/रफोटो -फारवार्डेंड बेनीपुर . मिथिलांचल के लोक आस्था का पर्व वटसावित्री रविवार को ग्रामीण क्षेत्र में आस्था के साथ मनाया गया. आमतौर पर यह पर्व मिथिलांचल के सधवा (सुहागिन) महिला अपने सुहाग की रक्षा के लिए हर वर्ष ज्येष्ठ अमावस्या को मनाती है. उक्त पर्व के महात्म्य पर प्रकाश डालते हुए पोहदी के पंडित परमेंदू पाठक स्कन्द पुराण में वर्णीत तथ्य के हवाला देते हुए कहते हैं कि शास्त्रीय महात्म्य के साथ-साथ वैज्ञानिकता से भी ओत-प्रोत हो रहा है. उन्होंने कहा कि इस पर्व को वटवृक्ष के मूल में बैठकर सावित्री सहित वटवृक्ष की पूजा एवं सूत्र द्वारा वेष्टन किया जाता है. वृक्ष की पूजा करना सूत्र से वेष्टित करना उनपर पंखा झेलना षोडशोपचार विधि पूजनादि से स्पष्ट संकेत देता है कि पर्यावरण की सुरक्षा से आयु अर्थात मानव जीवन की सुरक्षा संभव हो सकता है. वैसे ऐसी धारणा है कि सावित्री द्वारा निष्ठापूर्वक मणि माणिक्य रूप से फलों से लदे हुए वटवृक्ष की पत्तियों ने सत्यवान को पुनर्जीवन प्रदान हुआ था और उसी समय से वटवृक्ष पूजन की परंपरा चली आ रही है. इस दौरान नव विवाहिता युवती के ससुराल से भेजे गये पूजन सामग्री एवं परिधान से सुसज्जित हो युवती व्रत रख अपने अमर सुहाग की कामना से उक्त पर्व मनाती है.
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गांवों में रही वटसावित्री की धूम
/रफोटो -फारवार्डेंड बेनीपुर . मिथिलांचल के लोक आस्था का पर्व वटसावित्री रविवार को ग्रामीण क्षेत्र में आस्था के साथ मनाया गया. आमतौर पर यह पर्व मिथिलांचल के सधवा (सुहागिन) महिला अपने सुहाग की रक्षा के लिए हर वर्ष ज्येष्ठ अमावस्या को मनाती है. उक्त पर्व के महात्म्य पर प्रकाश डालते हुए पोहदी के पंडित परमेंदू […]
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