भागलपुर: इसलामी कैलेंडर के जिलहिज माह के दसवीं तारीख को बकरीद मनाया जाता है. कुरबानी हजरत इब्राहिम अलैह सलाम की सुन्नत व यादगार है. कुरबानी अल्लाह के प्रति समर्पण के भाव की याद दिलाता है.उक्त बातें भीखनपुर जामा मसजिद के इमाम कारी नसीम अशरफी ने कही. उन्होंने कहा कि लोग अल्लाह की रजामंदी के लिए कुरबानी करते हैं, जिस तरह हजरत इब्राहिम अलैह सलाम ने अल्लाह की रजामंदी के लिए अपने बेटे हजरत इस्माइल अलैह सलाम को अल्लाह की राह में कुरबान कर दिया.
हजरत इब्राहिम अलैह के सर्मपण भाव को देख अल्लाह ने ईमानवालों पर कुरबानी जायज किया. कुरबानी किये जाने वाले जानवर का खून जमीन पर गिरने से पहले ही अल्लाह कुरबानी कबूल फरमा लेते हैं. ऊंट, बकरा व भेड़ कुरबानी के लिये सबसे अच्छी मानी जाती है. बहुत गरीब के लिए सात या सत्तर परिवार एक साथ मिल कर एक जानवर की कुरबानी कर सकते हैं.
हज के माध्यम से लाखों मुसलमान पूरे विश्व में शांति और समृद्धि के लिए अल्लाह से दुआ मांगते हैं. हज से लौटने के बाद अल्लाह उनके सारे गुनाह माफ कर देते हैं. बकरीद आपसी प्रेम व भाईचारा की भावना एवं गरीबों-दुखियों के प्रति संवेदना का भाव जगाता है. यह अल्लाह के हुक्म पर चलने का संदेश देता है.