बंदिशों के बावजूद ओपीडी से लेकर विभागों तक में बेखौफ लिखी जा रही बाहर की दवाइयां
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बाहर से दवाई खरीदने काे मजबूर मरीज
बंदिशों के बावजूद ओपीडी से लेकर विभागों तक में बेखौफ लिखी जा रही बाहर की दवाइयां भागलपुर : स्वास्थ्य सचिव के फरमान एवं हॉस्पिटल के अधीक्षक के आदेश की धज्जियां हर रोज जवाहर लाल नेहरू मेडिकल काॅलेज एंड हॉस्पिटल के ओपीडी से लेकर विभाग में यहां के चिकित्सकों द्वारा उड़ायी जा रही है. यहां पर […]
भागलपुर : स्वास्थ्य सचिव के फरमान एवं हॉस्पिटल के अधीक्षक के आदेश की धज्जियां हर रोज जवाहर लाल नेहरू मेडिकल काॅलेज एंड हॉस्पिटल के ओपीडी से लेकर विभाग में यहां के चिकित्सकों द्वारा उड़ायी जा रही है. यहां पर लिखी जा रही दवाइयों में से करीब आधी अस्पताल के दवा काउंटर के बजाय बाहर स्थित दवा की दुकानों पर मिल रही है, जिसे यहां पर इलाज कराने वाले मरीज खरीदने काे मजबूर हैं.
ओपीडी में दर्द, कैल्शियम, विटामिन बी कांप्लेक्स की दवा तक नहीं : बाहर से दवा खरीद की मजबूरी के पीछे ओपीडी में दवा का न होना भी प्रमुख कारण है. सूत्रों की माने तो हॉस्पीटल में जरूरी 101 दवाओं में से वर्तमान में महज 34-35 दवाएं ही मौजूद हैं. इनमें से कैल्शियम, विटामिन बी कांप्लेक्स, गैस की दवा व सूजन एवं दर्द निवारक दवाएं प्रमुख हैं.मायागंज हाॅस्पिटल में अब स्प्रिट का टोटा : दवा, बेड की कमी से जूझ रहे अस्पताल में इलाज करानेवालों के लिए एक और बुरी खबर है. जवाहर लाल नेहरू मेडिकल काॅलेज एंड हॉस्पिटल में स्प्रिट अब समाप्त हो गया है
. स्प्रिट समाप्त होने से हॉस्पिटल में आपरेशन से लेकर ड्रेसिंग के करीब 10 प्रतिशत मरीजों के संक्रमित होने की आशंका बढ़ गयी है. हॉस्पिटल में आठ आपरेशन थियेटर व एक ड्रेसिंग रूम है, जहां औसतन हर रोज सर्जरी के जरिये डिलेवरी से लेकर छोटा-बड़ा आपरेशन किया जाता है. स्प्रिट न होने से सर्वाधिक संकट सर्जरी कराने वाली गर्भवती महिलाओं व झुलसे मरीजों के समक्ष आ गयी है. आपरेशन के पूर्व मरीज के शरीर के जिस हिस्से का आपरेशन होता है,
वहां स्प्रिट से सफाई की जाती है. मरीज की ड्रेसिंग केे दौरान भी आपरेटेड हिस्सा, चोट या घाव स्थल की सफाई स्प्रिट से की जाती है. अगर ऐसा नहीं होता है मरीज के संक्रमित होने की संभावना 10 प्रतिशत बढ़ जाती है. गनीमत है कि अस्पताल में बीटाडिन होता है, जिसके प्रयोग से स्प्रिट के न होने से होने वाले नुकसान को कम कर दिया जाता है.
केस नंबर एक
बालपुर, भागलपुर की रहने वाली 35 वर्षीया शिखा देवी ने हड्डी वाले चिकित्सक को दिखाया तो चिकित्सक ने उन्हें दो दवाएं लिखी जिसमें से उन्हाेंने रिएक्शन 50 टैबलेट(डिक्लोफिनाक) को हॉस्पीटल के बाहर स्थित मेडिकल स्टोर्स से खरीदा.
केस नंबर दो
रामानंद महतो को पेट दर्द होने पर उनके परिजनों ने उन्हें चार मई को मेडिसिन विभाग में भरती कराया. गुरुवार को उन्हें डिस्चार्ज किया गया. उन्हें जो दवा लिखी गयी वे सब की सब बाहर स्थित मेडिकल स्टोर्स से मिला. इन दवाओं को खरीदने में परिजनों ने 1062 रुपये खर्च किया. गैस की दवा पेंटोसेक डी, स्टेमलो 5(एम्लोडिपिन), सिफेक्स 200(सिफाक्सिम), लिवोमीर(लीवर की दवा) आदि बाहर की दवाइयां उन्हें लिखी गयी थी.
केस नंबर तीन
नरगा चौक निवासी 30 वर्षीय मो अख्तर ने एमओपीडी में दिखाया तो उन्हें तीन में से एक दवा न्यूकॉक्सिया 50 बाहर से खरीदनी पड़ी. यह दवा दर्द एवं सूजन होने पर दी जाती है.
केस नंबर चार
भागलपुर निवासी 60 साल के श्याम साह को हार्निया हुआ तो उनके परिजनों ने ओपीडी में दिखाया. यहां चिकित्सकों ने उन्हें जो दो दवा लिखी वह उनके पुत्र को बाहर से खरीदना पड़ा. परिजनों ने हेपागार्ड टैबलेट एवं यूडिलीव 300 सीरप खरीदना पड़ा. इन दोनों दवाओं का पांच दिन की खुराक का दाम 332 रुपये खर्च करना पड़ा.
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