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21 वर्ष से गांधी जयंती पर करते आ रहे रक्तदान

-गुंजन कुमार- दरभंगाः भारतीय इतिहास में दानवीरों की लंबी फेहरिस्त रही है. इसमें राजा बलि तथा राजा कर्ण का नाम सबसे ऊपर रहता है. आधुनिक काल में जहां रक्तदान को महादान माना जाता है, उसमें जिले के दंपती विधान चंद्र सिंह व पत्नी शीला सिंह को दानवीर कहा जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. 50 […]

-गुंजन कुमार-

दरभंगाः भारतीय इतिहास में दानवीरों की लंबी फेहरिस्त रही है. इसमें राजा बलि तथा राजा कर्ण का नाम सबसे ऊपर रहता है. आधुनिक काल में जहां रक्तदान को महादान माना जाता है, उसमें जिले के दंपती विधान चंद्र सिंह व पत्नी शीला सिंह को दानवीर कहा जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी.

50 बसंत पार कर चुके लहेरियासराय के बंगाली टोला निवासी विधान चंद्र सिंह व शीला सिंह वर्ष 1993 से लगातार गांधी जयंती (2 अक्तूबर) को स्वैच्छिक रक्तदान कर गांधी की प्रासंगिकता को आज भी सच करते हुए पीड़ित मानवता की सेवा कर अद्भुत मिसाल पेश कर रहे हैं. इन दंपती के जज्बे को रक्त अधिकोष के चिकित्सक व कर्मी भी सलाम करते हैं. बुधवार को गांधी जयंती था. सुबह के 10.30 बजे अन्य वर्षाकी तरह विधान चंद्र सिंह अपनी पत्नी शीला सिंह, पुत्र कुमार आदित्य व सास श्यामा देवी(70) के साथ स्वैच्छिक रक्तदान करने पहुंच गये. रक्त अधिकोष के चिकित्सक व कर्मी इनका गर्मजोशी से स्वागत किये. रक्तदान के बाद पूछने पर श्री सिंह ने बताया कि रक्तदान के बाद शकुन मिलता है और काफी तरोताजा महसूस करते हैं. गांधी जयंती के अवसर पर ही रक्तदान करने की बात पर श्री सिंह ने कहा कि उनकी मानवता की सेवा के प्रति जो सोच थी उसपर अमल करने का यह मेरा छोटा सा प्रयास है. श्री सिंह की पत्नी शीला सिंह ने बताया कि अपने पति से प्रेरित होकर वर्ष 1993 से गांधी जयंती के अवसर पर रक्तदान करती हूं. श्रीमती सिंह ने कहा कि खून से किसी की जिंदगी बच सकती है. उन्होंने कहा कि किसी की जिंदगी अगर खून से बच सकती है तो मैं कभी भी जरूरतमंदों के लिए रक्तदान कर सकती हूं. उन्होंने कहा कि मैं अपने बेटे कुमार आदित्य को भी साथ में रक्तदान के लिए प्रेरित करने लाती हूं.

मायूस हुए बेटे व सास

स्वैच्छिक रक्तदाता विधान चंद्र प्रसाद के बेटे कुमार आदित्य (14) व सास श्यामा देवी (70) का रक्त रक्त अधिकोष में नहीं लिया गया. रक्त अधिकोष के इंचार्ज डॉ ओपी चौरसिया ने बताया कि आदित्य की उम्र 18 वर्ष से कम है और श्यामा देवी 70 बसंत पार कर चुकी हैं इसलिए उनका रक्त नहीं लिया जा सकता.

रक्तदान नहीं कर पाने पर श्यामा देवी ने बताया कि बेटी व दामाद से प्रेरित होकर मैं भी रक्तदान करने का मन बनाया था, परंतु यह हो न सका. श्यामा देवी ने बताया कि इसका अफसोस उसे मरने दम तक रहेगा. वहीं आदित्य ने बताया कि मैं अपने मां-पिता के पदचिह्नें पर चलकर आने वाले समय में स्वैच्छिक रक्तदान करूंगा.

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