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10 दिनों से गोदाम में बंद है शकिंग मशीन

दरभंगा : कचरा प्रबंधन के लिए जमीन उपलब्ध नहीं होने के कारण जहां-तहां कचरा फेंककर सफाई कर्मी किसी तरह दिन काट रहे हैं. लगभग यही स्थिति शकिंग मशीन की भी थी, लेकिन आसपास के लोगों के सख्त विरोध के कारण शकिंग मशीन के चालक ने उसे चलाने में असमर्थता जतायी है. इतना ही नहीं, शकिंग […]

दरभंगा : कचरा प्रबंधन के लिए जमीन उपलब्ध नहीं होने के कारण जहां-तहां कचरा फेंककर सफाई कर्मी किसी तरह दिन काट रहे हैं. लगभग यही स्थिति शकिंग मशीन की भी थी, लेकिन आसपास के लोगों के सख्त विरोध के कारण शकिंग मशीन के चालक ने उसे चलाने में असमर्थता जतायी है.
इतना ही नहीं, शकिंग मशीन से जुड़े सभी सफाईकर्मियों ने निगम प्रशासन को यह आगाह कराया है कि जबतक मल फेंकने के लिए स्थल का निर्धारण नहीं किया जायेगा, तबतक शकिंग मशीन का परिचालन संभव नहीं है. इस वजह से विगत दस दिनों से शकिंग मशीन निगम गोदाम
में बंद है.
दूसरी ओर, नगर निगम में इकलौता शकिंग मशीन होने के कारण प्रतिदिन आधा दर्जन से अधिक लोग अपने टैंक की सफाई के लिए निगम कार्यालय में निर्धारित रकम जमा कर रहे हैं. लेकिन इनलोगों का टैंक कब साफ होगा, इसे बताने को सफाई प्रशाखा के कोई अधिकारी तैयार
नहीं हैं.
सफाई मशीनों के प्रभारी सह यांत्रिक अभियंता अभिषेक आनंद ने भी पूछे जाने पर उसके कार्यरत नही ंहोने की बात बतायी. अब सवाल यह कि एक तरफ जहां निगम स्मार्ट सिटी बनाने की बवायद कर रहा है, वहीं उपलब्ध सुविधओं का लाभ नहीं है.
निर्देशों की अनदेखी : डब्ल्यूआइटी में कर्मियों की नियुक्ति प्रक्रिया सवालों के घेरे में
दरभंगा : लनामिवि के डब्ल्यूआइटी में शिक्षकों के 18 एवं शिक्षकेतर कर्मियों के कुल 34 पदों के लिए अनुबंध के आधार पर नियुक्ति की प्रक्रिया संपन्न हुई है. वहीं पूर्व से अनुबंध के आधार पर कार्यरत 8 शिक्षक एवं 24 शिक्षकेतर कर्मियों की सेवा समाप्त कर दी गयी है. नियुक्ति प्रक्रिया में अनियमितता एवं नियमों की अनदेखी को लेकर विवि प्रशासन पर उच्च न्यायालय में मुकदमा भी दायर हुआ. वहीं मामले की सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने कुलपति की कार्यप्रणाली पर तीखी प्रतिक्रिया जाहिर की है.
इधर इस पूरे मामले में कई ऐसे चौंकाने वाले तथ्य उजागर हुई है जो नियुक्ति प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए विवि प्रशासन की मंशा व कार्यप्रणाली पर भी प्रश्न खड़े कर दिये हैं. सर्वोच्च न्यायालय का स्पष्ट निर्देश है कि अनुबंध के आधार पर नियुक्त कर्मी की सेवा समाप्त कर पुन: अनुबंध के आधार पर नियुक्ति की प्रक्रिया नहीं होनी चाहिए. इससे प्रशासन में पक्षपात, मनमानी व निरंकुशता आदि नकारात्मक प्रवृत्तियों को बढ़ावा मिलता है. डब्ल्यूआइटी के मामले में 19 मई 2015 को सुनवाई के दौरान हाइकोर्ट ने भी सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्देश का उल्लेख अपनी प्रतिक्रिया में की है.
मापदंड का पालन नहीं
पूर्व से अनुबंध पर कार्यरत कर्मियों की सेवा समाप्त कर नये सिरे से अनुबंध पर कर्मियों की नियुक्ति प्रक्रिया में सरकार के आरक्षण मापदंड की अनदेखी का मामला भी सामने आया है. जानकारों की मानें तो एकल पद को आरक्षित नहीं किया जा सकता. वहीं शिक्षक पदों के लिए जारी विज्ञापन के अनुसार सिविल के एकमात्र पद को आरक्षित श्रेणी के तहत एससी संवर्ग में रखा गया. वहीं तृतीय वर्ग के तहत सहायक एवं सिस्टम एनालिस्ट के एकल पदों को इबीसी संवर्ग में रखा गया. कंप्यूटर ऑपरेटर के एकल पद को बीसी संवर्ग में रखा गया. लाइब्रेरियन के एकमात्र पद को रखा तो गया सामान्य श्रेणी में पर नियुक्ति ओबीसी संवर्ग के तहत की गयी. वहीं चतुर्थ वर्गीय कर्मियों के कुल 22 पदों में सामान्य श्रेणी के केवल 3 अभ्यर्थियों की नियुक्ति की गयी जबकि शेष 19 पद आरक्षित श्रेणी से भरे गये.
विज्ञापन भी त्रुटिपूर्ण
प्राप्त सूचना के आधार पर नियुक्ति के लिए 28 जनवरी 2015 को डब्ल्यूआइटी के बेबसाइट पर विज्ञापन प्रकाशित किया गया. लेकिन विज्ञापन में विज्ञापन संख्या का जिक्र नहीं था. हालांकि 31 जनवरी 2015 को पुन: विज्ञापन प्रकाशित हुआ जिसपर विज्ञापन संख्या 1/15 तो अंकित था पर इसमें निदेशक या कुलसचिव के हस्ताक्षर नदारद थे. वहीं यह भी चर्चा जोरों पर है कि नियुक्ति प्रक्रिया को सीमित रखने के उद्देश्य से इसका प्रचार-प्रसार नहीं किया गया.
कई आवेदन रद्द
संस्थान में पूर्व से कार्यरत कई अनुबंध कर्मियों ने बताया कि विज्ञापन प्रकाशित होने के बाद उन्होंने आवेदन तो दिया पर बिना किसी वैध कारण के उनके आवेदनों को स्क्रुटनी के क्रम में रद्द कर दिया गया. हालांकि विरोध जताने पर उन्हें साक्षात्कार में शामिल तो किया गया पर उनसे कम योग्यता व अनुभव वाले अभ्यर्थियों का चयन कर उन्हें जबरन सेवामुक्त कर दिया गया.
सेवा समाप्ति का निर्णय
पूर्व से कार्यरत कर्मियों ने 11 फरवरी 2015 को उच्च न्यायालय में सीडब्ल्यूजेसी नंबर 3159/15 दायर किया. हालांकि 8 मई 2015 को मामले में निर्णय विवि के पक्ष में आया. इसके बाद आनन-फानन में 11 मई को मैनेजिंग काउंसिल की बैठक आयोजित कर विवि प्रशासन ने तत्परता दिखाते हुए साक्षात्कार के परिणाम पर कर्मियों की नियुक्ति का निर्णय लेते हुए पूर्व से कार्यरत 8 शिक्षक व 24 शिक्षकेतर कर्मियों को सेवा समाप्ति का पत्र थमा दिया गया.
प्रकाशित नहीं हुआ रिजल्ट
मैनेजिंग काउंसिल की बैठक में साक्षात्कार के परिणाम के आधार पर नियुक्ति का निर्णय तो लिया गया पर परिणाम का प्रकाशन नहीं किया गया. लोगों का मानना है कि गुपचुप तरीके से अभ्यर्थियों को नियुक्ति करने की प्रक्रिया शुरू की गयी. बताया जाता है कि नियुक्ति प्रक्रिया से संबंधित विवरण भी संस्थान के वेबसाइट से नदारद हैं. ऐसे में नियुक्ति प्रक्रिया की निष्पक्षता व पारदर्शिता एवं प्रशासन की मंशा संदेह के घेरे में आती दिख रही है. पूर्व कर्मियों की मानें तो नियुक्ति में भाई-भतीजावाद व पैरवी का खेल व्यापक स्तर पर चला है.
कार्यप्रणाली पर उठे सवाल
मैनेजिंग काउंसिल के निर्णय के उपरांत 16 मई को उच्च न्यायालय में सीडब्ल्यूजेसी 3159/15 में एलपीए 1052/15 दायर किया गया. मामले की सुनवाई के क्रम में 19 मई को मुख्य न्यायाधीश एल नरसिम्हा रेड्डी एवं न्यायाधीश सुधीर कुमार सिंह की पीठ ने वीसी की कार्यप्रणाली पर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए कहा कि नियुक्ति के साथ ही वीसी ने डब्ल्यूआइटी में खुद की टीम बनाने की मंशा से पूर्व से कार्यरत कर्मियों को हटाकर नये लोगों की नियुक्ति के लिए विज्ञापनजारी किया. इस कड़ी में कोर्ट ने पूरे मामले में वीसी से 23 जून को कोर्ट के समक्ष स्पष्टीकरण का निर्देश भी दिया है.
डब्ल्यूआइटी निदेशक प्रभावती का कहना है कि पूर्व में जो नियुक्ति हुई थी, उसमें आरक्षण मापदंडों का पालन नहीं किया गया था. 22 में 16 कर्मी सामान्य श्रेणी के नियुक्त किये गये थे.
वर्तमान नियुक्ति प्रक्रिया में आरक्षण मापदंड का पालन होने की बात करते हुए उन्होंने कहा कि एकल पदों में आरक्षण लागू होता है. त्रुटिपूर्ण विज्ञापन के प्रश्न पर उनका कहना था कि शुद्धि पत्र के साथ विज्ञापन पुन: प्रकाशित किया था. हस्ताक्षर वेबसाइट पर नहीं थे, पर फाइल में है. आवेदनों के रद्द किये जाने के प्रश्न पर उनका कहना है कि बिना कारण किसी आवेदन को छांटा नहीं गया. जिनका आवेदन रद्द किया गया उन्हें साक्षात्कार में बुलाया नहीं गया.
वहीं बाद में उन्होंने कहा कि किसी कारण से जो छूट गये उन्हें बाद में शामिल किया गया. रिजल्ट प्रकाशित नहीं होने की बात स्वीकार करते हुए उन्होंने कहा कि चयनित अभ्यर्थियों को कॉल किया गया. वहीं इससे पारदर्शिता बाधित नहीं होने की बात भी उन्होंने कही. वेवसाइट से डिटेल्स नदारद होने की बात तो उन्होंने स्वीकार की पर इसका ठीकरा उन्होंने वेवसाइट संचालन कंपनी पर फोड़ा और कहा कि वेवसाइट वाले मनमानी करते हैं.

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