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दरभंगा के लाल ने कश्मीर के आतंक अबु दुजाना को किया ढेर

बहादुरपुर/सदर (दरभंगा) : मेधा की धनी मिथिला की धरती का मान विभिन्न क्षेत्रों में यहां के लाल बढ़ाते रहे हैं. इस कड़ी को कुमार मयंक का भी नाम जुड़ गया है. उन्होंने जिलावासियों का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया है. जम्मू-कश्मीर के घाटी क्षेत्र में आतंक का पर्याय बन चुके 15 लाख के इनामी […]

बहादुरपुर/सदर (दरभंगा) : मेधा की धनी मिथिला की धरती का मान विभिन्न क्षेत्रों में यहां के लाल बढ़ाते रहे हैं. इस कड़ी को कुमार मयंक का भी नाम जुड़ गया है. उन्होंने जिलावासियों का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया है. जम्मू-कश्मीर के घाटी क्षेत्र में आतंक का पर्याय बन चुके 15 लाख के इनामी पाकिस्तानी आतंकवादी अबु दुजाना का खात्मा कुमार मयंक ने ही किया था. मयंक की बहादुरी से जिले के लोगों का सीना चौड़ा कर दिया है. जहां उनके गांव रानीपुर के लोग खुशी से झूम रहे हैं, वहीं उनके ससुराल जमशम व उनकी पत्नी के ननिहाल सिनुआरा में लोग फूले नहीं समा रहे.

जिला मुख्यालय से सटे सदर प्रखंड के रानीपुर निवासी शिक्षक कामेश्वर चौधरी व शिक्षिका माता प्रभा देवी के पुत्र कुमार मयंक
दरभंगा के लाल
की स्कूली शिक्षा शहर के ज्ञान भारती पब्लिक स्कूल में हुई. जिला स्कूल से उन्होंने वर्ष 1991 में मैट्रिक पास की. मारवाड़ी कॉलेज से 1993 में आइएससी करने के बाद सीएम साइंस कॉलेज से 1996 सत्र में ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की. बचपन से ही मेधावी मयंक इसके बाद दिल्ली चले गये. वहां पीजी में नामांकन कराने का प्रयास किया, लेकिन समय बीत जाने के कारण नामांकन नहीं हो सका. दरअसल, ऊपरवाले ने मयंक के लिए कुछ और ही निर्धारित कर रखा था. मयंक ने प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी. 1999 में सीआरपीएफ में उनका चयन हो गया. 2000 में इन्होंने इसमें योगदान किया.
2004 में उनकी शादी एसबीआइ के अधिकारी जमशम निवासी शैलेंद्र झा की पुत्री सुप्रिया शैलेन के साथ हुई. इस बीच कुमार मयंक की पहली पोस्टिंग जम्मू-कश्मीर में हुई. इसके बाद वहां के मुख्यमंत्री की सुरक्षा का भार इनके कंधे पर आया. यहां से इनका स्थानांतरण असम कर दिया गया. असम के बाद भुवनेश्वर. वहां से छत्तीसगढ़ में सीआरपीएफ कमांडेंट के रूप में कई उपलब्धियां हासिल कीं.
इस बीच बेगूसराय में इन्हें एएसपी बनाकर भेजा गया. पांच वर्ष तक यहां सेवा देने के बाद चालू वर्ष के नौ मई को फिर से इन्हें वापस सीआरपीएफ में बुला लिया गया. अभी वे कश्मीर के पुलगामा कैंप में आरपीएफ की एक बटालियन 182 का नेतृत्व कर रहे हैं.
दुजाना का एनकाउंटर बड़ी उपलब्धि
इस संबंध में श्री मयंक ने बताया कि वैसे तो उन्होंने अपने सेवाकाल में कई माओवादियों व आतंकियों को मौत के घाट उतारा है, लेकिन सबसे बड़ी उपलब्धि एक अगस्त को मिली, जब गुप्त सूचना पर उन्होंने कश्मीर की घाटी के लोगों के बीच आतंक का पर्याय बन चुके अबु दुजाना को घेर कर एनकाउंटर कर दिया.
सिनुआरा में भी हर्ष का वातावरण
कुमार मयंक के दादा स्वतंत्रता सेनानी थे. वे बताते हैं कि राष्ट्र सेवा का भाव उन्हें पैतृक सौगात के रूप में मिला है. 12 वर्षीय पुत्री खुशी व 10 वर्षीय पुत्र वंश वत्स के साथ वे राष्ट्रसेवा में जुटे हैं. इस उपलब्धि पर उनकी पत्नी सुप्रिया शैलेन के ननिहाल बहादुरपुर के सिनुआरा में भी हर्ष का वातावरण है. सुप्रिया के चचेरे नाना कृष्णकांत चौधरी उर्फ कन्हैया चौधरी सहित अन्य ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि उन्हें फख्र है कि कुमार मयंक उनकी नतिनी के पति हैं.

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