भागलपुर: भागलपुर के औद्योगिक हब बनने के सपने पर सरकारी लालफीताशाही का ग्रहण लग गया है. सरकारी उदासीनता के चलते कई कंपनियों ने निवेश से अपने हाथ खींच लिए. डेढ़ हजार करोड़ से अधिक निवेश का प्रस्ताव था. विभागीय उदासीनता व असहयोग के चलते भागलपुर आनेवाली कंपनियों ने दूसरी जगह का रुख कर लिया. उद्योग विभाग मुट्ठी भर स्माल स्केल इंडस्ट्रीज को लेकर अपनी पीठ थपथपाता है. विभागीय बात बहादुरों से निवेशक तंग आ चुके हैं. अब विभाग ने विशेष राज्य के दर्जा का नया शगुफा छोड़ा है.
पटना के बाद सूबे का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण स्थान मानने का मुगालता पाले भागलपुर में बड़ी औद्योगिक इकाई के नाम पर सिर्फ कहलगांव में एनटीपीसी का थर्मल पावर स्टेशन है. पिछले पांच-सात साल से जोर-शोर से भागलपुर को औद्योगिक हब बनाने की बात कही गयी. इसके लिए कहलगांव के आगे रमजानीपुर के आसपास बियाडा ने एक हजार एकड़ में औद्योगिक ग्रोथ सेंटर भी बनाया. यहां पर इंडस्ट्री लगाने के लिए निवेशकों को जमीन उपलब्ध कराया जाना था. कहलगांव में थर्मल पावर का ऐश की उपलब्धता को देखते हुए स्टार सीमेंट और इमामी ग्रुप ने सीमेंट फैक्टरी लगाने में दिलचस्पी भी दिखायी. स्टार सीमेंट वालों को जमीन भी एलाट किया गया, लेकिन बियाडा जब लंबे समय तक जमीन पर कब्जा नहीं दिला पायी, तो स्टार सीमेंट ने अपने हाथ खींच लिए. जमीन को लेकर स्थानीय स्तर पर काफी राजनीति हुई, जो आज भी चल रही है. इसी ग्रोथ सेंटर में फूडपार्क और टेक्सटाइल पार्क भी खुलना था, लेकिन जमीन की समस्या आड़े आ गयी. बियाडा की जमीन को लेकर स्थानीय प्रशासन ने कई बार प्रयास भी किये, लेकिन स्थिति जस की तस रही. इमामी और स्टार सीमेंट की ओर से करीब हजार करोड़ का निवेश होना था.
इमामी ग्रुप की ओर से 418 करोड़ के निवेश का प्रस्ताव था. भवनाथपुर में पेपर मिल में 204 करोड़ का निवेश होना है. पेपर मिल का मामला भी ठंढे बस्ते में है. भागलपुर में स्पन सिल्क मिल और सूत मिल है, लेकिन वह भी पिछले डेढ़ दशक से बंद है. उसके भी खुलने का कोई आसार नजर नहीं आ रहा है. मेगा फूड पार्क और टेक्सटाइल पार्क की स्थापना की संभावना खत्म हो गयी है. निवेशकों का कहना है कि एक तो बिजली सहित अन्य आधारभूत संरचनाओं का यहां घोर अभाव है. ऊपर से जमीन की उपलब्धता को लेकर भी विवाद है. देरी से लागत खर्च भी बढ़ जाता है. पटना से लेकर भागलपुर तक के प्रशासनिक महकमे भी उद्योगों की स्थापना को लेकर कोई गंभीरता देखने को नहीं मिलती है.
उद्योग के नाम पर बरारी औद्योगिक प्रांगण में दो दर्जन से अधिक औद्योगिक इकाइयां चल रही है, इसमें कोई बड़ा उद्योग नहीं है. जिला उद्योग कें द्र के महाप्रबंधक रामचंद्र सिंह कहते हैं कि विशेष राज्य के दर्जा के लिए प्रयास हो रहा है. दर्जा मिलते ही यहां तीव्र गति से औद्योगिक विकास होगा. प्रशासानिक अधिकारी भी दबी जुबान स्वीकार करते हैं कि जमीन मिलने में हुई अनावश्यक देरी से निवेशकों को मोह भंग हो गया. कहलगांव के औद्योगिक ग्रोथ सेंटर में मेगा फूड पार्क स्थापित होना था, लेकिन उसके निवेशकों ने भी अपने हाथ खीच लिए. जिले में मक्का, आम, लीची, टमाटर,मिर्च की प्रचुर मात्र में पैदावार होती है. फूड पार्क के लिए यहां कच्च माल की कोई कमी नहीं है. निवेशकों के हाथ खीचने से उनलोगों को भी झटका लगा है जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इन इकाइयों से जुड़ते. मोटे अनुमान के अनुसार इन बड़ी परियोजनाओं में प्रत्यशक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से 20 हजार लोगों को रोजगार मिलता. इस्टर्न बिहार इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के अध्यक्ष मुकुटधारी अग्रवाल कहते हैं कि औद्योगिक विकास की दिशा में सरकार की उदासीनता तो है ही. स्थानीय जनप्रतिनिधि भी इसमें दिलचस्पी नहीं दिखलाते. औद्योगिक विकास के नाम पर सिर्फ बयानबाजी से कुछ नहीं होगा. धरातल पर काम करना होगा. निवेशकों के हाथ खींच लेने से भागलपुर के औद्योगिक विकास के सपने को झटका लगा है.