रिंकु ने भाकपा माले छोड़ा !- 1998 से शुरू हुआ था पार्टी से जुड़ावसंवाददाता,भागलपुरपार्टी में आंतरिक लोकतंत्र की कमी महसूस करते हुए व गलत प्रवृत्तियों-तत्वों के समक्ष पार्टी नेतृत्व के समर्पण के रवैये के कारण भाकपा माले के जिला सचिव रिंकु के पार्टी छोड़ने का कयास लगाया जा रहा है. विश्वस्त सूत्रों के अनुसार पार्टी में निर्णय अलोकतांत्रिक तरीके से लिया जा रहा था. लंबे समय से संघर्ष में डटे कार्यकर्ताओं की उपेक्षा हो रही थी. पार्टी के अंदर का माहौल गैर क्रांतिकारी हो रहा है. बस इसी बातों को देखते हुए रिंकु ने पार्टी छोड़ दिया. हालांकि जिला सचिव रिंकु ने कुछ भी कहने से परहेज किया. पार्टी छोड़ने की विधिवत घोषणा नहीं की. उनके नजदीकी लोगों का कहना है कि आंदोलन और संगठन के मोरचे पर लंबे समय से जड़ता है और जड़ता को तोड़ने के नाम पर पार्टी गलत प्रवृत्तियों व तत्वों को बढ़ावा दे रही है. इसकी अभिव्यक्ति पार्टी के बहुत सारे फैसलों में दिखती है. बस इसी बात से रिंकु को नाराजगी थी. रिंकु पटना में रहते हुए छात्र जीवन में वामपंथी साहित्य का अध्ययन करते हुए माले के आंदोलन से जुड़ा. भाकपा माले-लिबरेशन के महासचिव विनोद मिश्र की मृत्यु के बाद 1998 में पार्टी से जुड़ाव शुरू हुआ और 2002 से सक्रिय राजनीतिक जीवन की शुरुआत की. 2002 में दिसंबर से आइसा को भागलपुर में लाया. 2009 में छात्र राजनीति से हट कर मुख्य राजनीति में आते हुए भाकपा माले के जिला कमेटी सदस्य बने. 2012 में राज्य कमेटी सदस्य के साथ-साथ जिला सचिव भी चुने गये. तभी से अब तक जिला सचिव रहे.
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रिंकु ने भाकपा माले छोड़ा !
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