छठ महापर्व . चने की दाल, अरवा चावल का भात व कद्दू की सब्जी का आज बनेगा प्रसाद
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सूर्योपासना का महापर्व आज से शुरू
छठ महापर्व . चने की दाल, अरवा चावल का भात व कद्दू की सब्जी का आज बनेगा प्रसाद आरा/कोइलवर : गुरुवार को नहाय-खाय के साथ ही आज से आस्था का महापर्व छठ की शुरुआत हो जायेगी. नगर के हजारों घरों में व्रतियों द्वारा नदियों, तालाबों तथा अपने घरों में स्नान के बाद अरवा चावल का […]
आरा/कोइलवर : गुरुवार को नहाय-खाय के साथ ही आज से आस्था का महापर्व छठ की शुरुआत हो जायेगी. नगर के हजारों घरों में व्रतियों द्वारा नदियों, तालाबों तथा अपने घरों में स्नान के बाद अरवा चावल का भात, चना दाल व कद्दू की सब्जी बना कर छठव्रतियों द्वारा भोजन किया जायेगा तथा प्रसाद के रूप में घर के लोगों, मित्रों व परिचितों को प्रसाद के रूप में खिलाया जायेगा़. चार दिवसीय महापर्व छठ का यह पहला दिन है़. छठव्रतियों द्वारा घरों की विधिवत सफाई कर व्रत प्रारंभ होता है़. पूरा वातावरण आज बुधवार से ही भक्तिमय लगने लगा़. छठव्रतियों ने नहाय-खाय के लिए सभी तैयारियां पूरी कर ली है़. पवित्रता इस व्रत का सबसे महत्वपूर्ण पहलू होती है़
व्रतियों ने की तैयारियां पूरी : आस्था का महापर्व छठ की सभी तैयारियां व्रतियों ने पूरी कर ली है. गुरुवार को नहाय-खाय के साथ ही व्रत प्रारंभ हो जायेगा. इस दिन व्रतियों द्वारा पवित्र स्नान करके भात, दाल व कद्दू की सब्जी बना कर स्वयं खाया जाता है तथा परिजनों सहित परिचितों व मित्रों को भी खिलाया जाता है. इससे सामाजिकता का भी बोध होता है तथा धर्म का भी पालन होता है.
कोइलवर संवाददाता के अनुसार, पूरे प्रखंड में माहौल भक्तिमय हो गया है. प्रशासनिक स्तर पर कोइलवर में 10 छठ पूजा घाटों पर सफाई की गयी़ वहीं स्थानीय स्वयंसेवी संस्थाएं घाटों की साफ-सफाई को अंतिम रूप देने में लगे हैं. चार दिवसीय अनुष्ठान के पहले दिन छठव्रती नहाय-खाय के दिन नदी, पोखर, कुअां, नहर में स्नान कर भगवान भास्कर को जल अर्पण करते हैं. नहाय-खाय के दिन मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी से नये अरवा चावल,चने की दाल, लौकी और आलू,
सेंधा नमक में घी से बने व्यंजन को ग्रहण करते हैं. वहीं छठ व्रत के दूसरे दिन पूरे दिन उपवास रखने के बाद संध्या में भगवान भास्कर की अाराधना व पूजा-अर्चना कर रोटी,दूध,गुड़ की खीर प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं. अनुष्ठान के तीसरे दिन नदी, तालाब,पोखर,कुएं के पास छठव्रती पूरे परिवार के साथ छठ गीत गाते हुए पहुंच अस्ताचलगामी सूर्य की अाराधना कर अर्घ देते हैं. वहीं अनुष्ठान के चौथे दिन उदीयमान सूर्य को नमन कर अर्घ देने के साथ चार दिवसीय अनुष्ठान पूरा कर लिया जाता है.
घाटों की सफाई के लिए कोईलवर, कायमनगर ,धण्डीहा, बहियारा, जमालपुर, मानीकपुर, हरिपुर, खनगांव, कटकैरा में स्वयंसेवी संस्थाएं अपने स्तर से घाटों को सजाने में लगी हैं.
सूप की खरीदारी करते लोग.
कब से शुरू हुई परंपरा
कहते हैं कि 14 वर्ष के वनवास के बाद जब भगवान राम तथा मां जानकी अयोध्या से लौटे थे, तब उन्होंने भगवान सूर्य को प्रसन्न करने के लिए छठव्रत किया था. वहीं, त्रिकालदर्शी ऋषि सौम्य के कहने पर देवी द्रौपदी ने भगवान सूर्य की पूजा की थी. तब भगवान सूर्य ने उन्हें शक्ति प्रदान किया था, इससे पांडवों को अपना राज्य प्राप्त करने में उन्होंने मदद किया था. इस तरह छठव्रत की शुरुआत त्रेता से ही मानी जाती है.
भगवान सूर्य के साथ होती है छठी मइया की पूजा
भगवान सूर्य के साथ छठी मइया की भी पूजा की जाती है. मान्यता के अनुसार छठी मइया अर्थात भगवान सूर्य की पत्नी उषा एवं प्रत्यूषा की भी पूजा की जाती है. प्रथम दिन सायं काल में अस्ताचलगामी सूर्य के साथ देवी उषा को अर्घ दिया जाता है, जबकि दूसरे दिन उदीयमान सूर्य के साथ देवी प्रत्यूषा को अर्घ दिया जाता है तथा पूजा-अर्चना की जाती है. ऐसी मान्यता है कि इससे विपत्तियों का नाश होता है.
अलग-अलग नामों से होता है छठ व्रत
छठव्रत चार दिनों तक चलता है. इसमें पहला दिन नहाय-खाय, दूसरा दिन खरना होता है. तीसरा दिन अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ तथा चौथे दिन उदीयमान सूर्य को अर्घ के साथ ही छठ व्रत का समापन हो जाता है. अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग नाम से छठ पर्व मनाया जाता है. कहीं छठ व्रत, कहीं छठ पूजा, कहीं डाला छठ, कहीं डाला पूजा तो कहीं सूर्य षष्ठी के नाम से इस पर्व को मनाया जाता है.
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