आरा : जिले में पशुओं की खरीद-बिक्री के लिए कई मेले लगते हैं, जिनका समय अलग-अलग हैं. इसके माध्यम से किसान पशुओं की खरीद-बिक्री करते हैं, ताकि कृषि कार्य सहित दूध की भी पूर्ति हो सके. नियमानुसार पशु मेला लगाने की प्रशासन की अनुमति लेनी पड़ती है, ताकि किसी भी तरह की समस्या का समाधान प्रशासन के माध्यम से किया जा सके.
वहीं पशु मेले के माध्यम से सरकार को काफी राजस्व की प्राप्ति होती है. पर जिले में तरारी प्रखंड के मोआप कला गांव में लगनेवाला पशु मेले के लिए प्रशासन द्वारा किसी तरह की मान्यता नहीं दी गयी है. फिर भी धड़ल्ले से मेला लगाया जाता है और पशुओं की खरीद- बिक्री होती है.
जिले में मान्यता प्राप्त हैं छह मेले : पशुओं की खरीद- बिक्री के लिए जिले में कई मेले लगाये जाते हैं, पर इसमें महज छह को ही प्रशासन द्वारा मान्यता प्राप्त है. कोइलवर प्रखंड के खनगांव में पशु मेला लगाया जाता है, जो हर रविवार को लगता है. वहीं प्रखंड क्षेत्र के श्रीपालपुर में भी मेला लगता है. जो जनवरी व मार्च में एक सप्ताह के लिए लगाया जाता है.
वहीं सहार के पेऊर में गुरुवार को, गड़हनी में मंगलवार को, बिहिया में रविवार को मेला लगता है. आरा की सिंगही में मार्च में एक माह के लिए मेले का संचालन होता है.
मान्यता के अभाव में सरकार को लगता है राजस्व का चूना : तरारी प्रखंड के मोआप कला में बिना प्रशासन की मान्यता के ही मेला लगाया जाता है, जो हर शुक्रवार को लगता है. जून से नवंबर तक इस मेले का संचालन किया जाता है. जहां हजारों की संख्या में पशुओं की खरीद- बिक्री होती है. इससे सरकार को लाखों रुपये के राजस्व का चूना लगता है. गत वर्ष गड़हनी पशु मेले में भारी हादसा हुआ था. मेले में बिजली का तार गिरने से कई पशु इसकी चपेट में आये थे, जिसका कई पशुओं की मौत हो गयी थी. जिला प्रशासन तब हरकत में आया था और पशु मेलों पर नकेल कसने की कवायद शुरू हुई थी. इसके बाद भी मोआप कला में लगनेवाले पशु मेले के लिए मान्यता नहीं ली गयी. फिर भी प्रशासन द्वारा इस पर कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है.