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क्यों मारते हैं डॉल्फिन को

चार-साढ़े चार दशक पूर्व तक डॉल्फिन के अस्तित्व पर कोई संकट नहीं था. लेकिन जब से इसकी चरबी से चीन, जापान, कोरिया आदि देशों में यौनवर्धक दवाएं बनाने के कारोबार में तेजी आयी, देश में डॉल्फिन पर संकट के बादल मंडराने लगे और इसके शिकार में बढ़ोतरी हो गयी. सालाना सैकड़ों की तादाद में इसका […]

चार-साढ़े चार दशक पूर्व तक डॉल्फिन के अस्तित्व पर कोई संकट नहीं था. लेकिन जब से इसकी चरबी से चीन, जापान, कोरिया आदि देशों में यौनवर्धक दवाएं बनाने के कारोबार में तेजी आयी, देश में डॉल्फिन पर संकट के बादल मंडराने लगे और इसके शिकार में बढ़ोतरी हो गयी. सालाना सैकड़ों की तादाद में इसका शिकार किया जाने लगा. तस्कर उसकी चरबी नेपाल के रास्ते चीन और अन्य देशों को पहुंचाते हैं. तेल की खातिर भी इनका खूब शिकार हुआ है. लोगों का मानना है कि उसकी चरबी के बने तेल से कई बीमारियां ठीक होती है. जानकारों के मुताबिक एक डॉल्फिन में तीन-सवा तीन किलो के आसपास चरबी होती है जिसे मछुआरे तस्करों को दो-सवा दो हजार प्रति किलो की दर से बेचते हैं. नेपाल के रास्ते जब तक यह चीन पहुंचती है, इसकी कीमत 30-32 हजार रु पये किलो तक हो जाती है. डॉल्फिन की चरबी का यह कारोबार बिहार में रक्सौल के जरिये नेपाल में काठमांडू तक बेरोकटोक होता है. वहां से तिब्बत के खासा बॉर्डर के रास्ते यह चीन पहुंचायी जाती है.

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