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दर्जनों बुजुर्गों को सहारा नहीं

सरकार बुजुर्गों को सहारे के लिए वृद्धा पेंशन देती है. लेकिन फतेहपुर प्रखंड का एक गांव है बोराबाद. यहां के छह बुजुर्गों को आज तक वृद्धा पेंशन नहीं मिला. इन बुजुर्गों ने ऐसा नहीं है कि बूढ़े पांव के भरोसे कोशिश नहीं की. इन्होंने आवेदन भी दिया. लेकिन शासन को परवाह नहीं. पंचायत से लेकर […]

सरकार बुजुर्गों को सहारे के लिए वृद्धा पेंशन देती है. लेकिन फतेहपुर प्रखंड का एक गांव है बोराबाद. यहां के छह बुजुर्गों को आज तक वृद्धा पेंशन नहीं मिला. इन बुजुर्गों ने ऐसा नहीं है कि बूढ़े पांव के भरोसे कोशिश नहीं की. इन्होंने आवेदन भी दिया. लेकिन शासन को परवाह नहीं. पंचायत से लेकर प्रखंड तक के ये बुजुर्ग दरवाजा खटखटा चुके हैं.
लेकिन कोई सुनने वाला नहीं. जीवन की अंतिम पड़ाव में अब तो वे इसकी आस भी छोड़ चुके हैं. लेकिन जो भी हो ये तंत्र की बड़ी कमजोरी है.जिन बुजुर्गों की दुआ के लिए लोग तरसते हैं, उन्हें ही उपेक्षित किया जा रहा है.
जनप्रतिनिधियों का ध्यान नहीं : गांव समाज की पहरेदारी जनप्रतिनिधियों के हाथों में होती है. उनके सुखदुख में काम आना जनप्रतिनिधियों का नैतिक धर्म बनता है. लेकिन जहां बुजुर्गों के साथ यह स्थिति होगी अंदाजा लगाया जा सकता है कि जनप्रतिनिधि इलाके पर कितना ध्यान देते होंगे. इनके वोट से नेता बनते हैं और इन्हें ही भूल जाते हैं. बुजुर्ग पांकु हांसदा, कन्हाई टुडू, गुड़िया टुडू, सुंदरी टुडू आदि का कहना है कि वोट के समय नेता हाथ जोड़ कर व पांव पड़ कर वोट मांगते हैं. जीतने के बाद भूल जाते हैं कि वे कौन हैं. नेताओं के दरवाजे पर भी जाने पर उन्हें तरजीह नहीं दी जाती.
जंगलों से घिरा है बोराबाद
बोराबाद का इलाका जंगलों से घिरा है. रोजगार के कोई साधन नहीं हैं. ये बुजुर्ग कहते हैं जब तक शरीर में दम था शहर जाकर कमा लेते थे. अब शरीर उस लायक रहा नहीं. किसी तरह पेट पल जाता है बच्चों की कमाई के भरोसे. अलग से कुछ सोच ही नहीं सकते अपने लिए.

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