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मुख्य सचिव के पास पहुंचा विवाद

भागलपुर: काजीचक जमीन विवाद का मामला मुख्य सचिव तक पहुंच गया है. जमीन से बेदखल हुए परमानंद शर्मा ने जमीन पर दखल-कब्जा वापस दिलाने के लिए मुख्य सचिव सहित मुख्यमंत्री के सचिव, गृह विभाग के विशेष सचिव, राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग व कार्मिक एवं प्रशासनिक सुधार विभाग के प्रधान सचिव, विभागीय जांच आयुक्त, पुलिस […]

भागलपुर: काजीचक जमीन विवाद का मामला मुख्य सचिव तक पहुंच गया है. जमीन से बेदखल हुए परमानंद शर्मा ने जमीन पर दखल-कब्जा वापस दिलाने के लिए मुख्य सचिव सहित मुख्यमंत्री के सचिव, गृह विभाग के विशेष सचिव, राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग व कार्मिक एवं प्रशासनिक सुधार विभाग के प्रधान सचिव, विभागीय जांच आयुक्त, पुलिस महानिदेशक, प्रमंडलीय आयुक्त सहित आइजी, डीआइजी, डीएम व एसएसपी को भी पत्र भेजा है. उन्होंने अवैध तरीके से की गयी दखल-कब्जा को अविलंब वापस दिलाने एवं इसके कारण हुए नुकसान का हर्जाना दिलाते हुए संबंधित पदाधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की मांग की है. उन्होंने सुरक्षा की भी गुहार लगायी है.

विदित हो कि 29 दिसंबर को डीसीएलआर कोर्ट के आदेश पर अंचलाधिकारी जगदीशपुर व अंचल निरीक्षक जगदीशपुर ने पुलिस बल के साथ काजीचक, पन्ना मिल रोड स्थित जमीन (खाता 727, खेसरा 62 व 63, होल्डिंग नंबर 34) पर जमुई के सांसद भूदेव चौधरी की पत्नी इंद्राणी चौधरी को कब्जा दिलाया था. इस जमीन पर परमानंद शर्मा अपने परिवार के साथ रह रहे थे. मुख्य सचिव के नाम भेजे पत्र में परमानंद का आरोप है कि सांसद ने उक्त पदाधिकारियों को अपने मेल में लेकर गैर कानूनी अवैध आदेश के सहारे न्यायालय के आदेश का हवाला देकर उन्हें जबरन जमीन से बेदखल किया.

उनका कहना है कि यह जमीन उनके नाना स्व साधो मिस्त्री से विरासत में मिली है. उसका आरोप है कि सांसद ने पहले भी जमीन पर कब्जे का प्रयास किया था, लेकिन उच्च न्यायालय पटना में दायर आपराधिक रिट (57/2008) में सुरक्षा के लिए उन्हें पुलिस का सहयोग लेने का निर्देश दिया गया था. इस वजह से उस वक्त पुलिस प्रशासन ने सांसद का सहयोग करने से इनकार कर दिया था. परमानंद का आरोप है कि डीसीएलआर सदर ने अपने आदेश को न्यायालय के आदेश का हवाला देने के लिए जिस कानून का सहारा लिया है, वह कानून उपरोक्त संपत्ति पर लागू ही नहीं होता है. परमानंद का कहना है कि उपरोक्त पदाधिकारी व सांसद जानते हैं कि किसी भी तरह के अवैध व गैर कानूनी आदेश पारित करने पर पीड़ित को अपील में ही जाना होगा और एक आम व्यक्ति को सुनवाई के दौरान तारीख व अपील दर अपील से थक जाता है व अंतत: लड़ना छोड़ देता है.

दूसरी ओर, गलत आदेश पारित करने वाले पर कोई कार्रवाई तत्काल नहीं होती. इसका उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि इसी जमीन की दाखिल खारिज सांसद ने अपनी पत्नी इंद्राणी चौधरी के नाम करा लिया, जबकि इसकी जमीन की असली हकदार उसकी नानी दया देवी थी. इसको लेकर दया देवी ने अपील भी दायर की और केस लड़ते हुए उनका निधन हो गया. यह मामला फिलहाल कोर्ट में विचाराधीन है.

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