन बनाकर स्वीकृति के लिए सरकार को भेजा गया था. लेकिन अबतक उस दिशा में कोई सार्थक पहल दिख नहीं रहा. सफाई की मुकम्मल व्यवस्था नहीं दरभंगा नगर निगम के चालू वित्तीय वर्ष के बजट पर यदि गौर करें तो वह 1.71 अरब का है. लेकिन ठीक उसके विपरीत है यहां की सफाई व्यवस्था. शहर की सफाई व्यवस्था के प्रति निगम प्रशासन से लेकर स्थानीय पार्षद एवं जनप्रतिनिधि कितने साकांक्ष हैं, उसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अबतक नगर निगम के पास डंपिंग ग्राउंड नहीं है. ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की मुकम्मल व्यवस्था नहीं होंने के कारण शहर का कचरा उठाकर प्रतिदिन आसपास के गांवों के सड़क किनारे उसे फेंका जाता है तथा वहां के वातावरण को प्रदूषित किया जा रहा है. इससे उस क्षेत्र के लोग भी प्रभावित हो रहे हैं. राज्य सरकार ने करीब दस वर्ष पूर्व डंपिंग ग्राउंड के लिए 50 लााख रुपये का आवंटन दिया था. वह राशि अबतक निगम के खाते की शोभा बढ़ा रहा है. जिला प्रशासन से लेकर नगर निगम प्रशासन डंपिंग ग्राउंड के लिए हाल के वर्षों में कई प्लॉटों केा देखा भी, लेकिन जमीन की कीमत के अनुरूप राशि नहीं रहने से डंपिंग ग्राउंड का समाधान अबतक नहीं हो सका है. बढ़ती आबादी एवं नियमित सफाई कर्मियों की लगातार हो रही सेवानिवृत्ति से सफाई व्यवस्था दिनानुदिन बदतर होती जा रही है. हाल में निगम प्रशासन ने मशीनों के माध्यम से सफाई कार्य करने संबंधी निर्णय के बाद करीब डेढ़ करोड़ से अधिक राशि की सफाई उपस्करों की खरीदारी की है. इसके बावजूद सफाई कार्य में अबतक कुछ भी बदलाव नहीं दिखता. शहर की इन समस्याओं से आमजन परेशान हैं लेकिन अबतक यह चुनावी मुद्दा नहीं बन सका है.

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