दरभंगा /अलीनगर : रमजानुल मुबारक का पाक महीना वास्तव में नेकी और इबादत के लिए तरबियत (प्रशिक्षण) का महीना है. इस महीने में अल्लाह हर नेकी एवं ईबादतों के बदले सत्तर गुना तक बढ़ाकर सवाब (पुण्य) देता है. रोजा रखना हर मुसलमान वयस्क महिला एवं पुरुषों के लिए अनिवार्य है. महुली नानकार (जाले) के बुजुर्ग आलिम मौलाना नसीम अहमद कासमी ने यह बात कही. उन्होंने कहा कि जो लोग रोजा नहीं रखते वह काफी नुकसान में हैं. रोजेदारों के लिए अल्लाह ने बड़े-बड़े इनाम का ऐलान किया है. रोजेदारों को जन्नत के आठ दरवाजों में से एक खास दरवाजा बाबुर रैयान होकर जन्नत में दाखिल कराया जाता है.
रमजानुल मुबारक के पूरे महीना को तीन हिस्सों में बांटा गया है. प्रत्येक हिस्सा दस दिनों का एक अशरा कहलाता है. पहला अशरा रहमत का, दूसरा अशरा मगफिरत (मोक्ष) का एवं तीसरा अशरा जहन्नम की आग से छुटकारा का है. इस महीने की खास इबादतों में नमाजे तरावीह भी है, जो रात में ईशा की नमाज में बीस रिकत पढ़ा जाता है. यह ईद की चांद निकलने वाले दिन से पहले तक अदा कर लिया जाता है. यह दो तरीकों से अदा किया जाता है. सूरह तरावीह, जो कोई भी मुसलमान खुद या जमाअत से पढ़ सकता है, किंतु खत्म तरावीह हाफिज ए कुरान ही पढ़ाते हैं. इसमें कुरान के पूरे तीस पारे पढ़े जाते हैं.
रमजानुल मुबारक में जिस तरह से लोग अपनी दैनिक जिंदगी में नियम और निष्ठा का पालन करते हैं, उसे आम दिनों में भी कायम रखें, तो इससे अच्छा समाज भी बनेगा और उसके बदले अल्लाह अपनी रहमतों से और इनामों से नवाजेगा. कहा कि ज्यादा से ज्यादा सवाब प्राप्त करने के लिए कुराने पाक की तिलावत और नफली इबादत करने के साथ-साथ कसरत से आका सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम पर दुरुद ए पाक भेजें. मां बाप जिंदा हों, तो उनकी खिदमत करें. वे दुनिया से गुजर गए हैं, तो उनके लिए भी मगफिरत की दुआ करें.