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अन्न नइ देतै, अइ बेर रुपयै खयतै लोग

कमतौल : बाढ़ के पानी से स्थानीय लोगों को निजात मिल गया है. परंतु जहां-तहां खेत-खलिहान और चौर में अब भी पानी भरा है. कमतौल-जोगियारा पथ पर बाढ़ पीड़ित कई परिवार अभी भी शरणार्थी जीवन बिता रहे हैं. 15 दिन बाद भी करीब दर्जन भर से ज्यादा परिवार घर गिरने से माल मवेशी के साथ […]

कमतौल : बाढ़ के पानी से स्थानीय लोगों को निजात मिल गया है. परंतु जहां-तहां खेत-खलिहान और चौर में अब भी पानी भरा है. कमतौल-जोगियारा पथ पर बाढ़ पीड़ित कई परिवार अभी भी शरणार्थी जीवन बिता रहे हैं. 15 दिन बाद भी करीब दर्जन भर से ज्यादा परिवार घर गिरने से माल मवेशी के साथ जहां-तहां सड़क पर ही शरणार्थी की तरह जिंदगी गुजारने को विवश हैं. प्रशासन की ओर से राहत सामग्री मिलने की बाट जोहते-जोहते लोगों की दिन-रात गुजर रही है.

कहिया देलकै जे आइ देतइ : सुबह के नौ बजे हैं. कमतौल-जोगियारा पथ पर आवागमन अन्य दिनों की तरह है. दो-तीन और चार पहिया वाहन आ-जा रहे हैं. देउरा के समीप सड़क किनारे दरवाजे पर बैठे लोग बातचीत में मशगूल हैं. सड़क पर जहां-तहां बाढ़ में भींग चुका भूसा, गेहूं और कहीं-कहीं जलावन आदि को धूप में सुखाने के लिए छोड़ रखा गया है. समय-10 बजे. जाले पूर्वी पंचायत के पौनी के समीप बगीचे में कई लोग बैठे हैं. कई सड़क किनारे पेड़ की छांव में धूप से बचने की कोशिश कर रहे हैं. एक व्यक्ति अखबार को एकटक देख रहा है. शायद बाढ़ से जुड़ी खबरों में से कुछ ढूंढ रहा हो. पूछने पर अपना नाम सुंदर पासवान बताया. कहा कि पिछले वर्ष ही डाक विभाग से सेवानिवृत हुआ हूं. बाढ़ और राहत की बात पूछने पर भड़क जाते हैं. कहते हैं अधिकारियों के तो दर्शन दुर्लभ है.
जनप्रतिनिधि भी कन्नी काटने लगे हैं. रास्ते से गुजरते हुए झांकना भी मुनासिब नहीं समझते. उनकी बात काटते हुए बीच में ही रामविलास पासवान, मोतीफूल रहमान, मनरूप सहनी, कप्पल सहनी, मो. शमीम आदि कहते हैं. ई राहत के चक्कर में हम सब आहत भ रहल छी. बुझाइय जेना कि अबिते-अबिते कहीं रस्ते में नइ सुइख जाय. वहीं कुछ दूर खड़ी सोमनी देवी तेजी से आकर कहती है-‘ आई तक के केकरा की देलकै, जे आई देतइ.
आइ धरि पन्नियों नइ मिलल :
घर गिरने से सड़क किनारे शरणार्थी की तरह जिंदगी गुजार रही संजय पासवान की पत्नी रेणु देवी, शत्रोहन सहनी की पत्नी पूना देवी, परमेश्वर सहनी की पत्नी जीतकाली देवी कहती हैं- बाढ़ में घरों गिरल. आई धरि पन्नियों नई मिलल. नामों लिखे वाला सब मरदबे के नाम लिख-लिख क ल जाइत गेलै. मौगी के नाम किये नइ लिखलकइ.
भींगे अन्न को सूखा रहे लोग : समय 10.45 बजे. कड़ी धूप में सड़क पर ही एक महिला पसीने से तरबतर गेहूं सूखाने को मशक्कत कर रही है. पूछने पर अपना नाम दुखनी देवी बतायी. कहने लगी बाढ़ में घर में कमर तक पानी था. किसी तरह कुछ सामान बचा पाये. जो भींग गया, उसे सूखा रहे हैं. हमारी तरह कई लोग हैं, जिनका गेंहूं-चावल भींग गया. सूखा-सूखा कर रख रहे हैं. दुखनी कहती है- सब कहई छै जे अई बेर अन्न नइ देतै, रुपैये देतै, उ हो खाता में. लोग रुपैये खतई की. खायला त अन्ने चाही न यो.

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