* विद्यालय भवन जजर्र, कभी भी हो सकता है हादसा
बक्सर : नगर के सिद्धनाथ घाट स्थित नेहरुस्मारक मध्य विद्यालय तीन कमरों के जर्जर भवन में चल रहा है. कमरों की छते काफी कमजोर है. छतों की पटिया नीचे लटकी हुई है. यदि छत गिरती है तो विद्यालय में पढ़नेवाले छात्रों की जाने जा सकती है और वे हमेशा के लिए मौत की नींद सो सकते हैं.
विद्यालय की प्रधानाध्यापिका ने विद्यालय स्थानांतरण को लेकर कई बार विभाग के आला अधिकारियों से मिली, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. शिक्षकों ने विद्यालय के लिए जमीन भी अंचलाधिकारी को प्रस्तावित किया है, परंतु अब तक विभाग ने विद्यालय को न तो कोई जमीन उपलब्ध करा पाया और न ही कोई वैकल्पिक व्यवस्था ही की. ऐसे में हर रोज विद्यालय आनेवाले बच्चों को एक बड़े हादसे का शिकार होने का भय बना हुआ है.
* बरसात में पढ़ाई होती है बाधित
वर्ष 1963 में स्थापित इस विद्यालय को वर्ष 1971 में मान्यता मिली, लेकिन तब से अब तक विद्यालय तीन छोटे कमरों में संचालित होता है. विद्यालय में कुल 335 छात्र–छात्राएं शिक्षा ग्रहण करती है, जिसमें से हर रोज करीब सत्तर प्रतिशत तक की उपस्थिति रहती है, लेकिन इनके बैठने के लिए माकूल जगह भी नहीं है. कमरों को काफी छोटा होने के कारण बच्चों को बैठने में काफी परेशानी होती है. वहीं, बारिश होने पर छतों से पानी टपकता है, जिससे बच्चे पढ़ने के बजाय अपने को बचाने की कोशिश में लगे रहते हैं. ऐसी स्थिति के कारण बच्चों की पढ़ाई काफी बाधित होती है.
* बच्चों की आंखे हो रही खराब
विद्यालय के तीनों कमरों में अंधेरा छाया रहता है. कमरों में प्रकाश और हवा आने का कोई माध्यम नहीं है. ऐसे में बच्चों को अंधेरे में पढ़ाई करनी पढ़ती है. इस स्थिति के कारण विद्यालय के बच्चे बताते हैं कि दिन भर अंधेरे कमरे में रहने के बाद उजाले में जाने पर उनकी आंखे काफी प्रभावित होती है. विद्यालय के शिक्षकों ने बताया कि अब तक कई बच्चों को आंखों की बीमारी की शिकायत आयी है, जिसे चिकित्सकों से जांच करनी पड़ी है.
* जमीन है प्रस्तावित
प्रधानाध्यापिका प्रभावती देवी ने बताया कि उन्होंने सीओ को गोला घाट स्थित गंग बरार की सात डिसमिल जमीन को प्रस्तावित किया है, जिसे अब तक विद्यालय को नहीं दिया गया है. वहीं, शिक्षा विभाग को कई बार विद्यालय की समस्याओं से अवगत कराया गया है, परंतु अब तक कोई सकारात्मक पहल नहीं हुई है.
* अब तक क्या हुआ
शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने अब तक कई बार विद्यालय पर जाकर रिपार्ट तैयार की, लेकिन इसके बाद की प्रक्रिया भूल गये. इतने वर्षो में कई डीइओ ने विद्यालय पर आकर निरीक्षण किया फिर भी विद्यालय का काया पलट नहीं हो सका.