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गरीबों को जिंदा रहने का हक नहीं

भागलपुर: जिला के सभी सरकारी अस्पतालों में 10वें दिन शुक्रवार को भी पैथोलॉजी जांच बंद रही. बड़ी संख्या में मरीज अस्पताल आये और जांच के अभाव में निराश होकर वापस लौट गये. कई ऐसे मरीज भी थे जो पिछले 10 दिनों से इस आस में अस्पताल आ रहे हैं कि अब उनकी जांच हो जायेगी, […]

भागलपुर: जिला के सभी सरकारी अस्पतालों में 10वें दिन शुक्रवार को भी पैथोलॉजी जांच बंद रही. बड़ी संख्या में मरीज अस्पताल आये और जांच के अभाव में निराश होकर वापस लौट गये. कई ऐसे मरीज भी थे जो पिछले 10 दिनों से इस आस में अस्पताल आ रहे हैं कि अब उनकी जांच हो जायेगी, लेकिन हर दिन निराशा ही उनके हाथ लग रही है. हैरानी की बात तो यह है कि जिले के अधिकारी से

लेकर जनप्रतिनिधियों तक ने गरीबों की जान की कीमत नहीं समझी है. 10 दिन से जांच घर बंद है और राजनेता व अधिकारी सिर्फ बयान देकर अपने कर्तव्यों को पूरा करना मान रहे हैं. मरीजों की समस्या जैसे पहले थी आज भी उसी तरह है. 10 दिन बाद भी इस मामले में कोई प्रगति नहीं हुई है. अन्य मामलों पर रोज बयान देनेवाले भी इस मामले पर शांत हैं.

जांच के अभाव में रोजाना सदर अस्पताल से दो-चार मरीजों को जेएलएनएमसीएच रेफर किया जा रहा है. चूंकि जांच के अभाव में मरीजों का ऑपरेशन या प्रसव के वक्त हीमोग्लोबीन की मात्र का जानना चिकित्सकों के लिए जरूरी रहता है. इससे चिकित्सक मरीजों को रेफर कर देते हैं. जिन मरीजों के परिजन अपनी जिद पर अस्पताल में रह जाते हैं उनके मरीजों कीस्थिति कई बार गंभीर हो जाती है.

ऐसा रोज हो भी रहा है, बावजूद इसके अधिकारी इन सब बातों पर गंभीर नहीं हो रहे हैं. एक जनवरी से भुगतान नहीं होने के कारण जिले में जांच बंद है. सीएस डॉ यूएस चौधरी हर दिन की तरह एक ही बात कह रहे हैं कि हमने अपना काम कर दिया है आवंटन आयेगा तो भुगतान हो जायेगा. इसमें हमारे स्तर से कहीं चूक नहीं है, जो भी निर्णय होना है वह वरीय अधिकारियों को करना है. दूसरी ओर गरीबों का सवाल है कि क्या बड़े लोगों की जान की ही कीमत है, छोटों की नहीं. क्या किसी बड़े व्यक्ति को दिक्कत होती तो इसी प्रकार सब शांत रहते, या फिर बयान बहादुरों के साथ-साथ सब सक्रिय हो जाते.

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