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असहमति को सहन नहीं करने पर लोकतंत्र कैसे बचेगा

असहमति को सहन नहीं करने पर लोकतंत्र कैसे बचेगा-पुरस्कार वापस लौटाने के मामले पर स्थानीय साहित्यकारों की प्रतिक्रियासंवाददाता,भागलपुरस्थानीय साहित्यकारों ने पुरस्कार लौटाने के मामले पर अलग-अलग प्रतिक्रिया दी. कुछ साहित्यकारों का यह भी मानना है कि साहित्यकारों को अपना पुरस्कार नहीं लौटाना चाहिए. विरोध जताने के लिए दूसरा तरीका भी हो सकता था. उनकी समस्या […]

असहमति को सहन नहीं करने पर लोकतंत्र कैसे बचेगा-पुरस्कार वापस लौटाने के मामले पर स्थानीय साहित्यकारों की प्रतिक्रियासंवाददाता,भागलपुरस्थानीय साहित्यकारों ने पुरस्कार लौटाने के मामले पर अलग-अलग प्रतिक्रिया दी. कुछ साहित्यकारों का यह भी मानना है कि साहित्यकारों को अपना पुरस्कार नहीं लौटाना चाहिए. विरोध जताने के लिए दूसरा तरीका भी हो सकता था. उनकी समस्या केवल उनकी नहीं है, बल्कि आम है.आजादी के बाद पहला मौका है जब साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने की एक नयी परिपाटी शुरू हुई हो. जाने माने कवि उदय प्रकाश से इसकी शुरुआत हुई और अब तक एक दर्जन से अधिक प्रमुख साहित्यकारों ने पुरस्कार लौटा दिये हैं. आने वाले समय में यह फेहरिस्त और लंबी हो सकती है. मकसद स्पष्ट है कि जिस तरह से पिछले कुछ समय से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर आघात पहुंचाया जा रहा है, उसका विरोध करना. नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पानसरे और प्रो कलबुर्गी की हत्या के बाद साहित्य अकादमी की भयानक चुप्पी और संबंधित मंत्री का इस सवाल को गंभीरता से नहीं लेना, गंभीर बात है . प्रो चंद्रेश, संयोजक, कविता भागलपुर———अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अघोषित प्रतिबंध लगा दिया गया है. आपातकाल में भी प्रतिबंध लगा था. अभी साहित्यकारों की हत्याएं तक हो रही हैं. यह बहुत ही मुश्किल स्थिति है. कितने को धमकी मिल रही है. डॉ सुजाता, साहित्यकार——–महाराष्ट्र में पानसरे, दाभोलकर व कर्नाटक के कलबुर्गी की हत्या हुई और तीन दिन पहले कुलकर्णी को कालिख पोती गयी. इस तरह की अनेक घटना पहले भी हुई और अब भी हो रही हैं. उदाहरण के लिए मुरूगन को यह घोषणा करना पड़ा कि वह लेखक के रूप में वह मर गया. असहमति लोकतंत्र की पहचान है और असहमति को यदि सहन नहीं किया जायेगा, तो लोकतंत्र कैसे बचेगा. दादरी में अफवाह फैला कर एक आदमी को पीट-पीट कर मार दिया गया. इन प्रवृत्तियों के परिपेक्ष्य में यदि देखते हैं तो साहित्यकारों का पुरस्कार-सम्मान लौटाना सही लगता है. डॉ देवेंद्र सिंह, कथाकार——–साहित्यकारों को पुरस्कार नहीं लौटाना चाहिए. इससे बहुत कुछ नहीं हो सकता है. इससे असंतोष भी प्रकट नहीं होता है. अगर उनको असंतोष ही प्रकट करना है तो साहित्य के माध्यम से प्रकट करें. सड़क के किनारे बैठें. तभी उनका असंतोष देखा जा सकता है. विसंगति केवल इस बात को लेकर नहीं है, कि साहित्यकारों के साथ अन्याय हाे रहा है. यह दु:ख तो देश की पूरी जनता के साथ है. आवाज उनके लिए उठाना पहले जरूरी है. डॉ अमरेंद्र, अंगिका साहित्यकार

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