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पांडुलिपि संरक्षण में कंप्यूटर का योगदान महत्वपूर्ण

– पांचवीं शताब्दी में आयी संस्कृत भाषासंवाददाता,भागलपुर. तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय में पांडुलिपि विज्ञान व लिपि शास्त्र पर आयोजित 21 दिवसीय कार्यशाला का तीसरा दिन कंप्यूटर एप्लिकेशन पर केंद्रित रहा. पांडुलिपि संरक्षण में कंप्यूटर की भूमिका पर चर्चा हुई. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के उप पुस्तकालयाध्यक्ष डॉ डीके सिंह ने पहली पाली में डिजिटल संरक्षण के […]

– पांचवीं शताब्दी में आयी संस्कृत भाषासंवाददाता,भागलपुर. तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय में पांडुलिपि विज्ञान व लिपि शास्त्र पर आयोजित 21 दिवसीय कार्यशाला का तीसरा दिन कंप्यूटर एप्लिकेशन पर केंद्रित रहा. पांडुलिपि संरक्षण में कंप्यूटर की भूमिका पर चर्चा हुई. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के उप पुस्तकालयाध्यक्ष डॉ डीके सिंह ने पहली पाली में डिजिटल संरक्षण के विभिन्न पक्षों पर विस्तार से चर्चा की. साथ ही पूर्व के वर्ग की भी पुनरावृत्ति की गयी. वर्ग समापन पर प्रतिभागियों के सवालों का जवाब दिया गया. दूसरी पाली में राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन के समन्वयक डॉ एनसी कार ने सभ्यता के विकास में लिपि के विकास का वर्णन किया. उन्होंने बताया कि संस्कृत भाषा पांचवीं शताब्दी में प्रकाश में आयी. कार्यशाला के संगठन सचिव बसंत कुमार चौधरी ने बताया कि विभिन्न राज्यों से आये प्रतिभागी कार्यशाला में वर्ग से संतुष्ट हैं.

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