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काम के टेंशन में खुद मरीज बनते जा रहे शहर के डॉक्टर

60 प्रतिशत चिकित्सक रहते हैं गंभीर मानसिक तनाव में भागलपुर : हर के अस्पतालों में हर रोज 15 से 18 हजार मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं. इनके इलाज के लिए मात्र 125 चिकित्सक हैं. काम का बोझ इतना है कि लोगों के दर्द को दूर करनेवाले चिकित्सक खुद ही बीमार होने लगे हैं. इस […]

60 प्रतिशत चिकित्सक रहते हैं गंभीर मानसिक तनाव में

भागलपुर : हर के अस्पतालों में हर रोज 15 से 18 हजार मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं. इनके इलाज के लिए मात्र 125 चिकित्सक हैं. काम का बोझ इतना है कि लोगों के दर्द को दूर करनेवाले चिकित्सक खुद ही बीमार होने लगे हैं. इस बात की पुष्टि चिकित्सा क्षेत्र से जुड़ी एक शोध एजेंसी की रिपोर्ट से होती है. रिपोर्ट के मुताबिक, मरीजों की लंबी-लंबी कतारें, काम का अत्यधिक बोझ और खुद के लिए समय न होने के चलते 60 प्रतिशत से ज्यादा चिकित्सक गंभीर मानसिक तनाव में रहते हैं.
इससे चिकित्सकों की सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. वह कई तरह के रोगों का शिकार हो जाते हैं. वहीं तनाव मुक्त रहने के लिए चिकित्सकों को खुद दवाओं का सहारा लेना पड़ रहा है. जेएलएनएमसीएच के मेडिसिन विभाग के फिजिशियन सह आइएमए भागलपुर ब्रांच के पूर्व अध्यक्ष डॉ हेमशंकर शर्मा बताते हैं कि दो दशक पहले मायागंज हॉस्पिटल के ओपीडी में महज 50 से 60 मरीज आते थे, जिनके इलाज के लिए दो एमडी मेडिसिन मौजूद रहते थे. वहीं अब हर रोज 350 से 400 मरीज मायागंज ओपीडी में पहुंच रहे हैं जिनके लिए महज पांच चिकित्सक मौजूद हैं.
टेंशन दूर करने के लिए लगा रहे ध्यान
मायागंज हॉस्पिटल के मनोरोग विभाग के अध्यक्ष सह मनोरोग चिकित्सक प्रो (डॉ) अशोक कुमार भगत के अनुसार, उनकी ओपीडी में कई बार चिकित्सक आते हैं. वे उन डॉक्टरों को तनाव दूर करने के लिए दवाओं के साथ-साथ मेडिटेशन (ध्यान), योग, स्वीमिंग समेत अन्य तरीके आजमाने की सलाह देते हैं.
मायागंज हॉस्पिटल में जूनियर चिकित्सकों पर काम का ज्यादा लोड है. एक जूनियर चिकित्सक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि उनके हिस्से तो उसके सीनियर की ड्यूटी निभाने का लोड रहता है. यही नहीं केस खराब होने की स्थिति में मरीजों के तीमारदारों के गुस्से का सामना भी जूनियर चिकित्सकों को करना पड़ता है.
सरकारी अस्पतालों की स्थिति ज्यादा खराब
पीजी शिशु रोग विभाग के अध्यक्ष सह शिशु रोग विशेषज्ञ प्रो (डॉ) आरके सिन्हा बताते हैं कि सरकारी अस्पतालों में स्थिति प्राइवेट अस्पतालों की तुलना में और भी ज्यादा खराब है. सरकारी अस्पतालों में संसाधन की कमी है और मरीजों का बोझ ज्यादा. सरकारी अस्पताल के डॉक्टर शारीरिक-मानसिक दोनों तरीके से परेशान रहते हैं. यहीं कारण है कि अब ज्यादातर चिकित्सक नौकरी छोड़ने का मूड बना रहे हैं.
ये है तनाव के प्रमुख कारण
काम का अत्यधिक बोझ.
मरीजों एवं उनके तीमारदारों की चिकित्सकों से अत्यधिक अपेक्षाएं.
अस्पतालों में सुविधाओं की कमी.
सहायक स्टाफ की कमी.
सरकारी हॉस्पिटलों में अधिकारियों का दबाव.
मारपीट और हुड़दंग का डर.
सरकारी अस्पतालों में वेतन का बहुत कम होना.
तथ्य
शहर में चिकित्सकों की संख्या 117
रोजाना ओपीडी के रोगी18000
मेडिसिन विशेषज्ञ 35
स्त्री रोग विशेषज्ञ 20
बाल रोग विशेषज्ञ 20
सर्जन 30
हड्डी रोग विशेषज्ञ 12
एजेंसी पर होगा एफआइआर

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