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भागलपुर : एपीआइ बिहार चैप्टर की ओर से रविवार को स्थानीय राजहंस होटल में सीओपीडी बीमारी पर सेमिनार का आयोजन किया गया. इस अवसर पर एपीआइ बिहार चैप्टर के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य डॉ डीपी सिंह ने बताया कि हर वर्ष भारत में पांच लाख लोगों की मौत सीओपीडी की बीमारी से होती है. इस बीमारी […]

भागलपुर : एपीआइ बिहार चैप्टर की ओर से रविवार को स्थानीय राजहंस होटल में सीओपीडी बीमारी पर सेमिनार का आयोजन किया गया. इस अवसर पर एपीआइ बिहार चैप्टर के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य डॉ डीपी सिंह ने बताया कि हर वर्ष भारत में पांच लाख लोगों की मौत सीओपीडी की बीमारी से होती है. इस बीमारी में बचाव ही सबसे बड़ा उपाय है.
विश्व में सबसे बड़ी व खतरनाक बीमारी में हर्ट अटैक, लकवा व तीसरी बीमारी सीओपीडी ही है. उन्होंने बताया कि यह बीमारी सिगरेट-बीड़ी का लगातार इस्तेमाल एवं घरों में लकड़ी-कोयला के चूल्हे से निकलने वाले धुएं की वजह से होता है. यह बीमारी जिस व्यक्ति को हो जाता है वह पूरी तरह से खत्म नहीं होता है और धीरे-धीरे उस व्यक्ति की मौत हो जाती है. उदाहरण के तौर पर बीमारी का पता 10 वर्ष बाद ही चलता है और बीमारी का पता चलने के बाद 10 से 20 वर्ष तक व्यक्ति बीमारी की हालत में ही गुजारता है.
अधिकतर लोगों को लकवा, हर्ट अटैक, हाइ बीपी व अन्य तरह की बीमारी हो जाती है. डॉ हेम शंकर शर्मा ने बताया कि इस बीमारी में हर्ट अटैक की संभावना बढ़ जाती है. शरीर फूलने के साथ दम फूलता है और मरीज की स्थिति गंभीर होने लगती है. ऐसे मरीजों को इसीजी, इको टेस्ट जरूर करना चाहिए. ताकि यह पता चल सके कि उसकी सांस में कितनी ताकत बची है.
डॉ आरपी जायसवाल ने बताया कि सीओपीडी की बीमारी सौ मरीज में 95 को सिगरेट-बीड़ी के धुएं से ही होता है. यह जिसे एक बार हो जाता है मुश्किल से ही छूटता है. दवा खाने से बीमारी को बढ़ने से कुछ दिनों तक रोका जा सकता है पर पूरी तरह समाप्त नहीं किया जा सकता. बच्चों में यह बीमारी बचपन से ही होता है, जिसमें एलर्जी का रोल रहता है. डॉ भारत भूषण ने बताया कि किसी मरीज का दम फूलता भी है तो उन्हें प्राणायाम करना चाहिए. सांस की ताकत बरकरार रखने के लिए हाथ-पैर का व्यायाम रोजाना जरूरी है. कार्यक्रम के चेयरमैन डॉ केडी मंडल, डॉ एके सिन्हा, डॉ एके पांडेय थे. इसके अलावा शहर के अन्य फिजिशियन चिकित्सक मौजूद थे.

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