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महीनों बाद मिलती है रिपोर्ट

भागलपुर: दवाओं की जांच मामले में भागलपुर जिला फिसड्डी साबित हो रहा है. इसकी मुख्य वजह है दवा लाइसेंसिंग अधिकारी का नहीं होना व लैब से दवाओं की जांच रिपोर्ट आने में विलंब होना. ड्रग इंस्पेक्टर ( औषधि निरीक्षक) द्वारा जब किसी दवा दुकान से जांच के लिए सैंपल लाया जाता है, तो उसे पटना […]

भागलपुर: दवाओं की जांच मामले में भागलपुर जिला फिसड्डी साबित हो रहा है. इसकी मुख्य वजह है दवा लाइसेंसिंग अधिकारी का नहीं होना व लैब से दवाओं की जांच रिपोर्ट आने में विलंब होना. ड्रग इंस्पेक्टर ( औषधि निरीक्षक) द्वारा जब किसी दवा दुकान से जांच के लिए सैंपल लाया जाता है, तो उसे पटना स्थित लैब भेजा जाता है. वहां से जब रिपोर्ट विभाग को मिलता है, उसके बाद ही कार्रवाई की जाती है.

कार्रवाई के नाम पर दवा दुकान का लाइसेंस एक निश्चित अवधि के लिए निलंबित किया जाता है. एक्सपायर दवा होने पर संबंधित दुकानदार व कंपनी पर एफआइआर दर्ज करने का नियम है.

142 दुकानों की जांच, कार्रवाई एक पर भी नहीं. 2013-14 में अब तक 142 दवा दुकानों की जांच औषधि निरीक्षक द्वारा की गयी है, लेकिन कार्रवाई के नाम पर अब तक कुछ नहीं हो पाया है. नाम नहीं छापने की शर्त पर एक डी आइ ने बताया कि दवा दुकान से जब सैंपल हमलोग लेते हैं, तो उसे पटना के लैब में जांच के लिए भेज देते हैं. वहां राज्य भर से सैंपल आता है और वहां कर्मचारियों की काफी कमी है. दो-चार टेक्नीशियन द्वारा ही जांच किया जाता है. ऐसे में जांच में महीनों लग जाते हैं. इतना कुछ होने में दो से चार माह का वक्त लगता है इसके बाद रिपोर्ट तैयार होकर जिलों तक पहुंचने में भी दो-तीन माह लग जाते हैं.

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