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पितृपक्ष शुरू, लोगों ने किया पितरों के लिए तर्पण

भागलपुर : पितृ पक्ष शुरू होते ही रविवार को विभिन्न गंगा तटों बरारी सीढ़ी घाट, एसएम कॉलेज सीढ़ी घाट, पुल घाट आदि पर पितरों के लिए परिजनों ने तर्पण किया, जो 30 सितंबर तक चलेगा. श्राद्ध कर्ता ने पितृ पक्ष शुरू होने से पहले ही क्षौर कर्म कर लिया था. अब उन्हें पूरे 15 दिनों […]

भागलपुर : पितृ पक्ष शुरू होते ही रविवार को विभिन्न गंगा तटों बरारी सीढ़ी घाट, एसएम कॉलेज सीढ़ी घाट, पुल घाट आदि पर पितरों के लिए परिजनों ने तर्पण किया, जो 30 सितंबर तक चलेगा. श्राद्ध कर्ता ने पितृ पक्ष शुरू होने से पहले ही क्षौर कर्म कर लिया था. अब उन्हें पूरे 15 दिनों तक क्षौर कर्म नहीं करना पड़ेगा. श्राद्ध कर्ता 15 दिनों तक प्रतिदिन स्नान के बाद तर्पण करेंगे.

इस अवधि में तेल, उबटन आदि का प्रयोग नहीं करना चाहिए. दातून करना, पान खाना, तेल लगाना, मांसाहारी भोजन करना आदि श्राद्ध कर्ता के लिए वर्जित होता है. मनुष्य जिस अन्न का स्वयं भोजन करता है, उसी अन्न से पितर और देवता तृप्त होते हैं. आत्मा व प्रेतात्मा में विश्वास रखने वाले लोग आश्विन कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से पूरे पितृ पक्ष की समाप्ति तक गंगा तट पर परिजन तर्पण करते हैं. कई लोग गया में जाकर पिंडदान करते हैं.

30 को पितृ तर्पण का होगा अंत: इस वर्ष 17 सितंबर शनिवार को आश्विन कृष्ण प्रतिपदा प्रारंभ हुआ. इसी दिन से पितृ तर्पण शुरू हो गया. शनिवार से लगातार 15 दिनों तक पितृ तर्पण होगा. 30 सितंबर शुक्रवार को अमावस्या तिथि में पितृ तर्पण का अंत होगा और महालया की समाप्ति होगी.
ज्योतिषचार्य डॉ सदानंद झा बताते हैं कि अश्विन मास के कृष्ण पक्ष के 15 दिन पितृ पक्ष के नाम से विख्यात है. इन 15 दिनों में लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी पुण्यतिथि पर श्राद्ध करते हैं. पितरों का ऋण श्राद्ध द्वारा चुकाया जाता है. पितृ पक्ष श्राद्ध के लिए निश्चित 15 तिथियों का एक समूह है. वर्ष के किसी भी माह तथा तिथि में स्वर्गवासी हुए पितरों के लिए पितृ पक्ष की उसी तिथि को श्राद्ध किया जाता है. पूर्णिमा पर देहांत होने से भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा को श्राद्ध करने का विधान है.
इस दिन से महालया का आरंभ माना जाता है. धर्मशास्त्र में कहा गया है कि पितरों को पिंडदान करने वाला मनुष्य दीर्घायु, पुत्र-पौत्रादि, यश, स्वर्ग, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु, सुख-साधन व धन-धान्य की प्राप्ति करता है.पितरों की कृपा से ही उसे सब प्रकार की समृद्धि, सौभाग्य, राज्य तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है. मान्यता है कि जो पूर्वज पितृ लोक नहीं जा सके या जिन्हें दोबारा जन्म नहीं मिला, ऐसी अतृप्त और आसक्त भाव में लिप्त आत्माओं के लिए अंतिम बार उनकी मृत्यु के एक साल पश्चात गया में मुक्ति तृप्ति का कर्म तर्पण और पिंडदान किया जाता है.

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