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दफन हो जायेगा हत्या का मामला!

* पुलिसिया अनुसंधान में नहीं मिले ओम बाबा हत्याकांड के साक्ष्यभागलपुर : देवी बाबू धर्मशाला के एक कमरे में हुई ओम बाबा की हत्या का मामला भी जिले के कई चर्चित मामलों की तरह दफन हो सकता है. पुलिस अनुसंधान में अब तक जो भी तथ्य मिले हैं उस आधार पर पुलिस हत्यारा को ढूंढ़ […]

* पुलिसिया अनुसंधान में नहीं मिले ओम बाबा हत्याकांड के साक्ष्य
भागलपुर : देवी बाबू धर्मशाला के एक कमरे में हुई ओम बाबा की हत्या का मामला भी जिले के कई चर्चित मामलों की तरह दफन हो सकता है. पुलिस अनुसंधान में अब तक जो भी तथ्य मिले हैं उस आधार पर पुलिस हत्यारा को ढूंढ़ पाने में फिसड्डी रही है.

कानून के जानकार बताते हैं कि हत्या की बात को तो पुलिस साबित कर सकती है, लेकिन हत्यारे तक पहुंचने के लिए साक्ष्य चाहिए. सूत्र बताते हैं कि ऐसे साक्ष्य पुलिस के पास फिलहाल उपलब्ध नहीं है. पुलिस अगर किसी के साथ तू-तू, मैं-मैं, गाली गलौज या फिर किसी पर संदेह करती है, तो उसे न्यायालय हत्यारा नहीं मान लेगा.

फोरेंसिक टीम के काफी विलंब से पहुंचने का नतीजा यह हुआ कि उसे भी कोई खास साक्ष्य हाथ नहीं लग पाया. वैसे खून के धब्बे के आधार पर अनुसंधान को आगे बढ़ाने की प्रक्रिया को दिखा कर फिलहाल पुलिस जितना अपनी पीठ थपथपा ले, लोग इसके अंजाम को बोलने से चूक नहीं रहे. सूत्र बताते हैं कि पुलिस यह भी साबित करने में अब तक नाकामयाब रही है कि हत्या की रात बाबा के घर में कौन-कौन आया था.

कुछ पुरानी और हाइ-प्रोफाइल हत्याकांड के मामले पर नजर डालें, तो भागलपुर पुलिस किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच सकी. चूंकि ओम बाबा हत्याकांड भी हाइ-प्रोफाइल है. लिहाजा यह माना जा रहा है कि पुलिस केवल टीम का गठन, दो-चार जगहों पर छापामारी, चार-छह लोगों से दो-तीन दिनों तक पूछताछ, कभी-कभी कड़ी पूछताछ आदि कर अनुसंधान में खुद को गंभीर दिखाने का पुराना प्रयास के सिवा यह कुछ भी नहीं है.

दिवेश सिंह हत्याकांड में भी कई चर्चित और बड़े नाम सामने आये थे. हाइ-प्रोफाइल मामले को देखते हुए तब भी अनुसंधान के नाम पर हाइटेक ड्रामा हुआ था. आखिरकार पुलिस चुप होकर बैठ गयी. पीड़ित पक्ष कभी पुलिस पदाधिकारी के दरवाजे, तो कभी न्यायालय के दरवाजे पर दस्तक देते रहे. पुलिस अनुसंधान की कमजोरी ने पीड़ित पक्ष को न्याय नहीं दिला पाया.

* कई मामले पुलिस फाइलों में हैं दफन
मोजाहिदपुर थाना क्षेत्र के मारुफचक मोहल्ले में छह फरवरी 2012 को एक ही परिवार के चार लोगों की निर्मम हत्या कर दी गयी थी. यह मामला अब भी पुलिस फाइलों में दफन है. 25 दिसंबर 2004 को कोतवाली थाना के पीछे बैंक कर्मी पवन अग्रवाल के घर में घुस कर अपराधियों ने हत्या कर दी थी. हत्यारे पुलिस पकड़ में नहीं आ सके.

वर्ष 2005 में बबरगंज थाना क्षेत्र के कमलनगर कॉलोनी में बैंककर्मी गुरुदेव तिवारी व उनकी पत्नी की हत्या कर दी गयी. 19 सितंबर 2006 को तातारपुर थाना क्षेत्र के सराय मोहल्ले में शिक्षक दंपति की हत्या कर दी गयी. वर्ष 2007 को गोराडीह थाना क्षेत्र के डोबी गांव में वृद्ध महादेव मंडल व पावो देवी व अपराधी हरेराम मंडल की मां की हत्या कर दी गयी. वर्ष 06 में विवि थाना क्षेत्र के परबत्ती मोहल्ले में दो लोगों की हत्या मामले का खुलासा नहीं हो सका.

25 जून वर्ष 2011 को तिलकामांझी थाना क्षेत्र के आरबीएस रोड स्थित उद्योगपति विमलेंदु गुप्ता की हत्या मामले में किसी को सजा नहीं हो सकी. नौ नवंबर 2008 में बरारी थाना क्षेत्र के श्रवण कुमार व उनकी पत्नी मनीषा देवी की गोली मार कर हत्या कर दी गयी थी. 15 जुलाई 2012 को नवगछिया में असम का छात्र प्रीतम की हत्या की गयी थी. इस मामले में कुछ भी हाथ नहीं लगा. उसकी हत्या अपहरण कर की गयी थी.

11 मार्च 2012 को तिलकामांझी थाना क्षेत्र के सैंडिस कंपाउंड में महेश्वरी यादव की हत्या मामले में भी पुलिस ठोस नतीजे पर नहीं पहुंची. वर्ष 2008 में नवगछिया के इसमाइलपुर विनोबा दियारा में नौ लोगों की सामूहिक नरसंहार मामला भी पुलिस फाइलों में दफन है. कहलगांव का ललिता ठाकुर हत्याकांड. यहां का ही चर्चित शिक्षक विलायती सिंह हत्याकांड की गुत्थी भी अनसुलझी है. पुलिस सूत्र बताते हैं ऐसे कई हत्याएं हुई जिसकी गुत्थी अब भी पुलिस फाइलों में अनसुलझी है.

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