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न परदा उठा, न गूंजे डायलॉग

न परदा उठा, न गूंजे डायलॉगफ्लैग : चार साल से सूना पड़ा अंग सांस्कृतिक भवन का मंच-कभी दो से ढ़ाई लाख रुपये सालाना राजस्व देने वाला अंग सांस्कृतिक भवन के मंच से लेकर हॉल तक पर आज आपदा प्रबंधन विभाग का कब्जाफोटो : आशुतोषसंवाददाता, भागलपुरसमृद्ध व गौरवशाली अंग संस्कृति को पुष्पित-पल्लवित करने के लिए वर्ष […]

न परदा उठा, न गूंजे डायलॉगफ्लैग : चार साल से सूना पड़ा अंग सांस्कृतिक भवन का मंच-कभी दो से ढ़ाई लाख रुपये सालाना राजस्व देने वाला अंग सांस्कृतिक भवन के मंच से लेकर हॉल तक पर आज आपदा प्रबंधन विभाग का कब्जाफोटो : आशुतोषसंवाददाता, भागलपुरसमृद्ध व गौरवशाली अंग संस्कृति को पुष्पित-पल्लवित करने के लिए वर्ष 2006 में जिस अंंग सांस्कृतिक भवन का निर्माण किया गया, उस उद्देश्य को प्रशासन की बेपरवाही व आपदा प्रबंधन विभाग की दबंगई नेस्तनाबूद करने पर तुला है. पांच साल तक कभी नाटक, सांस्कृतिक गतिविधियों से गुलजार रहने वाला अंग सांस्कृतिक भवन के मंच पर चार सालों से न किसी नाटक की पटकथा गूंजी और न ही सुर-साज की कोई महफिल ही सजी. इतना कुछ हाेने के बावजूद शहर व जनप्रतिनिधिओं की चुप्पी भी आश्चर्यजनक है.लगभग एक करोड़ की लागत से बनने वाले अंग सांस्कृतिक भवन का उद्घाटन 22 फरवरी 2006 को सूबे के तत्कालीन उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी ने किया गया था. इस भवन में नाटक, सांस्कृतिक प्रस्तुति के लिए बड़ा सा मंच, संजने-संवरने के लिए वातानुकूलित कमरा, 500 दर्शकों की क्षमता वाला दर्शक दीर्घा, सुसज्जित रसोई घर, शाैचालय-स्नानाघर है. उद्घाटन के साथ ही यह विभाग के लिए आय का केंद्र बन गया. यहां 2006 से हर साल औसतन 40-50 अंग संस्कृति से जुड़े कार्यक्रमों के आयोजन होने लगा. इसका किराया करीब 5000 रुपये प्रतिदिन था. इस तरह इससे हर साल करीब करीब दो से ढाई लाख रुपये की आय होने लगी. तब इस भवन के बुरे दिन आ गये, जब इस पर प्रशासन की नजर पड़ी. वर्ष 2011 में एक बार जो इस पर प्रशासन की कुदृष्टि पड़ी और इस भवन के मंच से लेकर दर्शक दीर्घा तक पर आपदा विभाग का कब्जा हो गया. आज की तारीख में इस भवन का हाल यह है कि इसके दर्शक दीर्घा में आपदा प्रबंधन विभाग की कुर्सियां, बोट, बोरी, रस्सी तथा मंच पर लाइफसेव जैकेट्स का ढेर है. यहां तक कि इसके परिसर में आपदा प्रबंधन विभाग के दो बड़े नाव और भवन के दरवाजे पर विभाग का ताला लगा है. परिसर में आये दिन अराजक तत्वों का डेरा होता है. यहां पर तैनात दो कर्मचारी डर से कुछ बोल नहीं पाते हैं. अराजक तत्व क्या करते हैं यहां पर इसका गवाह भवन परिसर में पड़ी अंगरेजी दारू व बीयर की बोतलें हैं. रंग-साहित्यप्रेमियों की डीएम-कमिश्नर ने भी नहीं सुनी फरियादचार साल से आपदा प्रबंधन विभाग के कब्जे से मुक्त कराने के लिए शहर के साहित्य व कला-संस्कृति से जुड़े लाेगों ने प्रयास किया. रंगकर्मी प्रो चंद्रेश ने बताया कि अंग सांस्कृतिक भवन की रौनक की खातिर उन्होंने शहर के सांस्कृतिक एवं साहित्य प्रेमियों का जुटान किया. बिहार विधान सभा चुनाव के दौरान जिलाधिकारी आदेश तितरमारे और कमिश्नर आरएल चोंग्थू को इस बाबत ज्ञापन भी सौंपा और बताया कि सूबे में कहीं भी ऐसा नहीं हुआ है कि सांस्कृतिक विरासत के पुष्पित-पल्लवित के लिए निर्मित धरोहर का इस्तेमाल किसी और काम के लिए किया जाये. बावजूद प्रशासन ने इस गंभीर मुद्दे को गंभीरता से नहीं लिया.

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